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1)) You know that there are three stages in the period of postnatal development. List the
three stages and describe the developments that take place during each stage.

Child development can be defined as the process by which a child changes over time. It covers the whole period from conception to an individual becoming a fully functioning adult. It’s a journey from total dependence to full independence.

Child development incorporates, physical growth as well as intellectual, language, emotional and social development

Stages of Child Development

  • Infancy(0-2 year)
  • Early childhood(2-6 years)
  • Middle childhood (6-12 years)
  • Adolescence (12-18 years)
  • Adulthood(18 Years Onward)

Infancy(0-2 year)

  • The period from birth to two years of age is referred to as the period of Infancy.
  • In this period the child is totally dependent on the caregiver for the fulfillment of her needs.
  • After birth, this is the period of most rapid growth and development.
  • The child’s skills and abilities increase. By the end of infancy, she is able to walk, run, communicate her needs verbally, feed herself, identify family members, recognize herself and venture confidently in familiar surroundings.

Childhood(2-12 years)

  • The period of Early childhood is from two to six years of age.
  • Development at this stage not as rapid as during infancy.
  • During this period the child refines the skills she has acquired during infancy and learns new skills as well.
  • This is the period when coordination of the parts of the body improves.
  • During childhood, she also learns the ways of behavior that are considered appropriate by society.
  • The child meets many people outside the family and forms attachments with more people.
  • As the child grows and her thinking capacities mature, she realizes that she can do many things.
  • She can play on a swing, make a house from sand, draw, paint or sing a song.
  • This gives her a feeling of confidence.
  • During this period she becomes more independent though adult guidance is constantly needed.
  • The period of childhood is divided into two stages: the period of early childhood(2-6 years) and middle childhood (6-12 years).
  • The period of early childhood is also referred to as the preschool age because at this age the child is learning skills that will help her to do tasks associated with schooling.
  • The preschooler has mastered the words to ask questions about things and people. She learns about numbers, colours, shapes and the reasons for everyday events

Adolescence (12-18 years)

  • The next stage is referred to as the period of adolescence (12-18 yrs.)
  • The beginning of this period is marked by puberty.
  • Puberty refers to the stage around 11-14 years of age when there is a spurt in physical growth.
  • This results in a rapid increase in height and weight and the emergence of secondary sexual characteristics.
  • Examples of these are the development of facial hair in boys and development of breasts in girls.
  • The onset of puberty is carlier for girls than for boys.
  • These rapid physical changes lead to a need for emotional readjustment.

Adulthood(18 Years Onward)

  • After the age of 18 years the person is referred to as an adult.
  • There may be different criteria for considering a person an adult.
  • One may be the ability to support oneself economically and another may be getting married and starting a family.
  • But individuals from some families continue to remain financially dependent on their parents till early twenties.
  • In others, both marriage and work may have to be taken up before adulthood.
  • There are also social and legal definitions of adulthood.
  • For example, an Indian can vote in the elections at eighteen years.
  • Legally, girls may get married at 18 years and boys at 21 years of age.
  •  However, adulthood typically involves either working or preparing for one’s livelihood.
  •  By now physical changes are complete and the person is mature.
  • It is important to remember that these divisions of the life span are not rigid.
  • It is not as if the child suddenly changes from an infant to a preschooler or from a child to an adolescent.
  • Change is a gradual and continuous process and transition from one phase of life to another will be different for every individual.

1)) आप जानते हैं कि प्रसवोत्तर विकास की अवधि में तीन चरण होते हैं। लिस्ट
तीन चरण और प्रत्येक चरण के दौरान होने वाले विकास का वर्णन करते हैं

बाल विकास को उस प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसके द्वारा एक बच्चा समय के साथ बदलता है। इसमें गर्भाधान से लेकर पूरी तरह से काम करने वाले वयस्क बनने तक की पूरी अवधि शामिल है। यह कुल निर्भरता से पूर्ण स्वतंत्रता तक की यात्रा है।

बाल विकास में शारीरिक विकास के साथ-साथ बौद्धिक, भाषा, भावनात्मक और सामाजिक विकास शामिल हैं

बाल विकास के चरण

इन्फेंसी (0-2 वर्ष)
प्रारंभिक बचपन (2-6 वर्ष)
मध्य बचपन (6-12 वर्ष)
किशोरावस्था (12-18 वर्ष)
वयस्कता (18 वर्ष बाद)

इन्फेंसी (0-2 वर्ष)

जन्म से लेकर दो वर्ष की आयु तक की अवधि को इन्फैंसी की अवधि के रूप में जाना जाता है।
इस अवधि में बच्चा अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए पूरी तरह से देखभाल करने वाले पर निर्भर होता है।
जन्म के बाद, यह सबसे तेजी से विकास और विकास की अवधि है।
बच्चे के कौशल और क्षमताओं में वृद्धि होती है। शैशवावस्था के अंत तक, वह चलने, दौड़ने, संवाद करने में सक्षम है

मौखिक रूप से, स्वयं को खिलाने, परिवार के सदस्यों को पहचानने, खुद को पहचानने और परिचित परिवेश में उद्यम करने की आवश्यकता है।

बचपन (2-12 वर्ष)

प्रारंभिक बचपन की अवधि दो से छह वर्ष की आयु तक होती है।
इस स्तर पर विकास शैशवावस्था के दौरान उतनी तेजी से नहीं हुआ।
इस अवधि के दौरान बच्चा शैशवावस्था के दौरान हासिल किए गए कौशल को निखारता है और नए कौशल भी सीखता है।
यह वह अवधि है जब शरीर के अंगों का समन्वय बेहतर होता है।
बचपन के दौरान, वह व्यवहार के तरीके भी सीखती है जिन्हें समाज द्वारा उचित माना जाता है।
बच्चा परिवार के बाहर कई लोगों से मिलता है और अधिक लोगों के साथ जुड़ाव बनाता है।
जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता है और उसकी सोच क्षमता परिपक्व होती है, उसे पता चलता है कि वह कई काम कर सकती है।
वह एक झूले पर खेल सकता है, रेत से घर बना सकता है, आकर्षित कर सकता है, पेंट कर सकता है या गाना गा सकता है।
इससे उसे आत्मविश्वास की अनुभूति होती है।
इस अवधि के दौरान वह अधिक स्वतंत्र हो जाती है, हालांकि वयस्क मार्गदर्शन की लगातार आवश्यकता होती है।
बचपन की अवधि को दो चरणों में विभाजित किया गया है: प्रारंभिक बचपन की अवधि (2-6 वर्ष) और मध्य बचपन (6-12 वर्ष)।

प्रारंभिक बचपन की अवधि को पूर्वस्कूली उम्र भी कहा जाता है क्योंकि इस उम्र में बच्चा कौशल सीख रहा है जो उसे स्कूली शिक्षा से जुड़े कार्यों को करने में मदद करेगा।
पूर्वस्कूली ने चीजों और लोगों के बारे में सवाल पूछने के लिए शब्दों में महारत हासिल की है। वह संख्या, रंग, आकार और रोजमर्रा की घटनाओं के कारणों के बारे में जानती है

किशोरावस्था (12-18 वर्ष)

अगले चरण को किशोरावस्था (12-18 वर्ष) की अवधि के रूप में जाना जाता है।
इस अवधि की शुरुआत यौवन द्वारा चिह्नित है।
यौवन शारीरिक विकास में तेजी आने पर लगभग 11-14 वर्ष की आयु को दर्शाता है।
यह ऊंचाई और वजन में तेजी से वृद्धि और माध्यमिक यौन विशेषताओं के उद्भव के परिणामस्वरूप होता है।
इसके उदाहरण लड़कों में चेहरे के बालों का विकास और लड़कियों में स्तनों का विकास है।
यौवन की शुरुआत लड़कों की तुलना में लड़कियों के लिए बहुत अच्छी है।
इन तीव्र शारीरिक परिवर्तनों के कारण भावनात्मक पुनरावृत्ति की आवश्यकता होती है।

वयस्कता (18 वर्ष बाद)

18 वर्ष की आयु के बाद व्यक्ति को वयस्क के रूप में संदर्भित किया जाता है।
किसी व्यक्ति के वयस्क होने पर विचार करने के लिए अलग-अलग मापदंड हो सकते हैं।
एक आर्थिक रूप से स्वयं का समर्थन करने की क्षमता हो सकती है और दूसरा विवाह करना और परिवार शुरू करना हो सकता है।
लेकिन कुछ परिवारों के व्यक्ति बीसवीं शताब्दी तक अपने माता-पिता पर आर्थिक रूप से निर्भर रहना जारी रखते हैं।
दूसरों में, शादी और काम दोनों वयस्कता से पहले लेने पड़ सकते हैं।
वयस्कता की सामाजिक और कानूनी परिभाषाएँ भी हैं।
उदाहरण के लिए, एक भारतीय अठारह साल के चुनाव में मतदान कर सकता है।
कानूनी तौर पर, लड़कियों की शादी 18 साल और लड़कों की 21 साल की उम्र में हो सकती है।
हालाँकि, वयस्कता में आमतौर पर या तो काम करना या किसी की आजीविका की तैयारी शामिल होती है।
अब तक शारीरिक परिवर्तन पूर्ण हैं और व्यक्ति परिपक्व है।
यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि जीवन काल के ये विभाजन कठोर नहीं हैं।
ऐसा नहीं है कि बच्चा अचानक शिशु से पूर्वस्कूली या बच्चे से किशोर में बदल जाता है।
परिवर्तन एक क्रमिक और निरंतर प्रक्रिया है और जीवन के एक चरण से दूसरे तक संक्रमण हर व्यक्ति के लिए अलग होगा।

ଆପଣ ଜାଣନ୍ତି ଯେ ପ୍ରସବକାଳୀନ ବିକାଶ ଅବଧିରେ ତିନୋଟି ପର୍ଯ୍ୟାୟ ଅଛି | ତାଲିକା କର | ତିନୋଟି ପର୍ଯ୍ୟାୟ ଏବଂ ପ୍ରତ୍ୟେକ ପର୍ଯ୍ୟାୟରେ ଘଟୁଥିବା ବିକାଶକୁ ବର୍ଣ୍ଣନା କର |

ଶିଶୁର ବିକାଶ ପ୍ରକ୍ରିୟା ଭାବରେ ବ୍ୟାଖ୍ୟା କରାଯାଇପାରେ ଯାହା ଦ୍ୱାରା ପିଲା ସମୟ ସହିତ ପରିବର୍ତ୍ତନ ହୁଏ | ଗର୍ଭଧାରଣ ଠାରୁ ଆରମ୍ଭ କରି ଜଣେ ବ୍ୟକ୍ତି ସଂପୂର୍ଣ୍ଣ କାର୍ଯ୍ୟକ୍ଷମ ବୟସ୍କ ହେବା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଏହା ସମଗ୍ର ସମୟକୁ ଅନ୍ତର୍ଭୁକ୍ତ କରେ | ଏହା ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ନିର୍ଭରଶୀଳତା ଠାରୁ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ସ୍ independence ାଧୀନତା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଏକ ଯାତ୍ରା |

ଶିଶୁ ବିକାଶ ଅନ୍ତର୍ଭୁକ୍ତ କରେ, ଶାରୀରିକ ଅଭିବୃଦ୍ଧି ସହିତ ବ intellectual ଦ୍ଧିକ, ଭାଷା, ଭାବପ୍ରବଣ ଏବଂ ସାମାଜିକ ବିକାଶ |

ଶିଶୁ ବିକାଶର ପର୍ଯ୍ୟାୟ

ଶିଶୁ (0-2 ବର୍ଷ)
ବାଲ୍ୟକାଳ (2-6 ବର୍ଷ)
ମଧ୍ୟମ ପିଲାଦିନ (6-12 ବର୍ଷ)
ଯୁବାବସ୍ଥା (12-18 ବର୍ଷ)
ବୟସ୍କତା (18 ବର୍ଷ ଆଗକୁ)

ଶିଶୁ (0-2 ବର୍ଷ)

ଜନ୍ମରୁ ଦୁଇ ବର୍ଷ ବୟସକୁ ବାଲ୍ୟକାଳ ବୋଲି କୁହାଯାଏ |
ଏହି ଅବଧିରେ ପିଲା ତା’ର ଆବଶ୍ୟକତା ପୂରଣ ପାଇଁ ଯତ୍ନକାରୀଙ୍କ ଉପରେ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ନିର୍ଭରଶୀଳ |
ଜନ୍ମ ପରେ, ଏହା ହେଉଛି ଅତି ଦ୍ରୁତ ଅଭିବୃଦ୍ଧି ଏବଂ ବିକାଶର ଅବଧି |
ଶିଶୁର ଦକ୍ଷତା ଏବଂ ଦକ୍ଷତା ବୃଦ୍ଧି ପାଇଥାଏ | ଶିଶୁଟିର ଶେଷ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ, ସେ ଚାଲିବା, ଦ run ଡ଼ିବା, ଯୋଗାଯୋଗ କରିବାରେ ସକ୍ଷମ ଅଟନ୍ତି |

ମ bal ଖିକ ଭାବରେ ଆବଶ୍ୟକ କରେ, ନିଜକୁ ଖାଇବାକୁ ଦିଅ, ପରିବାର ସଦସ୍ୟଙ୍କୁ ଚିହ୍ନଟ କର, ନିଜକୁ ପରିଚିତ କର ଏବଂ ପରିଚିତ ପରିବେଶରେ ଆତ୍ମନିର୍ଭରଶୀଳ |

ପିଲାଦିନ (2-12 ବର୍ଷ)

ବାଲ୍ୟକାଳର ଅବଧି ଦୁଇରୁ ଛଅ ବର୍ଷ ବୟସ ଅଟେ |
ଏହି ପର୍ଯ୍ୟାୟରେ ବିକାଶ ଶିଶୁ ପରି ଦ୍ରୁତ ନୁହେଁ |
ଏହି ଅବଧିରେ ପିଲାଟି ବାଲ୍ୟକାଳରେ ଅର୍ଜନ କରିଥିବା କ skills ଶଳକୁ ପରିଷ୍କାର କରେ ଏବଂ ନୂତନ କ skills ଶଳ ମଧ୍ୟ ଶିଖେ |
ଏହା ହେଉଛି ସେହି ସମୟ ଯେତେବେଳେ ଶରୀରର ଅଙ୍ଗଗୁଡ଼ିକର ସମନ୍ୱୟ ଉନ୍ନତ ହୁଏ |
ପିଲାଦିନେ, ସେ ଆଚରଣର ଉପାୟ ମଧ୍ୟ ଶିଖନ୍ତି ଯାହା ସମାଜ ଦ୍ୱାରା ଉପଯୁକ୍ତ ବିବେଚନା କରାଯାଏ |
ପିଲାଟି ପରିବାର ବାହାରେ ଅନେକ ଲୋକଙ୍କୁ ଭେଟିଥାଏ ଏବଂ ଅଧିକ ଲୋକଙ୍କ ସହିତ ସଂଲଗ୍ନକ ସୃଷ୍ଟି କରେ |
ପିଲାଟି ବ ows ଼ିବା ସହ ତା’ର ଚିନ୍ତାଧାରା କ୍ଷମତା ପରିପକ୍ୱ ହେବା ସହିତ ସେ ହୃଦୟଙ୍ଗମ କରେ ଯେ ସେ ଅନେକ କାର୍ଯ୍ୟ କରିପାରିବେ |
ସେ ଏକ ସୁଇଙ୍ଗରେ ଖେଳିପାରିବେ, ବାଲିରୁ ଘର ତିଆରି କରିପାରିବେ, ଚିତ୍ର ଆଙ୍କିବେ, ରଙ୍ଗ କରିପାରିବେ କିମ୍ବା ଗୀତ ଗାଇ ପାରିବେ |
ଏହା ତାଙ୍କୁ ଆତ୍ମବିଶ୍ୱାସର ଅନୁଭବ ଦେଇଥାଏ |
ଏହି ଅବଧି ମଧ୍ୟରେ ସେ ଅଧିକ ସ୍ independent ାଧୀନ ହୁଅନ୍ତି ଯଦିଓ ବୟସ୍କଙ୍କ ମାର୍ଗଦର୍ଶନ କ୍ରମାଗତ ଭାବରେ ଆବଶ୍ୟକ ହୁଏ |
ପିଲାଦିନର ଅବଧି ଦୁଇଟି ପର୍ଯ୍ୟାୟରେ ବିଭକ୍ତ ହୋଇଛି: ବାଲ୍ୟକାଳର ଅବଧି (2-6 ବର୍ଷ) ଏବଂ ମଧ୍ୟମ ପିଲାଦିନ (6-12 ବର୍ଷ) |
ବାଲ୍ୟକାଳର ଅବଧିକୁ ମଧ୍ୟ ପ୍ରାକ୍ ବିଦ୍ୟାଳୟ ବୟସ ବୋଲି କୁହାଯାଏ କାରଣ ଏହି ବୟସରେ ପିଲା କ skills ଶଳ ଶିଖୁଥାଏ ଯାହା ତାଙ୍କୁ ବିଦ୍ୟାଳୟ ସହିତ ଜଡିତ କାର୍ଯ୍ୟ କରିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରିବ |
ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟ ଜିନିଷ ଏବଂ ଲୋକଙ୍କ ବିଷୟରେ ପ୍ରଶ୍ନ ପଚାରିବା ପାଇଁ ଶବ୍ଦଗୁଡ଼ିକୁ ଆୟତ୍ତ କରିଛି | ସେ ସଂଖ୍ୟା, ରଙ୍ଗ, ଆକୃତି ଏବଂ ଦ day ନନ୍ଦିନ ଘଟଣାର କାରଣ ବିଷୟରେ ଜାଣନ୍ତି |

ଯୁବାବସ୍ଥା (12-18 ବର୍ଷ)

ପରବର୍ତ୍ତୀ ପର୍ଯ୍ୟାୟକୁ କିଶୋରାବସ୍ଥା (12-18 ବର୍ଷ) ବୋଲି କୁହାଯାଏ |
ଏହି ଅବଧିର ଆରମ୍ଭ ଯ p ବନାବସ୍ଥା ଦ୍ୱାରା ଚିହ୍ନିତ |
ଯ ub ବନାବସ୍ଥା ପ୍ରାୟ 11-14 ବର୍ଷ ବୟସର ମଞ୍ଚକୁ ବୁ refers ାଏ ଯେତେବେଳେ ଶାରୀରିକ ଅଭିବୃଦ୍ଧିରେ ଏକ ଗତି ହୁଏ |
ଏହାଦ୍ୱାରା ଉଚ୍ଚତା ଏବଂ ଓଜନର ଦ୍ରୁତ ବୃଦ୍ଧି ଏବଂ ଦ୍ secondary ିତୀୟ ଯ sexual ନ ବ characteristics ଶିଷ୍ଟ୍ୟଗୁଡିକର ଉତ୍ପତ୍ତି ହୁଏ |
ପୁଅମାନଙ୍କ ମୁହଁର କେଶର ବିକାଶ ଏବଂ girls ିଅମାନଙ୍କ ସ୍ତନର ବିକାଶ ହେଉଛି ଏହାର ଉଦାହରଣ |
ଯ ub ବନାବସ୍ଥାର ଆରମ୍ଭ ପୁଅମାନଙ୍କ ଅପେକ୍ଷା girls ିଅମାନଙ୍କ ପାଇଁ ଅଧିକ ସହଜ ଅଟେ |
ଏହି ଦ୍ରୁତ ଶାରୀରିକ ପରିବର୍ତ୍ତନଗୁଡ଼ିକ ଭାବପ୍ରବଣ ପୁନ j ନିର୍ମାଣର ଆବଶ୍ୟକତାକୁ ନେଇଥାଏ |

ବୟସ୍କତା (18 ବର୍ଷ ଆଗକୁ)

18 ବର୍ଷ ବୟସ ପରେ ବ୍ୟକ୍ତିକୁ ବୟସ୍କ ବୋଲି କୁହାଯାଏ |
ଜଣେ ବ୍ୟକ୍ତିଙ୍କୁ ବୟସ୍କ ବୋଲି ଭାବିବା ପାଇଁ ଭିନ୍ନ ମାନଦଣ୍ଡ ଥାଇପାରେ |
ଜଣେ ଆର୍ଥିକ ଦୃଷ୍ଟିରୁ ନିଜକୁ ସମର୍ଥନ କରିବାର କ୍ଷମତା ହୋଇପାରେ ଏବଂ ଅନ୍ୟଟି ହୁଏତ ବିବାହ କରି ପରିବାର ଆରମ୍ଭ କରିପାରେ |
କିନ୍ତୁ କିଛି ପରିବାରର ବ୍ୟକ୍ତିମାନେ ବିଂଶ ଦଶକ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ସେମାନଙ୍କ ପିତାମାତାଙ୍କ ଉପରେ ଆର୍ଥିକ ନିର୍ଭରଶୀଳ ରହିଛନ୍ତି |
ଅନ୍ୟମାନଙ୍କରେ, ଉଭୟ ବିବାହ ଏବଂ କାର୍ଯ୍ୟକୁ ବୟସ୍କ ହେବା ପୂର୍ବରୁ ଗ୍ରହଣ କରିବାକୁ ପଡିପାରେ |
ବୟସ୍କତାର ସାମାଜିକ ଏବଂ ଆଇନଗତ ପରିଭାଷା ମଧ୍ୟ ଅଛି |
ଉଦାହରଣ ସ୍ୱରୂପ, ଜଣେ ଭାରତୀୟ ଅଠର ବର୍ଷରେ ନିର୍ବାଚନରେ ​​ଭୋଟ୍ ଦେଇପାରିବେ |
ଆଇନଗତ ଭାବରେ, girls ିଅମାନେ 18 ବର୍ଷରେ ଏବଂ ପୁଅମାନେ 21 ବର୍ଷ ବୟସରେ ବିବାହ କରିପାରନ୍ତି |
ଅବଶ୍ୟ, ବୟସ୍କତା ସାଧାରଣତ working କାମ କରିବା କିମ୍ବା ନିଜର ଜୀବିକା ପାଇଁ ପ୍ରସ୍ତୁତି ସହିତ ଜଡିତ |
ବର୍ତ୍ତମାନ ସୁଦ୍ଧା ଶାରୀରିକ ପରିବର୍ତ୍ତନ ସଂପୂର୍ଣ୍ଣ ହୋଇଛି ଏବଂ ବ୍ୟକ୍ତି ପରିପକ୍ୱ |
ଏହା ମନେ ରଖିବା ଜରୁରୀ ଯେ ଆୟୁଷର ଏହି ବିଭାଜନଗୁଡ଼ିକ କଠିନ ନୁହେଁ |
ସତେ ଯେପରି ପିଲାଟି ହଠାତ୍ ଏକ ଶିଶୁଠାରୁ ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟ କିମ୍ବା ପିଲାଠାରୁ କିଶୋର ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପରିବର୍ତ୍ତନ ହୁଏ |
ପରିବର୍ତ୍ତନ ହେଉଛି ଏକ ଧୀରେ ଧୀରେ ଏବଂ ନିରନ୍ତର ପ୍ରକ୍ରିୟା ଏବଂ ଜୀବନର ଗୋଟିଏ ପର୍ଯ୍ୟାୟରୁ ଅନ୍ୟ ପର୍ଯ୍ୟାୟକୁ ପରିବର୍ତ୍ତନ ପ୍ରତ୍ୟେକ ବ୍ୟକ୍ତିଙ୍କ ପାଇଁ ଭିନ୍ନ ହେବ |

2) You know that there are three stages in the period of prenatal development. List the
three stages and describe the developments that take place during each stage.

There are three stages of prenatal development.

  • Period of the Ovum
  • Period of the Embryo
  • Period of the Foetus

Period of the Ovum

  • This period lasts from conception to two weeks.
  • During this period, the single-celled zygote begins to multiply rapidly and forms several dozen cells.
  • This mass of cells differentiates into an inner and outer layer of cells, separated by a hollow cavity.
  • The group of inner cells will form the baby. The cells of the outer layer will form the placenta, umbilical cord, amniotic sac and other structures.

Period of the Embryo

  • The term ’embryo’ is used to refer to the developing baby from the time of implantation until the beginning of bone formation.
  • In other words, this period begins from the third week after conception and ends in the eighth week.
  • During this
  •  period cell division continues and the cells differentiate into various types.
  • Development during this short period of five weeks is very rapid.
  • This period is crucial In prenatal development since it is it is now that all the major organs, tissues and systems of the body are being formed.
  • The most rapid development of a majority of the organs and systems occurs during this period and in the early part of the foetal period.

Period of the Foetus

  • This period extends from the beginning of the ninth week until birth.
  • Its beginning is marked by the development of the bone structure.
  • During this period refinement and development of the various body systems takes place.
  • Now the growth of the head region slows down and the rest of the body grows more rapidly.

1)) आप जानते हैं कि जन्मपूर्व विकास की अवधि में तीन चरण होते हैं। लिस्ट
तीन चरण और प्रत्येक चरण के दौरान होने वाले विकास का वर्णन करते हैं।

प्रसवपूर्व विकास के तीन चरण हैं।

अंडानु की अवधि
भ्रूण की अवधि
गर्भ की अबधी

अंडानु की अवधि

यह अवधि गर्भाधान से दो सप्ताह तक रहती है। इस अवधि के दौरान, एकल कोशिका वाले
युग्मनज तेजी से गुणा करना शुरू करता है और कई दर्जन कोशिकाओं का निर्माण करता है। कोशिकाओं का यह द्रव्यमान
कोशिकाओं की एक आंतरिक और बाहरी परत में अंतर करता है, एक खोखले गुहा द्वारा अलग किया जाता है। द
आंतरिक कोशिकाओं का समूह बच्चे का निर्माण करेगा। बाहरी परत की कोशिकाएँ बनेगी
प्लेसेंटा, गर्भनाल, एमनियोटिक थैली और अन्य संरचनाएं।

भ्रूण की अवधि

Embry भ्रूण ’शब्द का उपयोग विकासशील बच्चे को समय से करने के लिए किया जाता है
हड्डी के गठन की शुरुआत तक आरोपण। दूसरे शब्दों में, यह अवधि
गर्भाधान के बाद तीसरे सप्ताह से शुरू होता है और आठवें सप्ताह में समाप्त होता है। इसके दौरान
अवधि कोशिका विभाजन जारी है और कोशिकाएँ विभिन्न प्रकारों में विभेदित होती हैं।
पांच सप्ताह की इस छोटी अवधि के दौरान विकास बहुत तेजी से होता है। यह काल है
महत्वपूर्ण जन्मपूर्व विकास के बाद से यह है
अब यह है कि सभी प्रमुख अंगों, ऊतकों और
शरीर की प्रणालियाँ बन रही हैं। अधिकांश का सबसे तेजी से विकास
इस अवधि के दौरान और भ्रूण के शुरुआती भाग में अंग और प्रणालियां होती हैं
अवधि, यानी गर्भाधान के 12 सप्ताह बाद तक।

गर्भ की अबधी

यह अवधि नौवें सप्ताह की शुरुआत से जन्म तक फैली हुई है। इसकी शुरुआत है
हड्डी संरचना के विकास द्वारा चिह्नित। इस अवधि के दौरान शोधन और
शरीर की विभिन्न प्रणालियों का विकास होता है। अब सिर का विकास
क्षेत्र धीमा हो जाता है और शरीर के बाकी हिस्से तेजी से बढ़ते हैं।

ଆପଣ ଜାଣନ୍ତି ଯେ ପ୍ରସବକାଳୀନ ବିକାଶ ଅବଧିରେ ତିନୋଟି ପର୍ଯ୍ୟାୟ ଅଛି | ତାଲିକା କର |
ତିନୋଟି ପର୍ଯ୍ୟାୟ ଏବଂ ପ୍ରତ୍ୟେକ ପର୍ଯ୍ୟାୟରେ ଘଟୁଥିବା ବିକାଶକୁ ବର୍ଣ୍ଣନା କର |

ପ୍ରସବକାଳୀନ ବିକାଶର ତିନୋଟି ପର୍ଯ୍ୟାୟ ଅଛି |

ଓଭମ୍ ସମୟ
ଭ୍ରୁଣର ଅବଧି
ଫେଟସ୍ ସମୟ |

ଓଭମ୍ ସମୟ

ଏହି ଅବଧି ଗର୍ଭଧାରଣରୁ ଦୁଇ ସପ୍ତାହ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଚାଲିଥାଏ | ଏହି ଅବଧି ମଧ୍ୟରେ, ଏକକ-କକ୍ଷ |
zygote ଦ୍ରୁତ ଗତିରେ ବ ly ିବାକୁ ଲାଗେ ଏବଂ ଅନେକ ଡଜନ କୋଷ ଗଠନ କରେ | କୋଷଗୁଡ଼ିକର ଏହି ଭର |
କୋଷଗୁଡ଼ିକର ଏକ ଆଭ୍ୟନ୍ତରୀଣ ଏବଂ ବାହ୍ୟ ସ୍ତରରେ ଭିନ୍ନ, ଏକ ଖାଲ ଗୁହାଳ ଦ୍ୱାରା ପୃଥକ | The
ଭିତର କୋଷଗୁଡ଼ିକର ଗୋଷ୍ଠୀ ଶିଶୁକୁ ଗଠନ କରିବ | ବାହ୍ୟ ସ୍ତରର କୋଷଗୁଡ଼ିକ ଗଠନ କରିବ |
ପ୍ଲେସେଣ୍ଟା, ଅମ୍ବିଡିକାଲ୍ କର୍ଡ, ଆମନିଓଟିକ୍ ଥଳି ଏବଂ ଅନ୍ୟାନ୍ୟ ଗଠନ |

ଭ୍ରୁଣର ଅବଧି

ସମୟରୁ ବିକାଶଶୀଳ ଶିଶୁକୁ ବୁ to ାଇବା ପାଇଁ ‘ଭ୍ରୁଣ’ ଶବ୍ଦ ବ୍ୟବହୃତ ହୁଏ |
ଅସ୍ଥି ଗଠନ ଆରମ୍ଭ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପ୍ରତିରୋପଣ | ଅନ୍ୟ ଅର୍ଥରେ, ଏହି ଅବଧି |
ଗର୍ଭଧାରଣର ତୃତୀୟ ସପ୍ତାହରୁ ଆରମ୍ଭ ହୋଇ ଅଷ୍ଟମ ସପ୍ତାହରେ ଶେଷ ହୁଏ | ଏହି ସମୟରେ
ପିରିୟଡ୍ ସେଲ୍ ବିଭାଜନ ଜାରି ରହିଥାଏ ଏବଂ କୋଷଗୁଡ଼ିକ ବିଭିନ୍ନ ପ୍ରକାରରେ ଭିନ୍ନ ହୋଇଥାଏ |
ପାଞ୍ଚ ସପ୍ତାହର ଏହି ସ୍ୱଳ୍ପ ସମୟ ମଧ୍ୟରେ ବିକାଶ ବହୁତ ଦ୍ରୁତ ଅଟେ | ଏହି ଅବଧି ହେଉଛି |
ପ୍ରସବକାଳୀନ ବିକାଶରେ ଏହା ଅତ୍ୟନ୍ତ ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ |
ଏହା ବର୍ତ୍ତମାନ ସମସ୍ତ ପ୍ରମୁଖ ଅଙ୍ଗ, ଟିସୁ ଏବଂ |
ଶରୀରର ପ୍ରଣାଳୀ ଗଠନ କରାଯାଉଛି | ସଂଖ୍ୟା କିମ୍ବା ପ୍ରତୀକ ସହିତ ଅକ୍ଷର ମଧ୍ଯ ବ୍ୟବହାର କରି
ଅଙ୍ଗ ଏବଂ ପ୍ରଣାଳୀ ଏହି ଅବଧିରେ ଏବଂ ଭ୍ରୁଣର ପ୍ରାରମ୍ଭ ଭାଗରେ ଘଟିଥାଏ |
ଅବଧି, ଯଥା ଗର୍ଭଧାରଣର 12 ସପ୍ତାହ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ |

ଫେଟସ୍ ସମୟ |

ଏହି ଅବଧି ନବମ ସପ୍ତାହ ଆରମ୍ଭରୁ ଜନ୍ମ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ବ୍ୟାପିଥାଏ | ଏହାର ଆରମ୍ଭ ହେଉଛି |
ଅସ୍ଥି ଗଠନର ବିକାଶ ଦ୍ୱାରା ଚିହ୍ନିତ | ଏହି ଅବଧିରେ ବିଶୋଧନ ଏବଂ
ବିଭିନ୍ନ ଶରୀର ପ୍ରଣାଳୀର ବିକାଶ ହୁଏ | ବର୍ତ୍ତମାନ ମୁଣ୍ଡର ବୃଦ୍ଧି |
ଅଞ୍ଚଳ ମନ୍ଥର ହୋଇଯାଏ ଏବଂ ଶରୀରର ଅବଶିଷ୍ଟ ଅଂଶଗୁଡିକ ଶୀଘ୍ର ବ ows େ |

3) Describe the physical growth that takes place from birth onwards till the end of toddlerhood.

toddler is a child approximately 12 to 36 months old.  The toddler years are a time of great cognitive, emotional and social development. The word is derived from “to toddle”, which means to walk unsteadily, like a child of this age.

Toddler development can be broken down into a number of interrelated areas. There is reasonable consensus about what these areas may include:

  • Physical: growth or an increase in size.
  • Gross motor: the control of large muscles which enable walking, running, jumping and climbing.
  • Fine motor: the ability to control small muscles; enabling the toddler to feed themselves, draw and manipulate objects.
  • Vision: the ability to see near and far and interpret what is seen.
  • Hearing and speech: the ability to hear and receive information and listen (interpret), and the ability to understand and learn language and use it to communicate effectively.
  • Social: the ability to interact with the world through playing with others, taking turns and fantasy play.

3) जन्म से लेकर अंत तक होने वाली शारीरिक वृद्धि का वर्णन करें
बच्चा पैदा करनेवाला।

एक बच्चा लगभग 12 से 36 महीने का बच्चा है, हालांकि परिभाषाएं बदलती हैं। बच्चा वर्ष महान संज्ञानात्मक, भावनात्मक और सामाजिक विकास का समय है। यह शब्द “टॉडल” से लिया गया है, जिसका अर्थ है इस उम्र के बच्चे की तरह, अस्थिर रूप से चलना।

टॉडलर विकास को कई परस्पर क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है। इन क्षेत्रों में क्या शामिल हो सकता है, इस बारे में उचित सहमति है:

  • भौतिक: वृद्धि या आकार में वृद्धि।
  • Gross मोटर: बड़ी मांसपेशियों का नियंत्रण जो चलने, दौड़ने, कूदने और चढ़ने में सक्षम बनाता है।
  • Fine मोटर: छोटी मांसपेशियों को नियंत्रित करने की क्षमता; बच्चे को खुद को खिलाने, आकर्षित करने और वस्तुओं में हेरफेर करने के लिए सक्षम करना।
  • दृष्टि: निकट और दूर तक देखने और जो देखा जाता है उसकी व्याख्या करने की क्षमता।
  • श्रवण और भाषण: सुनने और जानकारी प्राप्त करने और सुनने (व्याख्या), और भाषा को समझने और सीखने और इसे प्रभावी ढंग से संवाद करने के लिए उपयोग करने की क्षमता।
  • सामाजिक: दूसरों के साथ खेलने, मोड़ लेने और काल्पनिक खेलने के माध्यम से दुनिया के साथ बातचीत करने की क्षमता।

ଜନ୍ମରୁ ଶେଷ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଘଟୁଥିବା ଶାରୀରିକ ଅଭିବୃଦ୍ଧି ବର୍ଣ୍ଣନା କର |
ଛୋଟ ପିଲା

ଏକ ଛୋଟ ପିଲା ପ୍ରାୟ 12 ରୁ 36 ମାସର ଶିଶୁ, ଯଦିଓ ସଂଜ୍ଞା ଭିନ୍ନ ଅଟେ | ଛୋଟ ବର୍ଷଗୁଡିକ ଏକ ମହାନ ଜ୍ଞାନ, ଭାବପ୍ରବଣ ଏବଂ ସାମାଜିକ ବିକାଶର ସମୟ | ଏହି ଶବ୍ଦଟି “to toddle” ରୁ ଉତ୍ପନ୍ନ, ଯାହାର ଅର୍ଥ ଏହି ଯୁଗର ପିଲା ପରି ଅସ୍ଥିର ଭାବରେ ଚାଲିବା |

ଛୋଟ ଛୋଟ ବିକାଶକୁ ଅନେକ ପରସ୍ପର ସହ ଜଡିତ ଅଞ୍ଚଳରେ ବିଭକ୍ତ କରାଯାଇପାରେ | ଏହି କ୍ଷେତ୍ରଗୁଡିକ କ’ଣ ଅନ୍ତର୍ଭୁକ୍ତ କରିପାରେ ସେ ସମ୍ବନ୍ଧରେ ଯୁକ୍ତିଯୁକ୍ତ ସହମତି ଅଛି:

ଶାରୀରିକ: ବୃଦ୍ଧି କିମ୍ବା ଆକାର ବୃଦ୍ଧି |
ମୋଟ ମୋଟର: ବଡ଼ ମାଂସପେଶୀର ନିୟନ୍ତ୍ରଣ ଯାହା ଚାଲିବା, ଚାଲିବା, ଡେଇଁବା ଏବଂ ଚ imb ିବାରେ ସକ୍ଷମ କରେ |
ସୂକ୍ଷ୍ମ ମୋଟର: ଛୋଟ ମାଂସପେଶୀକୁ ନିୟନ୍ତ୍ରଣ କରିବାର କ୍ଷମତା; ଛୋଟ ପିଲାକୁ ନିଜକୁ ଖାଇବାକୁ ଦେବା, ବସ୍ତୁ ଆଙ୍କିବା ଏବଂ ନିୟନ୍ତ୍ରଣ କରିବା ପାଇଁ ସକ୍ଷମ କରିବା |
ଦର୍ଶନ: ନିକଟ ଏବଂ ଦୂର ଦେଖିବା ଏବଂ ଯାହା ଦେଖାଯାଏ ତାହା ବ୍ୟାଖ୍ୟା କରିବାର କ୍ଷମତା |
ଶ୍ରବଣ ଏବଂ ବକ୍ତବ୍ୟ: ସୂଚନା ଶୁଣିବା ଏବଂ ଗ୍ରହଣ କରିବାର କ୍ଷମତା ଏବଂ ଶୁଣିବା (ବ୍ୟାଖ୍ୟା କରିବା), ଏବଂ ଭାଷା ବୁ understand ିବା ଏବଂ ଶିଖିବା ଏବଂ ଏହାକୁ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ ଭାବରେ ଯୋଗାଯୋଗ କରିବା ପାଇଁ ବ୍ୟବହାର କରିବାର କ୍ଷମତା |
ସାମାଜିକ: ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ସହିତ ଖେଳିବା, ମୋଡ଼ ନେବା ଏବଂ କଳ୍ପନା ଖେଳ ମାଧ୍ୟମରେ ଜଗତ ସହିତ ଯୋଗାଯୋଗ କରିବାର କ୍ଷମତା |

4) How does the child’s fine motor skill of grasping develop over the first three years?

Fine motor skills are the ability to make movements using the small muscles in our hands and wrists

Here are some examples of when we use fine motor skills:

  • Holding a pen or pencil
  • Drawing pictures and writing neatly
  • Using a keyboard
  • Using scissors, rulers, and other tools

Fine motor skills also develop in the seven to twelve months period. The grasp of the infant improves.

  • The seven-month-old can rake at small objects with her fingers but cannot yet pick them up. This requires coordination between the thumb and the forefinger. This ability develops by eight months and she can pick up something to eat from her bowl.
  • She can also turn an object in her hands. By 9-12 months the infant uses one hand to hand an object and brings the other hand to manipulate it. At one year the infant is able to throw things, which reflects increasing muscle coordination.

During toddlerhood, the child becomes more skilled in using her hands. Her grasp becomes better. She is able to pick up small objects and hold them. As a result, she is able to do many tasks that were difficult for her earlier.

Grasp :

  • The 15-month-old can pick up thine using the thumb and forefinger, just as we do. This skill of using the forefinger and thumb to hold an object is very important and is used for many tasks in our day-to-day life such as writing, buttoning clothes and eating.
  • Toddlers are able to pick up small objects like buttons, pebbles or seeds. As their grasp improves, they enjoy stacking objects so that an 18-month-old can arrange a few wooden blocks one on top of another to build a tower. She delights in repeatedly pushing the blocks down and stacking them. Eye-hand coordination develops so that toddlers can push pebbles or buttons into a container through a small hole made in its lid. By three years, they can turn the pages of a book fairly well.
  • Toddlers have begun to eat on their own. They can hold the tumbler firmly in both hands and tip it up to drink from it. However, while doing so they spill some of the contents.
  • They may insist on eating food themselves, using spoons or their hand. While doing so, they smear some on their face and drop some of it as they carry it from the bowl to their mouth. By three years, however, they manage to eat food without smearing and can drink from a cup without spilling.

Scribbling :

Some time in the second year of life, the toddler ‘discovers’ scribbling. Scribbling is the earliest stage of writing. The increased muscular co-ordination and the ability to use the thumb and the forefinger to hold a chalk enables the toddler to scribble.

  • When the toddler first begins to scribble, she grips the crayon tightly in her palm. So tight is her grip that after some time her grasp opens because of fatigue and the crayon drops. The lines the toddler draws may seem to us as if they have been drawn by accident, but the toddler has done very definite back and forth lines. The lines at this time are usually straight.
  • The toddler repeats the lines over and over again. So intent issue at scribbling that while she may look at something else, she will continue the same movement. At this age the toddler does not have total control over the movement of her hand and so the lines often run off the paper. While scribbling the toddler moves her entire arm. She does not use her wrist to move the crayon, unlike older children and adults.
  • Therefore, while scribbling her arm movements are large sweeping ones, employing the shoulder and the elbow. This stage extends up to two-and-a-half to three years of age.
  • However some toddlers who are deft may go on to the next stage of scribbling before they are three years of age. In this stage, semi-circular and circular  patterns and loops appear. This indicates that the toddler has begun to use the movement, of the wrist to scribble. This reflects better muscular co-ordination.
  • The scribbles now are not allowed to run off the paper,  sign of increased eye-hand co-ordination and muscular control. The toddler experiments with different types of scribbles and vary the amount of pressure she exerts on the crayon.
  • Scribbling gives the growing child a sense of achievement. It is one of the first accomplishments in producing something.
  • Some toddlers who have been taught may write some alphabets and numbers or draw squares and triangles. But these figures are not precise and the children find it difficult to write them.
  • They should not be forced to do so.

4. पहले तीन वर्षों में बच्चे का लोभी मोटर कौशल कैसे विकसित होता है?

ठीक मोटर कौशल हमारे हाथों और कलाई में छोटी मांसपेशियों का उपयोग करके गति करने की क्षमता है

यहाँ कुछ उदाहरण दिए गए हैं जब हम ठीक मोटर कौशल का उपयोग करते हैं:

पेन या पेंसिल पकड़ना
चित्र बनाना और सफाई से लिखना
कीबोर्ड का उपयोग करना
कैंची, रूलर और अन्य उपकरणों का उपयोग करना

ठीक मोटर कौशल भी सात से बारह महीने की अवधि में विकसित होते हैं। शिशु की पकड़ में सुधार होता है।

सात महीने की बच्ची अपनी अंगुलियों से छोटी-छोटी वस्तुओं पर रेक कर सकती है लेकिन अभी तक उन्हें उठा नहीं सकती है। इसके लिए अंगूठे और तर्जनी के बीच समन्वय की आवश्यकता होती है। यह क्षमता आठ महीने में विकसित हो जाती है और वह अपने कटोरे से खाने के लिए कुछ उठा सकती है।
वह अपने हाथों में किसी वस्तु को घुमा भी सकती है। 9-12 महीने तक शिशु किसी वस्तु को हाथ लगाने के लिए एक हाथ का उपयोग करता है और दूसरे हाथ से उसे हेरफेर करने के लिए लाता है। एक वर्ष में शिशु चीजों को फेंकने में सक्षम होता है, जो मांसपेशियों के बढ़ते समन्वय को दर्शाता है।

बाल्यावस्था के दौरान, बच्चा अपने हाथों का उपयोग करने में अधिक कुशल हो जाता है। उसकी पकड़ बेहतर हो जाती है। वह छोटी वस्तुओं को उठाकर उन्हें पकड़ने में सक्षम है। नतीजतन, वह कई ऐसे काम करने में सक्षम है जो उसके लिए पहले मुश्किल थे।

पक्काना

15 महीने का बच्चा अंगूठे और तर्जनी का उपयोग करके आपको उठा सकता है, ठीक वैसे ही जैसे हम करते हैं। किसी वस्तु को पकड़ने के लिए तर्जनी और अंगूठे का उपयोग करने का यह कौशल बहुत महत्वपूर्ण है और इसका उपयोग हमारे दैनिक जीवन में कई कार्यों जैसे लिखने, कपड़े बटनने और खाने के लिए किया जाता है।
बच्चे बटन, कंकड़ या बीज जैसी छोटी वस्तुओं को उठा सकते हैं। जैसे-जैसे उनकी समझ में सुधार होता है, वे वस्तुओं को ढेर करने का आनंद लेते हैं ताकि एक 18 महीने का बच्चा कुछ लकड़ी के ब्लॉकों को एक के ऊपर एक टावर बनाने के लिए व्यवस्थित कर सके। वह बार-बार ब्लॉकों को नीचे धकेलने और उन्हें ढेर करने में प्रसन्न होती है। आँख-हाथ का समन्वय विकसित होता है ताकि बच्चे कंकड़ या बटन को उसके ढक्कन में बने एक छोटे से छेद के माध्यम से एक कंटेनर में धकेल सकें। तीन साल तक, वे एक किताब के पन्नों को काफी अच्छी तरह से बदल सकते हैं।
छोटे बच्चों ने खुद खाना शुरू कर दिया है। वे गिलास को दोनों हाथों में मजबूती से पकड़ सकते हैं और इसे पीने के लिए ऊपर की ओर झुका सकते हैं। हालांकि, ऐसा करते समय वे कुछ सामग्री गिरा देते हैं।
वे चम्मच या अपने हाथ का उपयोग करके स्वयं भोजन करने पर जोर दे सकते हैं। ऐसा करते समय, वे अपने चेहरे पर कुछ धब्बा लगाते हैं और इसे कटोरे से अपने मुंह तक ले जाते समय कुछ गिरा देते हैं। तीन साल तक, हालांकि, वे बिना स्मियर किए खाना खाने का प्रबंधन करते हैं और बिना स्पिलिंग के एक कप से पी सकते हैं।

स्क्रिब्लिंग:

जीवन के दूसरे वर्ष में कुछ समय, बच्चा ‘स्क्रिबलिंग’ की खोज करता है। स्क्रिबलिंग लेखन का प्रारंभिक चरण है। बढ़ा हुआ पेशीय समन्वय और चाक धारण करने के लिए अंगूठे और तर्जनी का उपयोग करने की क्षमता बच्चे को स्क्रिबल करने में सक्षम बनाती है।

जब बच्चा पहली बार लिखना शुरू करता है, तो वह क्रेयॉन को अपनी हथेली में कसकर पकड़ लेती है। उसकी पकड़ इतनी कड़ी है कि कुछ देर बाद थकान के कारण उसकी पकड़ खुल जाती है और क्रेयॉन गिर जाता है। बच्चा जो रेखाएँ खींचता है, वह हमें ऐसा लग सकता है जैसे वे दुर्घटना से खींची गई हों, लेकिन बच्चे ने बहुत ही निश्चित रूप से आगे और पीछे की रेखाएँ बनाई हैं। इस समय रेखाएं आमतौर पर सीधी होती हैं।
बच्चा इन पंक्तियों को बार-बार दोहराता है। स्क्रिबलिंग पर इतना इरादा मुद्दा कि जब वह कुछ और देख सकती है, तो वह उसी आंदोलन को जारी रखेगी। इस उम्र में बच्चा अपने हाथ की गति पर पूर्ण नियंत्रण नहीं रखता है और इसलिए रेखाएं अक्सर कागज से दूर हो जाती हैं। स्क्रिबल करते हुए बच्चा अपना पूरा हाथ हिलाता है। वह बड़े बच्चों और वयस्कों के विपरीत, क्रेयॉन को हिलाने के लिए अपनी कलाई का उपयोग नहीं करती है।
इसलिए, स्क्रिबलिंग करते समय उसके हाथ की हरकतें कंधे और कोहनी को नियोजित करते हुए बड़े स्वीपिंग वाले होते हैं। यह अवस्था ढाई से तीन वर्ष की आयु तक होती है।
हालाँकि कुछ बच्चे जो चतुर हैं वे तीन साल की उम्र से पहले स्क्रिबलिंग के अगले चरण में जा सकते हैं। इस चरण में, अर्ध-गोलाकार और वृत्ताकार पैटर्न और लूप दिखाई देते हैं। यह इंगित करता है कि टॉडलर ने कलाई के मूवमेंट का उपयोग स्क्रिबल करने के लिए करना शुरू कर दिया है। यह बेहतर पेशीय समन्वय को दर्शाता है।
स्क्रिबल्स को अब कागज से बाहर निकलने की अनुमति नहीं है, आंख-हाथ के बढ़े हुए समन्वय और मांसपेशियों पर नियंत्रण का संकेत। बच्चा विभिन्न प्रकार के स्क्रिबल्स के साथ प्रयोग करता है और क्रेयॉन पर उसके द्वारा डाले जाने वाले दबाव की मात्रा को बदलता है।
स्क्रिबलिंग बढ़ते बच्चे को उपलब्धि की भावना देता है। यह कुछ उत्पादन में पहली उपलब्धियों में से एक है।
कुछ बच्चे जिन्हें पढ़ाया गया है, वे कुछ अक्षर और संख्याएँ लिख सकते हैं या वर्ग और त्रिभुज बना सकते हैं। लेकिन ये आंकड़े सटीक नहीं हैं और बच्चों को इन्हें लिखना मुश्किल लगता है।
उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।

ପ୍ରଥମ ତିନି ବର୍ଷ ମଧ୍ୟରେ ଶିଶୁର ଉତ୍ତମ ମୋଟର କ ill ଶଳ କିପରି ବିକାଶ ହୁଏ?

ସୂକ୍ଷ୍ମ ମୋଟର କ skills ଶଳ ହେଉଛି ଆମ ହାତ ଏବଂ ହାତଗୋଡ଼ରେ ଥିବା ଛୋଟ ମାଂସପେଶୀ ବ୍ୟବହାର କରି ଗତି କରିବାର କ୍ଷମତା |

ଯେତେବେଳେ ଆମେ ସୂକ୍ଷ୍ମ ମୋଟର କ skills ଶଳ ବ୍ୟବହାର କରୁ ଏହାର କିଛି ଉଦାହରଣ ଅଛି:

ଗୋଟିଏ କଲମ କିମ୍ବା ପେନ୍ସିଲ ଧରି |
ଚିତ୍ର ଆଙ୍କିବା ଏବଂ ସୁନ୍ଦର ଭାବରେ ଲେଖିବା |
ଏକ କୀବୋର୍ଡ୍ ବ୍ୟବହାର କରି |
କଞ୍ଚା, ଶାସକ ଏବଂ ଅନ୍ୟାନ୍ୟ ଉପକରଣ ବ୍ୟବହାର କରି |

ସାତରୁ ବାର ମାସ ମଧ୍ୟରେ ସୂକ୍ଷ୍ମ ମୋଟର କ skills ଶଳ ମଧ୍ୟ ବିକାଶ ହୁଏ | ଶିଶୁର ଧାରଣା ଉନ୍ନତ ହୁଏ |

ସାତ ମାସର ପିଲାଟି ଆଙ୍ଗୁଠି ସାହାଯ୍ୟରେ ଛୋଟ ଜିନିଷ ଉପରେ ଚ ra ିପାରେ କିନ୍ତୁ ଏପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ସେଗୁଡ଼ିକୁ ଉଠାଇ ପାରିବ ନାହିଁ | ଏହା ଆଙ୍ଗୁଠି ଏବଂ ଅଗ୍ରଭାଗ ମଧ୍ୟରେ ସମନ୍ୱୟ ଆବଶ୍ୟକ କରେ | ଏହି ଦକ୍ଷତା ଆଠ ମାସ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ବିକଶିତ ହୁଏ ଏବଂ ସେ ନିଜ ପାତ୍ରରୁ କିଛି ଖାଇବାକୁ ନେଇପାରେ |
ସେ ମଧ୍ୟ ତାଙ୍କ ହାତରେ ଏକ ବସ୍ତୁ ବୁଲାଇପାରେ | 9-12 ମାସ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଶିଶୁ ଏକ ବସ୍ତୁକୁ ହସ୍ତାନ୍ତର କରିବା ପାଇଁ ଗୋଟିଏ ହାତ ବ୍ୟବହାର କରେ ଏବଂ ଅନ୍ୟ ହାତକୁ ଏହାକୁ ନିୟନ୍ତ୍ରଣ କରିବା ପାଇଁ ଆଣିଥାଏ | ଗୋଟିଏ ବର୍ଷରେ ଶିଶୁ ଜିନିଷ ଫିଙ୍ଗିବାରେ ସକ୍ଷମ, ଯାହା ମାଂସପେଶୀ ସମନ୍ୱୟ ବୃଦ୍ଧି କରିଥାଏ |

ଛୋଟ ବେଳୁ ପିଲାଟି ତା’ର ହାତ ବ୍ୟବହାର କରିବାରେ ଅଧିକ ଦକ୍ଷ ହୋଇଯାଏ | ତା’ର ଧାରଣା ଭଲ ହୋଇଯାଏ | ସେ ଛୋଟ ଜିନିଷ ଉଠାଇ ଧରି ରଖିବାରେ ସକ୍ଷମ | ଫଳସ୍ୱରୂପ, ସେ ଅନେକ କାର୍ଯ୍ୟ କରିବାକୁ ସକ୍ଷମ ଅଟନ୍ତି ଯାହା ତାଙ୍କ ପାଇଁ ପୂର୍ବରୁ କଷ୍ଟସାଧ୍ୟ ଥିଲା |

ଧର:

15 ମାସର ଶିଶୁ ଯେପରି ଆଙ୍ଗୁଠି ଏବଂ ଆଙ୍ଗୁଠି ବ୍ୟବହାର କରି ତୁମର ଉଠାଇ ପାରିବେ | ଏକ ବସ୍ତୁ ଧରି ରଖିବା ପାଇଁ ଅଗ୍ରଭାଗ ଏବଂ ଆଙ୍ଗୁଠିକୁ ବ୍ୟବହାର କରିବାର ଏହି କ ill ଶଳ ଅତ୍ୟନ୍ତ ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ଏବଂ ଆମ ଦ day ନନ୍ଦିନ ଜୀବନରେ ଅନେକ କାର୍ଯ୍ୟ ପାଇଁ ବ୍ୟବହୃତ ହୁଏ ଯେପରିକି ଲେଖିବା, ବଟନ୍ ବଟନ୍ କରିବା ଏବଂ ଖାଇବା |
ଛୋଟ ପିଲାମାନେ ବଟନ୍, ପଥର କିମ୍ବା ମଞ୍ଜି ପରି ଛୋଟ ବସ୍ତୁ ଉଠାଇବାକୁ ସକ୍ଷମ ଅଟନ୍ତି | ଯେହେତୁ ସେମାନଙ୍କର ଧାରଣା ଉନ୍ନତ ହୁଏ, ସେମାନେ ଷ୍ଟାକିଂ ବସ୍ତୁକୁ ଉପଭୋଗ କରନ୍ତି ଯାହା ଦ୍ 18 ାରା ଜଣେ 18 ମାସର ଶିଶୁ ଟାୱାର ନିର୍ମାଣ ପାଇଁ ଅନ୍ୟ ଉପରେ କିଛି କାଠ ବ୍ଲକ୍ ବ୍ୟବସ୍ଥା କରିପାରନ୍ତି | ସେ ବାରମ୍ବାର ବ୍ଲକଗୁଡିକୁ ତଳକୁ ଠେଲିବା ଏବଂ ସେଗୁଡିକୁ ଷ୍ଟକ୍ କରିବାରେ ଆନନ୍ଦିତ | ଆଖି-ହାତ ସମପଦସ୍ଥ କରଣ ତେଣୁ develops ଯେ toddlers ଏହାର ଢାଙ୍କୁଣି ରେ ନିର୍ମିତ ଏକ ଛୋଟ ଗାତ ମାଧ୍ୟମରେ ଏକ ପାତ୍ର ଭିତରକୁ pebbles କିମ୍ବା ବଟନ ଠେଲିବି। ତିନି ବର୍ଷ ସୁଦ୍ଧା, ସେମାନେ ଏକ ବହିର ପୃଷ୍ଠାଗୁଡ଼ିକୁ ଯଥେଷ୍ଟ ଭଲ ଭାବରେ ବୁଲାଇ ପାରିବେ |
ଛୋଟ ପିଲାମାନେ ନିଜେ ଖାଇବା ଆରମ୍ଭ କରି ଦେଇଛନ୍ତି। ସେମାନେ ତୁମ୍ବକୁ ଦୁଇ ହାତରେ ଦୃ firm ଭାବରେ ଧରି ରଖିପାରିବେ ଏବଂ ଏଥିରୁ ପିଇବାକୁ ଟିପ୍ କରିପାରିବେ | ଅବଶ୍ୟ, ଏହା କରିବାବେଳେ ସେମାନେ କିଛି ବିଷୟବସ୍ତୁ ଛିଞ୍ଚନ୍ତି |
ଚାମଚ କିମ୍ବା ହାତ ବ୍ୟବହାର କରି ସେମାନେ ନିଜେ ଖାଦ୍ୟ ଖାଇବାକୁ ଜିଦ୍ ଧରିପାରନ୍ତି | ଏହା କରିବାବେଳେ, ସେମାନେ ମୁହଁରେ କିଛି ଘଷନ୍ତି ଏବଂ ପାତ୍ରରୁ ପାଟିରେ ନେଇଯାଉଥିବା ବେଳେ ସେଥିରୁ କିଛି ପକାନ୍ତି | ତିନିବର୍ଷ ସୁଦ୍ଧା, ସେମାନେ ବିନା ଧୂଳିରେ ଖାଦ୍ୟ ଖାଇବାରେ ସଫଳ ହୁଅନ୍ତି ଏବଂ illing ାଳିବା ବିନା ଏକ କପରୁ ପିଇପାରିବେ |

ଲିପିବଦ୍ଧ:

ଜୀବନର ଦ୍ୱିତୀୟ ବର୍ଷରେ କିଛି ସମୟ, ଛୋଟ ପିଲାଟି ‘ଆବିଷ୍କାର’ ଆବିଷ୍କାର କଲା | ସ୍କ୍ରିବଲିଂ ହେଉଛି ଲେଖିବାର ପ୍ରାଥମିକ ପର୍ଯ୍ୟାୟ | ବର୍ଦ୍ଧିତ ମାଂସପେଶୀ ସମନ୍ୱୟ ଏବଂ ଏକ ଚକ୍ ଧରି ରଖିବା ପାଇଁ ବୁ thumb ା ଆଙ୍ଗୁଠି ଏବଂ ଫରଫିଙ୍ଗର ବ୍ୟବହାର କରିବାର କ୍ଷମତା ଛୋଟ ପିଲାକୁ ଖଣ୍ଡନ କରିବାକୁ ସକ୍ଷମ କରେ |

ଯେତେବେଳେ ଛୋଟ ପିଲାଟି ପ୍ରଥମେ ଖଣ୍ଡନ କରିବାକୁ ଲାଗିଲା, ସେ ତା’ର ପାପୁଲିରେ କ୍ରାୟନ୍ କୁ ଜୋରରେ ଧରିଥାଏ | ତା’ର ଜାବୁଡ଼ି ଏତେ ଜୋରରେ ଯେ କିଛି ସମୟ ପରେ ଥକାପଣ ହେତୁ କ୍ରାୟନ୍ ଖସିଯାଏ | ଛୋଟ ପିଲାଟି ଆଙ୍କିଥିବା ରେଖା ଆମକୁ ଲାଗୁଥାଇପାରେ ଯେପରି ସେଗୁଡିକ ଦୁର୍ଘଟଣା ଦ୍ୱାରା ଅଙ୍କିତ ହୋଇଛି, କିନ୍ତୁ ଛୋଟ ପିଲାଟି ଅତି ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ପଛ ଏବଂ ଆଗ ଧାଡ଼ିଗୁଡିକ କରିଛି | ଏହି ସମୟରେ ରେଖାଗୁଡ଼ିକ ସାଧାରଣତ straight ସିଧା ହୋଇଥାଏ |
ଛୋଟ ପିଲାଟି ରେଖାଗୁଡ଼ିକୁ ବାରମ୍ବାର ପୁନରାବୃତ୍ତି କରେ | ଶାସ୍ତ୍ରୀକରଣରେ ଏତେ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟ ଯେ ସେ ଯେତେବେଳେ ଅନ୍ୟ କିଛି ଦେଖିପାରନ୍ତି, ସେ ସମାନ ଆନ୍ଦୋଳନ ଜାରି ରଖିବେ | ଏହି ବୟସରେ ଛୋଟ ପିଲାଟିର ହାତର ଗତିବିଧି ଉପରେ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ନିୟନ୍ତ୍ରଣ ନାହିଁ ଏବଂ ତେଣୁ ରେଖାଗୁଡ଼ିକ ପ୍ରାୟତ the କାଗଜରୁ ଚାଲିଯାଏ | ଛୋଟ ପିଲାଟି ଲେଖିବାବେଳେ ତା’ର ପୁରା ବାହୁ ଘୁଞ୍ଚାଏ | ବୟସ୍କ ପିଲା ଏବଂ ବୟସ୍କଙ୍କ ତୁଳନାରେ ସେ କ୍ରାୟନ୍ ଚଳାଇବା ପାଇଁ ନିଜ ହାତଗୋଡକୁ ବ୍ୟବହାର କରନ୍ତି ନାହିଁ |
ଅତଏବ, ତାଙ୍କ ବାହୁର ଗତିବିଧିକୁ ସ୍କ୍ରବ୍ କରିବାବେଳେ କାନ୍ଧ ଏବଂ କୋଣକୁ ନିୟୋଜିତ କରି ବଡ଼ ଧରଣର ସୁଇପିଙ୍ଗ୍ | ଏହି ପର୍ଯ୍ୟାୟ ଅ and େଇରୁ ତିନି ବର୍ଷ ବୟସ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ବ୍ୟାପିଥାଏ |
ତଥାପି କିଛି ଛୋଟ ପିଲାମାନେ ତିନି ବର୍ଷ ବୟସ ହେବା ପୂର୍ବରୁ ପରବର୍ତ୍ତୀ ପର୍ଯ୍ୟାୟକୁ ଯାଇପାରନ୍ତି | ଏହି ପର୍ଯ୍ୟାୟରେ, ଅର୍ଦ୍ଧ-ବୃତ୍ତାକାର ଏବଂ ବୃତ୍ତାକାର s ାଞ୍ଚା ଏବଂ ଲୁପ୍ ଦେଖାଯାଏ | ଏହା ସୂଚିତ କରେ ଯେ ଛୋଟ ପିଲାଟି ହାତଗୋଡ଼ର ଗତିବିଧି ବ୍ୟବହାର କରିବାକୁ ଆରମ୍ଭ କରିଛି | ଏହା ଉତ୍ତମ ମାଂସପେଶୀ ସମନ୍ୱୟକୁ ପ୍ରତିଫଳିତ କରେ |
ଶାସ୍ତ୍ରୀମାନଙ୍କୁ ବର୍ତ୍ତମାନ କାଗଜ ଚଲାଇବାକୁ ଅନୁମତି ଦିଆଯାଉ ନାହିଁ, ଆଖି-ହାତ ସମନ୍ୱୟ ଏବଂ ମାଂସପେଶୀ ନିୟନ୍ତ୍ରଣର ସଙ୍କେତ | ଛୋଟ ପିଲାଟି ବିଭିନ୍ନ ପ୍ରକାରର ଶାସ୍ତ୍ରୀ ସହିତ ପରୀକ୍ଷଣ କରେ ଏବଂ ସେ କ୍ରାୟନ୍ ଉପରେ କେତେ ପରିମାଣର ଚାପ ପ୍ରୟୋଗ କରେ |
ସ୍କ୍ରିବଲିଂ ବ growing ୁଥିବା ପିଲାକୁ କୃତିତ୍ୱର ଭାବନା ଦେଇଥାଏ | କିଛି ଉତ୍ପାଦନରେ ଏହା ପ୍ରଥମ ସଫଳତା ମଧ୍ୟରୁ ଗୋଟିଏ |
କିଛି ଛୋଟ ପିଲାମାନଙ୍କୁ ଯେଉଁମାନେ ଶିକ୍ଷା ଦିଆଯାଇଛି ସେମାନେ କିଛି ବର୍ଣ୍ଣମାଳା ଏବଂ ସଂଖ୍ୟା ଲେଖିପାରନ୍ତି କିମ୍ବା ବର୍ଗ ଏବଂ ତ୍ରିରଙ୍ଗା ଅଙ୍କନ କରିପାରନ୍ତି | କିନ୍ତୁ ଏହି ସଂଖ୍ୟାଗୁଡିକ ସଠିକ୍ ନୁହେଁ ଏବଂ ପିଲାମାନେ ସେମାନଙ୍କୁ ଲେଖିବା କଷ୍ଟକର |
ସେମାନଙ୍କୁ ଏପରି କରିବାକୁ ବାଧ୍ୟ କରାଯିବା ଉଚିତ୍ ନୁହେଁ |

5 . Enumerate the factors that should be considered by you when looking for space for setting up a child care center. 10 mark
Encouraging safe exploration is an important job for child care providers. Children are natural
explorers and risk-takers. They move quickly, put things in their mouths, drop or throw things, and love to climb and hide. Keeping children safe is crucial. But setting up an environment where you spend all day saying “Don’t touch this!” or “Stay away from that!” is not the answer. Instead of spending your time redirecting children, think carefully about how you set up the environment.

Giving children the chance to explore freely in a well-organized and child-safe space is a much more effective way to manage behavior and encourage learning.

If children in your child care program are misbehaving, check to see whether the environment is
contributing to the problem. Take a close look at your space, indoors and outdoors. Setting up a safe
place to play and providing appropriate toys can keep children interested in learning, reduce behavior problems, and save you from saying “No” too often.

Here are some tips to create a space that engages children and encourages safe exploration.

Try a child’s-eye view:

  • Get down to the children’s height and walk or crawl around the space.
  • Pay attention to hazards you might not notice when standing up.
  • By looking at the space from the child’s viewpoint, you may see accidents waiting to happen.
  • Make sure your space is child-safe: Whether you are in a child care center or a family child care home, make your space safe for children.
  • Store dangerous chemicals and medicines out of children’s reach.
  • Cover electrical outlets, and store dangerous or breakable objects up high.
  • Fix, lock up, or discard anything that might be a danger to children. Be sure all outdoor play
    areas are fenced in to keep children safe.

Arrange your space wisely:

  • Often the way you organize your childcare space can make a difference in how children behave.
  • If a space is too open, you may find children running wildly.
  • Pay attention to where behavior problems occur.
  • Set up shelves and other furniture to divide the room into separate learning and play areas.
  • This will cut down on running and help children find activities more easily.
  • Identify and cut off “runways:“ Long, narrow spaces – including open hallways and long aisles in the classroom – encourage running. Break up those long, narrow spaces by rearranging furniture, or add barriers to discourage runners.

Organize toys and supplies to make things easy for children:

  • You will have fewer problems if children can find loys and supplies.
  • Place toys on low shelves.
  • Label the shelves with pictures and words so children will know where to put them back

Make sure there are enough toys:

  • Problems often arise when children do not have enough toys or materials to play with.
  • Think about what you need for children of different ages and interests.
  • Plenty of paper to draw on: materials to sort, collect, trade, and share; dress-up clothes and props; puzzles and games; and well-maintained equipment to climb or ride on will keep children busy and interested.

Make sure the toys match the children’s ages and abilities:

  • Infants need toys that they can shake, drop, mouth, roll, and otherwise explore with their bodies.
  • Toddlers need toys they can push, pull , grab, fill, dump without causing major damage.
  • Toddlers have not yet learned how to share well, so purchasing several favorite toys can help prevent a lot of behavior problems.
  • Preschoolers need more complex materials that keep them interested for Longer periods and challenge their new learning skills.

Teach children how to handle toys and materials:

  • Explain and model how to carefully handle books, toys, and other materials.
  • Even very young children can learn to treasure books, to turn the pages gently, to carry them carefully, and to read them in special places.
  • Repeat this message a number of times, and give children plenty of opportunities to practice.

चाइल्ड केयर सेंटर स्थापित करने के लिए जगह की तलाश करते समय उन कारकों को सूचीबद्ध करें जिन पर आपको विचार करना चाहिए,

बाल देखभाल प्रदाताओं के लिए सुरक्षित अन्वेषण को प्रोत्साहित करना एक महत्वपूर्ण कार्य है। बच्चे स्वाभाविक हैं
खोजकर्ता और जोखिम लेने वाले। वे तेजी से आगे बढ़ते हैं, चीजों को अपने मुंह में डालते हैं, चीजों को गिराते या फेंकते हैं, और चढ़ना और छिपना पसंद करते हैं। बच्चों को सुरक्षित रखना बेहद जरूरी है। लेकिन एक ऐसा वातावरण स्थापित करना जहाँ आप सारा दिन यह कहते हुए बिताएँ कि “इसे मत छुओ!” या “उससे दूर रहो!” उत्तर नहीं है। अपना समय बच्चों को पुनर्निर्देशित करने में खर्च करने के बजाय, ध्यान से सोचें कि आपने पर्यावरण को कैसे स्थापित किया है।

बच्चों को एक सुव्यवस्थित और बाल-सुरक्षित स्थान में स्वतंत्र रूप से तलाशने का मौका देना व्यवहार को प्रबंधित करने और सीखने को प्रोत्साहित करने का एक अधिक प्रभावी तरीका है।

यदि आपके चाइल्ड केयर प्रोग्राम में बच्चे दुर्व्यवहार कर रहे हैं, तो यह देखने के लिए जाँच करें कि क्या पर्यावरण है
समस्या में योगदान दे रहा है। अपने स्थान, घर के अंदर और बाहर पर करीब से नज़र डालें। एक तिजोरी की स्थापना
खेलने के लिए जगह और उपयुक्त खिलौने उपलब्ध कराने से बच्चों की सीखने में रुचि बनी रह सकती है, व्यवहार संबंधी समस्याएं कम हो सकती हैं, और आपको बार-बार “नहीं” कहने से भी बचाया जा सकता है।

बच्चों को संलग्न करने और सुरक्षित अन्वेषण को प्रोत्साहित करने वाली जगह बनाने के लिए यहां कुछ युक्तियां दी गई हैं।

बच्चों के नज़रिए से देखें:

  • बच्चों की ऊंचाई तक उतरें और अंतरिक्ष में घूमें या रेंगें।
  • उन खतरों पर ध्यान दें जिन्हें आप खड़े होने पर नोटिस नहीं कर सकते हैं।
  • बच्चे के दृष्टिकोण से अंतरिक्ष को देखने पर, हो सकता है कि आप दुर्घटनाएं होने की प्रतीक्षा कर रहे हों।
  • सुनिश्चित करें कि आपका स्थान बच्चों के लिए सुरक्षित है: चाहे आप चाइल्ड केयर सेंटर में हों या फैमिली चाइल्ड केयर
  • होम में हों, बच्चों के लिए अपने स्थान को सुरक्षित बनाएं।
  • खतरनाक रसायनों और दवाओं को बच्चों की पहुंच से दूर रखें।
  • बिजली के आउटलेट को कवर करें, और खतरनाक या टूटने योग्य वस्तुओं को ऊपर रखें।
  • बच्चों के लिए खतरा हो सकने वाली किसी भी चीज़ को ठीक करना, बंद करना या त्याग देना। सुनिश्चित करें कि सभी आउटडोर खेल
  • बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए इलाकों में घेराबंदी की गई है।

अपने स्थान को बुद्धिमानी से व्यवस्थित करें:

  • अक्सर जिस तरह से आप अपने चाइल्ड केयर स्पेस को व्यवस्थित करते हैं, उससे बच्चों के व्यवहार में अंतर आ सकता है।
  • यदि कोई स्थान बहुत अधिक खुला है, तो आप बच्चों को बेतहाशा दौड़ते हुए पा सकते हैं।
  • व्यवहार की समस्याएं कहां होती हैं, इस पर ध्यान दें।
  • कमरे को अलग सीखने और खेलने के क्षेत्रों में विभाजित करने के लिए अलमारियां और अन्य फर्नीचर स्थापित करें।
  • यह दौड़ने में कटौती करेगा और बच्चों को गतिविधियों को अधिक आसानी से खोजने में मदद करेगा।
  • “रनवे” को पहचानें और काटें: “लंबे, संकरे स्थान – खुले हॉलवे और कक्षा में लंबे गलियारे सहित – दौड़ने को प्रोत्साहित करें। फर्नीचर को पुनर्व्यवस्थित करके उन लंबी, संकीर्ण जगहों को तोड़ दें, या धावकों को हतोत्साहित करने के लिए बाधाओं को जोड़ें।

बच्चों के लिए चीजों को आसान बनाने के लिए खिलौनों और आपूर्ति को व्यवस्थित करें:

  • यदि बच्चों को लोय और आपूर्ति मिल जाए तो आपको कम समस्याएँ होंगी।
  • खिलौनों को कम अलमारियों पर रखें।
  • अलमारियों को चित्रों और शब्दों के साथ लेबल करें ताकि बच्चों को पता चल जाए कि उन्हें वापस कहाँ रखना है

सुनिश्चित करें कि पर्याप्त खिलौने हैं:

  • समस्याएँ अक्सर तब उत्पन्न होती हैं जब बच्चों के पास खेलने के लिए पर्याप्त खिलौने या सामग्री नहीं होती है।
  • इस बारे में सोचें कि आपको विभिन्न उम्र और रुचियों के बच्चों के लिए क्या चाहिए।
  • आकर्षित करने के लिए बहुत सारे कागज: सॉर्ट करने, इकट्ठा करने, व्यापार करने और साझा करने के लिए सामग्री;
  • ड्रेस-अप कपड़े और सहारा; पहेली और खेल; और चढ़ाई या सवारी करने के लिए सुव्यवस्थित उपकरण बच्चों को व्यस्त और रुचिकर रखेंगे।

सुनिश्चित करें कि खिलौने बच्चों की उम्र और क्षमताओं से मेल खाते हैं:

  • शिशुओं को ऐसे खिलौनों की आवश्यकता होती है जिन्हें वे हिला सकते हैं, गिरा सकते हैं, मुंह, लुढ़क सकते हैं, और अन्यथा अपने शरीर के साथ खोज सकते हैं।
  • टॉडलर्स को ऐसे खिलौनों की आवश्यकता होती है जिन्हें वे बिना किसी बड़े नुकसान के धक्का दे सकते हैं, खींच सकते हैं, पकड़ सकते हैं, भर सकते हैं, डंप कर सकते हैं।
  • टॉडलर्स ने अभी तक अच्छी तरह से साझा करना नहीं सीखा है, इसलिए कई पसंदीदा खिलौने खरीदने से व्यवहार की बहुत सारी समस्याओं को रोकने में मदद मिल सकती है।
  • प्रीस्कूलर को अधिक जटिल सामग्री की आवश्यकता होती है जो उन्हें लंबे समय तक रुचि रखती है और उनके नए सीखने के कौशल को चुनौती देती है।

बच्चों को खिलौनों और सामग्रियों को संभालना सिखाएं:

  • किताबों, खिलौनों और अन्य सामग्रियों को सावधानीपूर्वक संभालने का तरीका समझाएं और मॉडल करें।
  • यहाँ तक कि बहुत छोटे बच्चे भी पुस्तकों को संजोकर रखना, पन्ने को धीरे से पलटना, उन्हें सावधानी से ले जाना और
  • विशेष स्थानों पर पढ़ना सीख सकते हैं।
  • इस संदेश को कई बार दोहराएं और बच्चों को अभ्यास के भरपूर अवसर दें।

6. Explain the meaning of the term conservation . Are preschool children able to conserve , justify your answer on the basis of Piaget experiment and research done later?

Conservation

Conservation means being able to understand that the quantity or the amount of a certain substance remains the same, even if its shape is changed or if it is transferred from one container to another, so long as nothing is added to or subtracted from it.

Piaget found that preschoolers were not able to conserve. He found that the ability to conduct develops after the preschool years.

Piaget’s Experiment

Piaget’s Experiment to taste conservation of amount  preschoolers are shown two identical glasses both of which have water filled to the same height, on being asked preschooler agree that the amount of water into the container is equal.

Then While The children watch the water from one glass is poured into the third class that is wider and shorter than the other two.

in this class the liquid obviously rises to the low height .

Then the child is asked whether there is the same amount of water in both glasses.

Most preschoolers insist that there is more water in the tall and thin glass. They forget that they have seen and said that the equal of water in the two classes was the same earlier.

Piaget’s explanation

  • preschooler cannot reason reverse their thinking , they cannot mentally retrace the steps for the child to conserve.  She has to mentally for the water back e into the original glass.  she has to think back on what happened.
  • preschooler children do not conserve because they have a tendency  ” to centre “ centring means that the child plays attention to the single and striking future of the object and the neglect all others .

letter research had shown that preschoolers children can reverse in the same classes same cases.  if while pouring the water from one class to another, the glass into which the water is being poured is covered from all sides so that the children cannot see the height of the water in it. Then they are able to conserve.

Conclusion

Preschoolers Show conservation only under the special condition when there are no distraction and when the situation is Familiar. They do not have a stable concept of conservation .  Reversibility of thought and the ability to consider many aspects simultaneously develope as the child enter the concrete operational period.

6. संरक्षण शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए। क्या प्री-स्कूल के बच्चे पियाजे के प्रयोग और बाद में किए गए शोध के आधार पर अपने उत्तर का संरक्षण करने में सक्षम हैं?

संरक्षण

संरक्षण का अर्थ है यह समझने में सक्षम होना कि किसी पदार्थ की मात्रा या मात्रा समान रहती है, भले ही उसका आकार बदल जाए या उसे एक कंटेनर से दूसरे कंटेनर में स्थानांतरित कर दिया जाए, जब तक कि उसमें कुछ भी जोड़ा या घटाया न जाए।

पियागेट ने पाया कि प्रीस्कूलर संरक्षण करने में सक्षम नहीं थे। उन्होंने पाया कि पूर्वस्कूली वर्षों के बाद आचरण करने की क्षमता विकसित होती है।

पियाजे का प्रयोग

मात्रा के संरक्षण के स्वाद के लिए पियागेट का प्रयोग प्रीस्कूलर को दो समान गिलास दिखाए जाते हैं, जिनमें से दोनों में समान ऊंचाई तक पानी भरा होता है, जब प्रीस्कूलर से पूछा जाता है कि कंटेनर में पानी की मात्रा बराबर है।

फिर जबकि बच्चे देखते हैं कि एक गिलास से पानी तीसरी कक्षा में डाला जाता है जो अन्य दो की तुलना में चौड़ा और छोटा होता है।

इस वर्ग में तरल स्पष्ट रूप से कम ऊंचाई तक बढ़ जाता है।

फिर बच्चे से पूछा जाता है कि क्या दोनों गिलासों में पानी समान मात्रा में है।

अधिकांश प्रीस्कूलर जोर देकर कहते हैं कि लंबे और पतले गिलास में पानी अधिक होता है। वे भूल जाते हैं कि उन्होंने देखा है और कहा है कि दो वर्गों में पानी के बराबर पहले समान था।

पियाजे की व्याख्या

प्रीस्कूलर अपनी सोच को उलटने का तर्क नहीं दे सकते हैं, वे मानसिक रूप से बच्चे के संरक्षण के लिए कदम नहीं उठा सकते हैं। उसे मूल गिलास में पानी वापस ई के लिए मानसिक रूप से करना होगा। उसे वापस सोचना होगा कि क्या हुआ था।
प्रीस्कूलर बच्चे संरक्षण नहीं करते हैं क्योंकि उनमें “केंद्र की ओर” केंद्रित होने की प्रवृत्ति होती है, जिसका अर्थ है कि बच्चा वस्तु के एकल और आकर्षक भविष्य पर ध्यान देता है और अन्य सभी की उपेक्षा करता है।

पत्र अनुसंधान से पता चला था कि प्रीस्कूलर बच्चे समान कक्षाओं में समान मामलों में उलट सकते हैं। यदि एक कक्षा से दूसरी कक्षा में पानी डालते समय जिस गिलास में पानी डाला जा रहा है, वह चारों ओर से ढका हो ताकि बच्चे उसमें पानी की ऊँचाई न देख सकें। तभी वे संरक्षित करने में सक्षम हैं।

निष्कर्ष

प्रीस्कूलर केवल विशेष स्थिति में संरक्षण दिखाते हैं जब कोई व्याकुलता नहीं होती है और जब स्थिति परिचित होती है। उनके पास संरक्षण की एक स्थिर अवधारणा नहीं है। जैसे ही बच्चा ठोस परिचालन अवधि में प्रवेश करता है, विचार की प्रतिवर्तीता और कई पहलुओं पर एक साथ विचार करने की क्षमता विकसित होती है।

6. ସଂରକ୍ଷଣ ଶବ୍ଦର ଅର୍ଥ ବ୍ୟାଖ୍ୟା କର | ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲାମାନେ ସଂରକ୍ଷଣ, ପିଆଗେଟ୍ ପରୀକ୍ଷଣ ଏବଂ ପରେ କରାଯାଇଥିବା ଅନୁସନ୍ଧାନ ଆଧାରରେ ତୁମର ଉତ୍ତରକୁ ଯଥାର୍ଥ କି?

ସଂରକ୍ଷଣ

ସଂରକ୍ଷଣ ଅର୍ଥ ବୁ to ିବାରେ ସକ୍ଷମ ହେବା ଯେ ଏକ ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ପଦାର୍ଥର ପରିମାଣ କିମ୍ବା ପରିମାଣ ସମାନ ରହିଥାଏ, ଯଦିଓ ଏହାର ଆକାର ପରିବର୍ତ୍ତନ ହୁଏ କିମ୍ବା ଯଦି ଏହା ଗୋଟିଏ ପାତ୍ରରୁ ଅନ୍ୟ ପାତ୍ରକୁ ସ୍ଥାନାନ୍ତରିତ ହୁଏ, ଯେପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଏଥିରୁ କିଛି ଯୋଗ କରାଯାଇ ନାହିଁ କିମ୍ବା ବାହାର କରାଯାଇ ନାହିଁ |

ପିଆଗେଟ୍ ଜାଣିବାକୁ ପାଇଲେ ଯେ ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲାମାନେ ସଂରକ୍ଷଣ କରିବାରେ ସକ୍ଷମ ନୁହଁନ୍ତି | ସେ ଜାଣିବାକୁ ପାଇଲେ ଯେ ପ୍ରାକ୍ ବିଦ୍ୟାଳୟ ବର୍ଷ ପରେ ଆଚରଣ କରିବାର କ୍ଷମତା ବିକାଶ ହୁଏ |

ପିଆଗେଟ୍ ର ପରୀକ୍ଷଣ |

ପ୍ରିସ୍କୁଲର ପରିମାଣର ସଂରକ୍ଷଣର ସ୍ୱାଦ ଚାଖିବା ପାଇଁ ପିଆଗେଟର ପରୀକ୍ଷଣରେ ଦୁଇଟି ସମାନ ଚଷମା ଦେଖାଯାଏ ଯାହା ଉଭୟ ସମାନ ଉଚ୍ଚତାରେ ଜଳ ଭରିଥାଏ, ପ୍ରିସ୍କୁଲରଙ୍କୁ ପଚରାଯିବା ପରେ ପାତ୍ରରେ ଜଳ ପରିମାଣ ସମାନ |

ତା’ପରେ ଯେତେବେଳେ ପିଲାମାନେ ଗୋଟିଏ ଗ୍ଲାସରୁ ପାଣି ଦେଖନ୍ତି ତୃତୀୟ ଶ୍ରେଣୀରେ poured ାଳି ଦିଆଯାଏ ଯାହାକି ଅନ୍ୟ ଦୁଇଟି ଅପେକ୍ଷା ପ୍ରଶସ୍ତ ଏବଂ ଛୋଟ |

ଏହି ଶ୍ରେଣୀରେ ତରଳ ପଦାର୍ଥ ସ୍ପଷ୍ଟ ଭାବରେ ନିମ୍ନ ଉଚ୍ଚତାକୁ ଉଠେ |

ତା’ପରେ ପିଲାକୁ ପଚରାଯାଏ ଉଭୟ ଗ୍ଲାସରେ ସମାନ ପରିମାଣର ପାଣି ଅଛି କି?

ଅଧିକାଂଶ ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲାମାନେ ଉଚ୍ଚ ଏବଂ ପତଳା କାଚରେ ଅଧିକ ଜଳ ଅଛି ବୋଲି ଜିଦ୍ ଧରିଥାନ୍ତି | ସେମାନେ ଭୁଲିଯାଇଛନ୍ତି ଯେ ସେମାନେ ଦେଖିଛନ୍ତି ଏବଂ କହିଛନ୍ତି ଯେ ଦୁଇ ଶ୍ରେଣୀରେ ଜଳର ସମାନତା ପୂର୍ବରୁ ସମାନ ଥିଲା |

ପିଆଗେଟ୍ ର ବ୍ୟାଖ୍ୟା |

ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟ ସେମାନଙ୍କର ଚିନ୍ତାଧାରାକୁ ଓଲଟପାଲଟ କରିପାରିବ ନାହିଁ, ସେମାନେ ଶିଶୁକୁ ସଂରକ୍ଷଣ କରିବା ପାଇଁ ପଦକ୍ଷେପଗୁଡ଼ିକୁ ମାନସିକ ସ୍ତରରେ ପୁନ r ପ୍ରକାଶ କରିପାରିବେ ନାହିଁ | ତାଙ୍କୁ ମୂଳ ଗ୍ଲାସରେ ପାଣି ଫେରାଇବା ପାଇଁ ମାନସିକ ସ୍ତରରେ କରିବାକୁ ପଡିବ | ଯାହା ଘଟିଲା ସେ ବିଷୟରେ ପୁନର୍ବାର ଚିନ୍ତା କରିବାକୁ ପଡିବ |
ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲାମାନେ ସଂରକ୍ଷଣ କରନ୍ତି ନାହିଁ କାରଣ ସେମାନଙ୍କର “କେନ୍ଦ୍ର” କେନ୍ଦ୍ର କରିବାର ପ୍ରବୃତ୍ତି ଅର୍ଥ ହେଉଛି ପିଲାଟି ବସ୍ତୁର ଏକକ ତଥା ଚମତ୍କାର ଭବିଷ୍ୟତ ପ୍ରତି ଧ୍ୟାନ ଦେଇଥାଏ ଏବଂ ଅନ୍ୟ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଅବହେଳା କରିଥାଏ |

ଅକ୍ଷର ଅନୁସନ୍ଧାନରୁ ଜଣାପଡିଛି ଯେ ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲାମାନେ ସମାନ ଶ୍ରେଣୀରେ ସମାନ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଓଲଟା ହୋଇପାରନ୍ତି | ଯଦି ଗୋଟିଏ ଶ୍ରେଣୀରୁ ଅନ୍ୟ ଶ୍ରେଣୀକୁ ପାଣି ing ାଳିବାବେଳେ, ଯେଉଁ ଗ୍ଲାସରେ ପାଣି poured ାଳାଯାଉଛି ତାହା ସବୁ ପାର୍ଶ୍ୱରୁ ଆଚ୍ଛାଦିତ ହୋଇଛି ଯାହା ଦ୍ the ାରା ପିଲାମାନେ ଏଥିରେ ଥିବା ଜଳର ଉଚ୍ଚତା ଦେଖି ପାରିବେ ନାହିଁ | ତା’ପରେ ସେମାନେ ସଂରକ୍ଷଣ କରିବାକୁ ସକ୍ଷମ ଅଟନ୍ତି |

ଉପସଂହାର

ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲାମାନେ କେବଳ ବିଶେଷ ଅବସ୍ଥାରେ ସଂରକ୍ଷଣ ପ୍ରଦର୍ଶନ କରନ୍ତି ଯେତେବେଳେ କ distr ଣସି ବିଭ୍ରାଟ ନଥାଏ ଏବଂ ଯେତେବେଳେ ପରିସ୍ଥିତି ପରିଚିତ ହୁଏ | ସଂରକ୍ଷଣର ସେମାନଙ୍କର ସ୍ଥିର ଧାରଣା ନାହିଁ | ଚିନ୍ତାଧାରାର ଓଲଟା ଏବଂ ଅନେକ ଦିଗକୁ ବିଚାର କରିବାର କ୍ଷମତା ଏକାସାଙ୍ଗରେ ବିକଶିତ ହୁଏ ଯେତେବେଳେ ପିଲାଟି କଂକ୍ରିଟ୍ କାର୍ଯ୍ୟକ୍ଷମ ଅବସ୍ଥାରେ ପ୍ରବେଶ କରେ |

7. What is self-concept , explain how child rearing practice can help the child to develop a positive self concept .  10 marks

As the child ability develops, She achieves  a feeling of confidence, she recount her ability saying ” I can jump high” , ” I can cross the road myself “.

In this way, she learns about herself and these become a part of the concept of life.

The toddler acquires a sense of her physical self, that is the understanding that she is an individual, the next in forming a concept of self is defining oneself in terms of one’s physical characteristics, attitudes beliefs, and personality traits.

This process starts from the preschool year and continue throughout one’s life

Example

To give an example of self-concept of a preschool child he said that the following sentence when asked to tell something about himself .

“My name is Dev, I am 5 years old. I live in Bhubaneswar. I have black eyes.  I go to school. I love biriyani.”

Self concept in later year

over the years the child self concept become more elaborate. As her thinking matures she is able to think about herself.

The older the child focus lesson external characteristics and more in the internal qualities she refers to her feeling and thoughts while describing herself.

Over the years, one’s self-concept becomes broader and many dimensions are added to it. the self-concept is not static, it changes as the person changes her opinion and beliefs.

Interaction with others also influenced the child self-concept

During the everyday activity, parent and other provide the child with information about herself when the parent frequently gives the child a positive feedback the child develop high self-esteem and when the parent consistently gives the child a negative evaluation of her ability the child’s self-esteem will be low.

child rearing practices can help the child to develop a positive self-concept.

the method used by parents to socialize the child towards appropriate behaviour and away from the inappropriate behavior , these methods are called the child rearing practices.

Socialization is the process by which children acquire behavior, skills,values, beliefs and the standard that are characteristics appropriate and desirable in their culture.

The child acquires appropriate behaviour through the direct teaching of parent, sibling  and teachers as well as the indirectly as the watches people and imitiate their behavior.

the affection oriented way of discipline is more effective in socialize in the child.

Conclusion

Thus,  it is important to focus on the affection oriented way of discipline and providing a firm and affectionate parenting to the child to develop  positive self concept.

स्व-अवधारणा क्या है, समझाइए कि कैसे बच्चे के पालन-पोषण का अभ्यास बच्चे को सकारात्मक आत्म-अवधारणा विकसित करने में मदद कर सकता है। 10 अंक

जैसे-जैसे बच्चे की क्षमता विकसित होती है, वह आत्मविश्वास की भावना प्राप्त करती है, वह अपनी क्षमता को बताती है कि “मैं ऊंची छलांग लगा सकती हूं”, “मैं खुद सड़क पार कर सकती हूं”।

इस तरह, वह अपने बारे में सीखती है और ये जीवन की अवधारणा का हिस्सा बन जाते हैं।

बच्चा अपने शारीरिक स्व की भावना प्राप्त करता है, यह समझ है कि वह एक व्यक्ति है, स्वयं की अवधारणा बनाने में अगला व्यक्ति की शारीरिक विशेषताओं, दृष्टिकोण विश्वासों और व्यक्तित्व लक्षणों के संदर्भ में स्वयं को परिभाषित कर रहा है।

यह प्रक्रिया पूर्वस्कूली वर्ष से शुरू होती है और जीवन भर जारी रहती है

उदाहरण

एक पूर्वस्कूली बच्चे की आत्म-अवधारणा का उदाहरण देने के लिए उन्होंने कहा कि निम्नलिखित वाक्य को अपने बारे में कुछ बताने के लिए कहा जाए।

“मेरा नाम देव है, मैं 5 साल का हूँ। मैं भुवनेश्वर में रहता हूँ। मेरी आँखें काली हैं। मैं स्कूल जाता हूँ। मुझे बिरयानी बहुत पसंद है।”

बाद के वर्ष में आत्म अवधारणा

इन वर्षों में बाल आत्म अवधारणा अधिक विस्तृत हो गई है। जैसे-जैसे उसकी सोच परिपक्व होती है वह अपने बारे में सोचने में सक्षम होती है।

जितना बड़ा बच्चा बाहरी विशेषताओं पर ध्यान केंद्रित करता है और आंतरिक गुणों में उतना ही अधिक वह खुद का वर्णन करते हुए अपनी भावनाओं और विचारों को संदर्भित करता है।

वर्षों से, किसी की आत्म-अवधारणा व्यापक हो जाती है और इसमें कई आयाम जुड़ जाते हैं। आत्म-अवधारणा स्थिर नहीं है, यह बदलती है क्योंकि व्यक्ति अपनी राय और विश्वास बदलता है।

दूसरों के साथ बातचीत ने भी बच्चे की आत्म-अवधारणा को प्रभावित किया

रोज़मर्रा की गतिविधि के दौरान, माता-पिता और अन्य बच्चे को अपने बारे में जानकारी प्रदान करते हैं जब माता-पिता अक्सर बच्चे को सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं, बच्चे में उच्च आत्म-सम्मान विकसित होता है और जब माता-पिता लगातार बच्चे को उसकी क्षमता का नकारात्मक मूल्यांकन देते हैं, तो बच्चे के आत्म- मान सम्मान कम होगा।

बच्चे के पालन-पोषण की प्रथाएँ बच्चे को एक सकारात्मक आत्म-अवधारणा विकसित करने में मदद कर सकती हैं।

माता-पिता द्वारा बच्चे को उचित व्यवहार के प्रति सामाजिक बनाने और अनुचित व्यवहार से दूर रखने के लिए जिस विधि का उपयोग किया जाता है, इन विधियों को बाल पालन अभ्यास कहा जाता है।

समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चे व्यवहार, कौशल, मूल्य, विश्वास और मानक प्राप्त करते हैं जो उनकी संस्कृति में उपयुक्त और वांछनीय विशेषताएँ हैं।

बच्चा उचित व्यवहार माता-पिता, भाई-बहन और शिक्षकों के प्रत्यक्ष शिक्षण के साथ-साथ अप्रत्यक्ष रूप से लोगों को देखता है और उनके व्यवहार का अनुकरण करता है।

अनुशासन का स्नेह उन्मुख तरीका बच्चे में सामूहीकरण करने में अधिक प्रभावी है।

निष्कर्ष

इस प्रकार, अनुशासन के स्नेह उन्मुख तरीके पर ध्यान केंद्रित करना और सकारात्मक आत्म अवधारणा विकसित करने के लिए बच्चे को एक दृढ़ और स्नेही पालन-पोषण प्रदान करना महत्वपूर्ण है।

ଆତ୍ମ-ସଂକଳ୍ପ କ’ଣ, ଶିଶୁ ପ୍ରତିପୋଷଣ ଅଭ୍ୟାସ କିପରି ଶିଶୁକୁ ଏକ ସକରାତ୍ମକ ଆତ୍ମ ଧାରଣା ବିକାଶରେ ସାହାଯ୍ୟ କରିପାରିବ ତାହା ବ୍ୟାଖ୍ୟା କର | 10 ମାର୍କ

ଶିଶୁର ଦକ୍ଷତା ବିକାଶ ହେବା ସହିତ ସେ ଆତ୍ମବିଶ୍ୱାସର ଭାବନା ହାସଲ କରନ୍ତି, ସେ ନିଜ ଦକ୍ଷତାକୁ ବର୍ଣ୍ଣନା କରି କହିଥିଲେ ଯେ “ମୁଁ ଉଚ୍ଚକୁ ଡେଇଁ ପାରିବି”, “ମୁଁ ନିଜେ ରାସ୍ତା ପାର ହୋଇପାରେ” |

ଏହିପରି, ସେ ନିଜ ବିଷୟରେ ଶିଖନ୍ତି ଏବଂ ଏହା ଜୀବନର ଧାରଣାର ଏକ ଅଂଶ ହୋଇଯାଏ |

ଛୋଟ ପିଲାଟି ତା’ର ଶାରୀରିକ ଆତ୍ମର ଏକ ଅନୁଭବ ହାସଲ କରେ, ତାହା ହେଉଛି ବୁ understanding ାମଣା ଯେ ସେ ଜଣେ ବ୍ୟକ୍ତି, ପରବର୍ତ୍ତୀ ସମୟରେ ଆତ୍ମର ଧାରଣା ଗଠନ କରିବାରେ ନିଜକୁ ଶାରୀରିକ ଗୁଣ, ମନୋଭାବ ବିଶ୍ beliefs ାସ ଏବଂ ବ୍ୟକ୍ତିତ୍ୱର ଗୁଣ ଅନୁଯାୟୀ ନିଜକୁ ପରିଭାଷିତ କରେ |

ଏହି ପ୍ରକ୍ରିୟା ପ୍ରାକ୍ ବିଦ୍ୟାଳୟ ବର୍ଷରୁ ଆରମ୍ଭ ହୋଇ ନିଜ ଜୀବନସାରା ଜାରି ରହିଥାଏ |

ଉଦାହରଣ |

ଏକ ପ୍ରାକ୍ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲାଙ୍କ ଆତ୍ମ-ଧାରଣାର ଏକ ଉଦାହରଣ ଦେବାକୁ ସେ କହିଥିଲେ ଯେ ଯେତେବେଳେ ନିଜ ବିଷୟରେ କିଛି କହିବାକୁ କୁହାଯାଏ ନିମ୍ନଲିଖିତ ବାକ୍ୟ |

“ମୋର ନାମ ଦେବ, ମୋର ବୟସ 5 ବର୍ଷ। ମୁଁ ଭୁବନେଶ୍ୱରରେ ରହେ। ମୋର କଳା ଆଖି ଅଛି। ମୁଁ ସ୍କୁଲ ଯାଏ। ମୁଁ ବିରିୟାନୀଙ୍କୁ ଭଲ ପାଏ।”

ପରବର୍ତ୍ତୀ ବର୍ଷରେ ଆତ୍ମ ଧାରଣା |

ବର୍ଷ ବର୍ଷ ଧରି ଶିଶୁ ଆତ୍ମ ଧାରଣା ଅଧିକ ବିସ୍ତୃତ ହୋଇଯାଏ | ତା’ର ଚିନ୍ତାଧାରା ପରିପକ୍ୱ ହେବାପରେ ସେ ନିଜ ବିଷୟରେ ଚିନ୍ତା କରିବାକୁ ସକ୍ଷମ ହୁଏ |

ପିଲାଟି ଅଧିକ ବୟସ୍କ ପାଠ୍ୟର ବାହ୍ୟ ବ characteristics ଶିଷ୍ଟ୍ୟ ଏବଂ ଆଭ୍ୟନ୍ତରୀଣ ଗୁଣରେ ସେ ନିଜକୁ ବର୍ଣ୍ଣନା କରିବା ସମୟରେ ତାଙ୍କ ଭାବନା ଏବଂ ଚିନ୍ତାଧାରାକୁ ସୂଚିତ କରେ |

ବର୍ଷ ବର୍ଷ ଧରି, ଜଣଙ୍କର ଆତ୍ମ-ଧାରଣା ବ୍ୟାପକ ହୋଇଯାଏ ଏବଂ ଏଥିରେ ଅନେକ ପରିମାଣ ଯୋଗ କରାଯାଇଥାଏ | ଆତ୍ମ-ଧାରଣା ସ୍ଥିର ନୁହେଁ, ବ୍ୟକ୍ତି ଜଣକ ତାଙ୍କ ମତ ଏବଂ ବିଶ୍ୱାସକୁ ପରିବର୍ତ୍ତନ କଲାବେଳେ ଏହା ବଦଳିଯାଏ |

ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ସହିତ କଥାବାର୍ତ୍ତା ମଧ୍ୟ ଶିଶୁ ଆତ୍ମ-ଧାରଣାକୁ ପ୍ରଭାବିତ କଲା |

ଦ day ନନ୍ଦିନ କାର୍ଯ୍ୟକଳାପ ସମୟରେ, ପିତାମାତା ଏବଂ ଅନ୍ୟମାନେ ପିଲାଙ୍କୁ ନିଜ ବିଷୟରେ ସୂଚନା ପ୍ରଦାନ କରନ୍ତି ଯେତେବେଳେ ପିତାମାତା ବାରମ୍ବାର ପିଲାଙ୍କୁ ଏକ ସକରାତ୍ମକ ମତାମତ ଦିଅନ୍ତି ପିଲାଟି ଉଚ୍ଚ ଆତ୍ମ ସମ୍ମାନ ବ develop ାଇଥାଏ ଏବଂ ଯେତେବେଳେ ପିତାମାତା କ୍ରମାଗତ ଭାବରେ ପିଲାକୁ ତା’ର ଦକ୍ଷତାର ନକାରାତ୍ମକ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ ଦିଅନ୍ତି | ସମ୍ମାନ କମ୍ ହେବ |

ଶିଶୁ ପ୍ରତିପୋଷଣ ଅଭ୍ୟାସ ପିଲାଙ୍କୁ ଏକ ସକରାତ୍ମକ ଆତ୍ମ-ଧାରଣା ବିକାଶରେ ସାହାଯ୍ୟ କରିଥାଏ |

ପିତାମାତାଙ୍କୁ ଶିଶୁକୁ ଉପଯୁକ୍ତ ଆଚରଣ ଆଡକୁ ତଥା ଅନୁପଯୁକ୍ତ ଆଚରଣଠାରୁ ଦୂରେଇ ରଖିବା ପାଇଁ ପିତାମାତାଙ୍କ ଦ୍ used ାରା ବ୍ୟବହୃତ ପଦ୍ଧତି, ଏହି ପଦ୍ଧତିଗୁଡ଼ିକୁ ଶିଶୁ ପାଳନର ଅଭ୍ୟାସ କୁହାଯାଏ |

ସାମାଜିକୀକରଣ ହେଉଛି ଏକ ପ୍ରକ୍ରିୟା ଯାହା ଦ୍ children ାରା ପିଲାମାନେ ଆଚରଣ, କ skills ଶଳ, ମୂଲ୍ୟବୋଧ, ବିଶ୍ beliefs ାସ ଏବଂ ମାନକ ହାସଲ କରନ୍ତି ଯାହା ସେମାନଙ୍କ ସଂସ୍କୃତିରେ ଉପଯୁକ୍ତ ଏବଂ ଆକାଂକ୍ଷିତ ବ characteristics ଶିଷ୍ଟ୍ୟ ଅଟେ |

ପିଲାଟି ପିତାମାତା, ଭାଇଭଉଣୀ ଏବଂ ଶିକ୍ଷକଙ୍କ ପ୍ରତ୍ୟକ୍ଷ ଶିକ୍ଷାଦାନ ତଥା ପରୋକ୍ଷରେ ଲୋକମାନଙ୍କୁ ଦେଖିବା ଏବଂ ସେମାନଙ୍କ ଆଚରଣକୁ ଅନୁକରଣ କରିବା ଦ୍ୱାରା ଉପଯୁକ୍ତ ଆଚରଣ ହାସଲ କରେ |

ସ୍ନେହ ଭିତ୍ତିକ ଅନୁଶାସନ ପଦ୍ଧତି ଶିଶୁରେ ସାମାଜିକ ହେବାରେ ଅଧିକ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ |

ଉପସଂହାର

ଏହିପରି, ସ୍ନେହ ଭିତ୍ତିକ ଶୃଙ୍ଖଳା ଉପରେ ଧ୍ୟାନ ଦେବା ଏବଂ ସକରାତ୍ମକ ଆତ୍ମ ଧାରଣା ବିକାଶ ପାଇଁ ପିଲାଙ୍କୁ ଏକ ଦୃ firm ଏବଂ ସ୍ନେହପୂର୍ଣ୍ଣ ପିତାମାତା ପ୍ରଦାନ କରିବା ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ |

8. What is meant by animism? 5 MARK

  • Preschoolers believe that all things are living and they have intention and feeling just as we do .
  • everything is living the stones,the bridge, the road, the cloud, the sun ,the moon ,the table ,the pencil.
  • Preschoolers believe that everything has life. Piaget called this quality of their thought is animism.

Example

for a child, the moon and the cloud are alive, because it moves it makes feel them alive.

Preschoolers have their own views and explanation about things.

8. जीववाद का क्या अर्थ है? 5 मार्क

प्रीस्कूलर मानते हैं कि सभी चीजें जीवित हैं और उनके पास हमारे जैसा ही इरादा और भावना है।
सब कुछ जीवित है पत्थर, पुल, सड़क, बादल, सूरज, चाँद, मेज, पेंसिल।
प्रीस्कूलर मानते हैं कि हर चीज में जीवन होता है। पियाजे ने अपने विचार के इस गुण को जीववाद कहा है।

उदाहरण

एक बच्चे के लिए, चंद्रमा और बादल जीवित हैं, क्योंकि यह चलता है यह उन्हें जीवित महसूस कराता है।

प्रीस्कूलर के पास चीजों के बारे में अपने विचार और स्पष्टीकरण होते हैं।

8. ଆନିଜିମ୍ ଦ୍ୱାରା କ’ଣ ବୁ? ାଯାଏ? 5 ମାର୍କ

ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲାମାନେ ବିଶ୍ believe ାସ କରନ୍ତି ଯେ ସମସ୍ତ ଜିନିଷ ଜୀବନ୍ତ ଏବଂ ସେମାନଙ୍କର ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟ ଏବଂ ଅନୁଭବ ମଧ୍ୟ ଆମ ଭଳି |
ସବୁକିଛି ପଥର, ବ୍ରିଜ୍, ରାସ୍ତା, ମେଘ, ସୂର୍ଯ୍ୟ, ଚନ୍ଦ୍ର, ଟେବୁଲ୍, ପେନ୍ସିଲ୍ |
ପ୍ରେସ୍କୁଲରମାନେ ବିଶ୍ୱାସ କରନ୍ତି ଯେ ପ୍ରତ୍ୟେକ ଜିନିଷରେ ଜୀବନ ଅଛି | ପିଆଗେଟ୍ ସେମାନଙ୍କର ଚିନ୍ତାଧାରାର ଏହି ଗୁଣକୁ ଆନିଜିମ୍ ବୋଲି କହିଛନ୍ତି |

ଉଦାହରଣ |

ଏକ ଶିଶୁ ପାଇଁ, ଚନ୍ଦ୍ର ଏବଂ ମେଘ ଜୀବନ୍ତ, କାରଣ ଏହା ଗତି କଲାବେଳେ ସେମାନଙ୍କୁ ଜୀବନ୍ତ ଅନୁଭବ କରେ |

ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲାମାନଙ୍କର ନିଜସ୍ୱ ମତ ଏବଂ ଜିନିଷ ବିଷୟରେ ବ୍ୟାଖ୍ୟା ଅଛି |

9 . What do you understand by the term autonomy? How can parents encourage the development of autonomy? 5 MARK

Autonomy means being able to act independently, to be able to make one’s choices. The toddler develops autonomy when the parents encourage her efforts to do things on her own.

What is autonomy?

Autonomy is the ability of a person to act on their own free will. When a child has autonomy, even in small ways, it helps build his confidence, self-esteem and independence.
Autonomy is a critical part of learning for all children.

In most children (even toddlers and preschoolers), key ways to encourage autonomy include:

  • explicitly role modeling desired tasks,
  • encouraging your child to try tasks that he/she has not done before,
  • offering realistic choices,
  • respecting their efforts to complete the task.

9) स्वायत्तता शब्द से आप क्या समझते हैं? माता-पिता स्वायत्तता के विकास को कैसे प्रोत्साहित कर सकते हैं?

स्वायत्तता का अर्थ है स्वतंत्र रूप से कार्य करने में सक्षम होना, किसी की पसंद बनाने में सक्षम होना। बच्चा स्वायत्तता विकसित करता है जब माता-पिता उसे अपने दम पर चीजों को करने के प्रयासों को प्रोत्साहित करते हैं।

स्वायत्तता क्या है?

स्वायत्तता व्यक्ति की अपनी स्वतंत्र इच्छा पर कार्य करने की क्षमता है। जब एक बच्चे को स्वायत्तता मिलती है, यहां तक कि छोटे तरीकों से, यह उसके आत्मविश्वास, आत्म-सम्मान और स्वतंत्रता का निर्माण करने में मदद करता है।
स्वायत्तता सभी बच्चों के लिए सीखने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

अधिकांश बच्चों (यहां तक कि बच्चों और पूर्वस्कूली) में, स्वायत्तता को प्रोत्साहित करने के प्रमुख तरीके शामिल हैं:

वांछित कार्यों को स्पष्ट रूप से भूमिका दें,
अपने बच्चे को उन कार्यों को करने के लिए प्रोत्साहित करना जो उसने पहले नहीं किए हैं,
यथार्थवादी विकल्पों की पेशकश,
कार्य को पूरा करने के उनके प्रयासों का सम्मान करना।

ସ୍ onomy ାଧୀନତା ଶବ୍ଦ ଦ୍ୱାରା ଆପଣ କ’ଣ ବୁ? ନ୍ତି? ପିତାମାତାମାନେ କିପରି ସ୍ onomy ାଧୀନତାର ବିକାଶକୁ ଉତ୍ସାହିତ କରିପାରିବେ?

ସ୍ onomy ାଧୀନତାର ଅର୍ଥ ହେଉଛି ସ୍ independ ାଧୀନ ଭାବରେ କାର୍ଯ୍ୟ କରିବାକୁ ସକ୍ଷମ ହେବା, ଜଣଙ୍କର ପସନ୍ଦ କରିବାକୁ ସକ୍ଷମ ହେବା | ଯେତେବେଳେ ପିତାମାତାମାନେ ନିଜେ କିଛି କରିବା ପାଇଁ ତାଙ୍କ ଉଦ୍ୟମକୁ ଉତ୍ସାହିତ କରନ୍ତି ସେତେବେଳେ ଛୋଟ ପିଲାଟି ସ୍ onomy ାଧୀନତା ବିକାଶ କରିଥାଏ |

ସ୍ onomy ାଧୀନତା କ’ଣ?

ସ୍ onomy ାଧୀନତା ହେଉଛି ଜଣେ ବ୍ୟକ୍ତିଙ୍କର ନିଜ ଇଚ୍ଛାରେ କାର୍ଯ୍ୟ କରିବାର କ୍ଷମତା | ଯେତେବେଳେ ଏକ ଶିଶୁର ସ୍ onomy ାଧୀନତା ଥାଏ, ଛୋଟ ଉପାୟରେ ମଧ୍ୟ, ଏହା ତାଙ୍କର ଆତ୍ମବିଶ୍ୱାସ, ଆତ୍ମ ସମ୍ମାନ ଏବଂ ସ୍ independence ାଧୀନତା ସୃଷ୍ଟି କରିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରିଥାଏ |
ସ୍ children ାଧୀନତା ସମସ୍ତ ପିଲାଙ୍କ ପାଇଁ ଶିକ୍ଷାର ଏକ ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ଅଂଶ |

ଅଧିକାଂଶ ପିଲା (ଏପରିକି ଛୋଟ ପିଲା ଏବଂ ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟ), ସ୍ onomy ାଧୀନତାକୁ ଉତ୍ସାହିତ କରିବାର ମୁଖ୍ୟ ଉପାୟଗୁଡ଼ିକ ଅନ୍ତର୍ଭୁକ୍ତ:

ସ୍ପଷ୍ଟ ଭାବରେ ରୋଲ୍ ମଡେଲିଂ ଇଚ୍ଛିତ କାର୍ଯ୍ୟଗୁଡିକ,
ତୁମ ପିଲାଙ୍କୁ କାର୍ଯ୍ୟଗୁଡିକ ଚେଷ୍ଟା କରିବାକୁ ଉତ୍ସାହିତ କର ଯାହା ସେ ପୂର୍ବରୁ କରିନାହାଁନ୍ତି,
ବାସ୍ତବବାଦୀ ପସନ୍ଦ ପ୍ରଦାନ,
କାର୍ଯ୍ୟ ସମାପ୍ତ କରିବାକୁ ସେମାନଙ୍କର ଉଦ୍ୟମକୁ ସମ୍ମାନ କରେ |

10. Explain the meaning of the term attachment . Why is it important for the infant to develop the bond of attachment with the caregiver? 5 MARK

  • Within attachment theory, attachment means an affection bond or lie between an individual
    child and an attachment figure (usually a caregiver).
  • These bonds are based on the child’s need for safety, security and protection.
  • The biological aim of the bond is survival and the psychological aim of the bond is security.
  • Infants who have formed a positive attachment to one or both parents use them as secure bases from which to explore the environment.
  • These relationships are crucial for children’s well-being and for their emotional and social development.

आसक्ति’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए। शिशु के लिए देखभाल करने वाले के साथ लगाव का बंधन विकसित करना क्यों महत्वपूर्ण है?

  • लगाव सिद्धांत के भीतर, लगाव का अर्थ है एक व्यक्ति के बीच एक स्नेह बंधन या झूठ
  • बच्चा और एक लगाव का आंकड़ा (आमतौर पर एक देखभाल करने वाला)।
  • ये बांड बच्चे की सुरक्षा, सुरक्षा और सुरक्षा की आवश्यकता पर आधारित हैं।
  • बांड का जैविक उद्देश्य उत्तरजीविता है और बांड का मनोवैज्ञानिक उद्देश्य सुरक्षा है।
  • जिन शिशुओं ने एक या दोनों माता-पिता के प्रति सकारात्मक लगाव बना लिया है, वे उन्हें सुरक्षित आधार के रूप में
  • उपयोग करते हैं जिससे पर्यावरण का पता लगाया जा सके।
  • ये रिश्ते बच्चों की भलाई और उनके भावनात्मक और सामाजिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।

ସଂଲଗ୍ନ ଶବ୍ଦର ଅର୍ଥ ବ୍ୟାଖ୍ୟା କର | ଶିଶୁର ଯତ୍ନ ନେଉଥିବା ସମ୍ପର୍କର ବନ୍ଧନ ବିକାଶ କରିବା କାହିଁକି ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ? 5 ମାର୍କ

ସଂଲଗ୍ନ ସିଦ୍ଧାନ୍ତ ମଧ୍ୟରେ, ସଂଲଗ୍ନର ଅର୍ଥ ହେଉଛି ଏକ ସ୍ନେହ ବନ୍ଧନ କିମ୍ବା ଜଣେ ବ୍ୟକ୍ତିଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ମିଛ |
ଶିଶୁ ଏବଂ ଏକ ସଂଲଗ୍ନ ଚିତ୍ର (ସାଧାରଣତ a ଜଣେ ଯତ୍ନକାରୀ) |
ଏହି ବନ୍ଧଗୁଡ଼ିକ ଶିଶୁର ସୁରକ୍ଷା, ସୁରକ୍ଷା ଏବଂ ସୁରକ୍ଷା ଆବଶ୍ୟକତା ଉପରେ ଆଧାରିତ |
ବଣ୍ଡର ଜ bi ବିକ ଲକ୍ଷ୍ୟ ହେଉଛି ବଞ୍ଚିବା ଏବଂ ବନ୍ଧନର ମାନସିକ ଲକ୍ଷ୍ୟ ହେଉଛି ସୁରକ୍ଷା |
ଯେଉଁ ଶିଶୁମାନେ ଗୋଟିଏ କିମ୍ବା ଉଭୟ ପିତାମାତାଙ୍କ ସହିତ ଏକ ସକରାତ୍ମକ ସଂଲଗ୍ନକ ସୃଷ୍ଟି କରିଛନ୍ତି, ସେମାନଙ୍କୁ ସୁରକ୍ଷିତ ଆଧାର ଭାବରେ ବ୍ୟବହାର କରନ୍ତି ଯେଉଁଠାରୁ ପରିବେଶ ଅନୁସନ୍ଧାନ କରିବେ |
ପିଲାମାନଙ୍କର ସୁସ୍ଥତା ଏବଂ ସେମାନଙ୍କର ଭାବପ୍ରବଣ ଏବଂ ସାମାଜିକ ବିକାଶ ପାଇଁ ଏହି ସମ୍ପର୍କଗୁଡିକ ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ |

11. Do you think it is necessary to evaluate children? Substantiate your answer with reasons.

  • Firstly, by evaluating children We can come to know about their behavior, their present level of information and their skills and abilities. Our knowledge and awareness of every child in the group increases. Knowing their specific abilities helps you to provide appropriate settings for their development.
  • If We evaluate the children again after 3 to 4 months, it will show you how they have changed and what new skills and concepts they have acquired during that period.
  • It would be fruitful to evaluate the children in the first few weeks of their joining the center and, then again when they leave the center. This will help you to know what they have learned during their stay with you. If children are going to be at your center for a year or more, you can carry out three to four evaluations in that time, once every three or four months.
  • Secondly, evaluation can help you to plan the curriculum and make it specific to the needs of the children. When We evaluate the children as they join the center, you are able to identify their strengths and weaknesses, their abilities and interests. Then you can plan the play activities accordingly. In this way, the program becomes more focussed and child-centered.
  • Besides this initial evaluation, regular and periodic evaluation after every three or four months will help you to know whether or not the children have understood what you have been Imparting. Based on these evaluations you can plan activities appropriate to the needs of children and teach the child. For example, one educator, upon evaluating the children after they had been at the center for some months, found that some of them had difficulty in grasping the concept of number. During the subsequent weeks, she planned activities related to one-to-one correspondence, counting, matching numbers to objects, and so on.
  • Thirdly, when the parents ask you about how their child is doing, you will be able to tell them specific things. It often happens that when parents ask the educators about their child, the latter are not able to mention the child’s specific accomplishments because they have not recorded them. They have relied on their memory and it becomes difficult to recall details about each child. A written record is always useful.
  • Finally, evaluation helps to raise the morale of the teachers. Keeping evaluation records helps you to know how each child has grown in every area of development and this can give you a feeling of tremendous satisfaction. You may find that children have progressed very well. This gives you an incentive, a boost to work enthusiastically with children the next year.

क्या आपको लगता है कि बच्चों का मूल्यांकन करना आवश्यक है? कारण सहित अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।

  • सबसे पहले, बच्चों का मूल्यांकन करके हम उनके व्यवहार, उनके वर्तमान स्तर की जानकारी और उनके कौशल और क्षमताओं के बारे में जान सकते हैं। समूह के हर बच्चे के बारे में हमारा ज्ञान और जागरूकता बढ़ती है। उनकी विशिष्ट क्षमताओं को जानने से आपको उनके विकास के लिए उपयुक्त सेटिंग्स प्रदान करने में मदद मिलती है।
    यदि हम 3 से 4 महीने के बाद फिर से बच्चों का मूल्यांकन करते हैं, तो यह आपको दिखाएगा कि वे कैसे बदल गए हैं और उस अवधि के दौरान उन्होंने कौन से नए कौशल और अवधारणाएं हासिल की हैं।
    केंद्र में शामिल होने के पहले कुछ हफ्तों में और फिर जब वे केंद्र छोड़ते हैं तो बच्चों का मूल्यांकन करना फलदायी होगा। इससे आपको यह जानने में मदद मिलेगी कि उन्होंने आपके साथ रहने के दौरान क्या सीखा। यदि बच्चे आपके केंद्र में एक वर्ष या उससे अधिक समय तक रहने वाले हैं, तो आप उस समय में तीन से चार मूल्यांकन कर सकते हैं, हर तीन या चार महीने में एक बार।
  • दूसरे, मूल्यांकन पाठ्यचर्या की योजना बनाने और इसे बच्चों की आवश्यकताओं के लिए विशिष्ट बनाने में आपकी मदद कर सकता है। जब हम केंद्र में शामिल होने वाले बच्चों का मूल्यांकन करते हैं, तो आप उनकी ताकत और कमजोरियों, उनकी क्षमताओं और रुचियों की पहचान करने में सक्षम होते हैं। फिर आप उसके अनुसार खेल गतिविधियों की योजना बना सकते हैं। इस प्रकार कार्यक्रम अधिक केन्द्रित और बाल केन्द्रित हो जाता है।
    इस प्रारंभिक मूल्यांकन के अलावा, हर तीन या चार महीने के बाद नियमित और आवधिक मूल्यांकन से आपको यह जानने में मदद मिलेगी कि बच्चे समझ गए हैं कि आप क्या दे रहे हैं। इन मूल्यांकनों के आधार पर आप बच्चों की आवश्यकताओं के अनुरूप गतिविधियों की योजना बना सकते हैं और बच्चे को पढ़ा सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक शिक्षक ने कुछ महीनों के लिए केंद्र में रहने के बाद बच्चों का मूल्यांकन करने पर पाया कि उनमें से कुछ को संख्या की अवधारणा को समझने में कठिनाई हो रही थी। बाद के हफ्तों के दौरान, उसने एक-से-एक पत्राचार, गिनती, वस्तुओं से संख्याओं का मिलान, आदि से संबंधित गतिविधियों की योजना बनाई।
  • तीसरा, जब माता-पिता आपसे पूछें कि उनका बच्चा कैसा कर रहा है, तो आप उन्हें विशिष्ट बातें बता पाएंगे। अक्सर ऐसा होता है कि जब माता-पिता शिक्षकों से अपने बच्चे के बारे में पूछते हैं, तो शिक्षक बच्चे की विशिष्ट उपलब्धियों का उल्लेख नहीं कर पाते हैं क्योंकि उन्होंने उन्हें दर्ज नहीं किया है। उन्होंने अपनी याददाश्त पर भरोसा किया है और प्रत्येक बच्चे के बारे में विवरण याद करना मुश्किल हो जाता है। एक लिखित रिकॉर्ड हमेशा उपयोगी होता है।
  • अंत में, मूल्यांकन शिक्षकों के मनोबल को बढ़ाने में मदद करता है। मूल्यांकन रिकॉर्ड रखने से आपको यह जानने में मदद मिलती है कि विकास के हर क्षेत्र में प्रत्येक बच्चा कैसे विकसित हुआ है और यह आपको जबरदस्त संतुष्टि की भावना दे सकता है। आप पाएंगे कि बच्चों ने बहुत अच्छी प्रगति की है। यह आपको प्रोत्साहन देता है, अगले वर्ष बच्चों के साथ उत्साहपूर्वक काम करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

ପିଲାମାନଙ୍କର ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରିବା ଆବଶ୍ୟକ ବୋଲି ଆପଣ ଭାବୁଛନ୍ତି କି? କାରଣ ସହିତ ଆପଣଙ୍କର ଉତ୍ତରକୁ ସବଷ୍ଟାଣ୍ଟ କରନ୍ତୁ |

ପ୍ରଥମତ children, ପିଲାମାନଙ୍କର ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରି ଆମେ ସେମାନଙ୍କ ଆଚରଣ, ସେମାନଙ୍କର ବର୍ତ୍ତମାନର ସୂଚନା ସ୍ତର ଏବଂ ସେମାନଙ୍କର ଦକ୍ଷତା ଏବଂ ଦକ୍ଷତା ବିଷୟରେ ଜାଣିପାରିବା | ଗୋଷ୍ଠୀର ପ୍ରତ୍ୟେକ ପିଲାଙ୍କ ବିଷୟରେ ଆମର ଜ୍ଞାନ ଏବଂ ସଚେତନତା ବ .ିଥାଏ | ସେମାନଙ୍କର ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ଦକ୍ଷତା ଜାଣିବା ଆପଣଙ୍କୁ ସେମାନଙ୍କ ବିକାଶ ପାଇଁ ଉପଯୁକ୍ତ ସେଟିଂ ପ୍ରଦାନ କରିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରେ |
ଯଦି ଆମେ 3 ରୁ 4 ମାସ ପରେ ପୁନର୍ବାର ପିଲାମାନଙ୍କୁ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରୁ, ଏହା ଆପଣଙ୍କୁ ଦେଖାଇବ ଯେ ସେମାନେ କିପରି ବଦଳିଛନ୍ତି ଏବଂ ସେହି ସମୟ ମଧ୍ୟରେ ସେମାନେ କେଉଁ ନୂତନ କ skills ଶଳ ଏବଂ ଧାରଣା ହାସଲ କରିଛନ୍ତି |
ପିଲାମାନଙ୍କୁ ସେମାନଙ୍କର କେନ୍ଦ୍ରରେ ଯୋଗଦେବାର ପ୍ରଥମ କିଛି ସପ୍ତାହରେ ଏବଂ ପରେ ପୁନର୍ବାର କେନ୍ଦ୍ର ଛାଡିବା ପରେ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରିବା ଫଳପ୍ରଦ ହେବ | ଏହା ଆପଣଙ୍କ ସହିତ ରହିବା ସମୟରେ ସେମାନେ ଯାହା ଶିଖିଛନ୍ତି ତାହା ଜାଣିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରିବ | ଯଦି ପିଲାମାନେ ଏକ ବର୍ଷ କିମ୍ବା ତା’ଠାରୁ ଅଧିକ ସମୟ ଆପଣଙ୍କ କେନ୍ଦ୍ରରେ ରହିବାକୁ ଯାଉଛନ୍ତି, ତେବେ ଆପଣ ପ୍ରତି ତିନି କିମ୍ବା ଚାରି ମାସରେ ଥରେ ସେହି ସମୟରେ ତିନିରୁ ଚାରିଟି ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରିପାରିବେ |
ଦ୍ୱିତୀୟତ evalu, ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ ଆପଣଙ୍କୁ ପାଠ୍ୟକ୍ରମ ଯୋଜନା କରିବା ଏବଂ ପିଲାମାନଙ୍କର ଆବଶ୍ୟକତା ପାଇଁ ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ କରିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରିଥାଏ | ଯେତେବେଳେ ଆମେ ପିଲାମାନେ କେନ୍ଦ୍ରରେ ଯୋଗଦେବାବେଳେ ଆମେ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରୁ, ଆପଣ ସେମାନଙ୍କର ଶକ୍ତି ଏବଂ ଦୁର୍ବଳତା, ସେମାନଙ୍କର ଦକ୍ଷତା ଏବଂ ଆଗ୍ରହ ଚିହ୍ନଟ କରିବାରେ ସକ୍ଷମ ଅଟନ୍ତି | ତା’ପରେ ତୁମେ ସେହି ଅନୁଯାୟୀ ଖେଳ କାର୍ଯ୍ୟକଳାପ ଯୋଜନା କରିପାରିବ | ଏହିପରି, କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମଟି ଅଧିକ ଧ୍ୟାନ ଏବଂ ଶିଶୁ-କେନ୍ଦ୍ରିତ ହୋଇଯାଏ |
ଏହି ପ୍ରାରମ୍ଭିକ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ ବ୍ୟତୀତ, ପ୍ରତି ତିନି କିମ୍ବା ଚାରି ମାସ ପରେ ନିୟମିତ ଏବଂ ପର୍ଯ୍ୟାୟ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ ଆପଣଙ୍କୁ ଜାଣିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରିବ ଯେ ପିଲାମାନେ ଆପଣ ଯାହା ଦେଉଛନ୍ତି ତାହା ବୁ understood ିଛନ୍ତି କି ନାହିଁ | ଏହି ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନଗୁଡିକ ଉପରେ ଆଧାର କରି ଆପଣ ପିଲାମାନଙ୍କର ଆବଶ୍ୟକତା ଅନୁଯାୟୀ କାର୍ଯ୍ୟକଳାପ ଯୋଜନା କରିପାରିବେ ଏବଂ ପିଲାଙ୍କୁ ଶିକ୍ଷା ଦେଇପାରିବେ | ଉଦାହରଣ ସ୍ .ରୁପ, ଜଣେ ଶିକ୍ଷାବିତ୍, ପିଲାମାନଙ୍କୁ କିଛି ମାସ କେନ୍ଦ୍ରରେ ରହିବା ପରେ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରିବା ପରେ ଜାଣିବାକୁ ପାଇଲେ ଯେ ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ କେତେକଙ୍କ ସଂଖ୍ୟାକୁ ବୁ in ିବାରେ ଅସୁବିଧା ହେଉଛି। ପରବର୍ତ୍ତୀ ସପ୍ତାହଗୁଡିକରେ, ସେ ଗୋଟିଏ ପରେ ଗୋଟିଏ ଚିଠି, ଗଣନା, ବସ୍ତୁ ସହିତ ସଂଖ୍ୟା ମେଳ କରିବା ଇତ୍ୟାଦି ସମ୍ବନ୍ଧୀୟ କାର୍ଯ୍ୟକଳାପ ଯୋଜନା କରିଥିଲେ |
ତୃତୀୟତ when, ଯେତେବେଳେ ପିତାମାତା ଆପଣଙ୍କୁ ସେମାନଙ୍କର ପିଲା କିପରି କରୁଛନ୍ତି ସେ ବିଷୟରେ ପଚାରନ୍ତି, ଆପଣ ସେମାନଙ୍କୁ ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ଜିନିଷ କହିବାକୁ ସମର୍ଥ ହେବେ | ଏହା ପ୍ରାୟତ happens ଘଟେ ଯେ ଯେତେବେଳେ ପିତାମାତା ଶିକ୍ଷାବିତ୍ମାନଙ୍କୁ ସେମାନଙ୍କ ପିଲା ବିଷୟରେ ପଚାରନ୍ତି, ଶେଷଟି ଶିଶୁର ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ସଫଳତା ବିଷୟରେ ଉଲ୍ଲେଖ କରିବାକୁ ସମର୍ଥ ହୁଏ ନାହିଁ କାରଣ ସେମାନେ ଏହାକୁ ରେକର୍ଡ କରିନାହାଁନ୍ତି | ସେମାନେ ସେମାନଙ୍କର ସ୍ମୃତି ଉପରେ ନିର୍ଭର କରନ୍ତି ଏବଂ ପ୍ରତ୍ୟେକ ଶିଶୁ ବିଷୟରେ ସବିଶେଷ ତଥ୍ୟ ମନେରଖିବା କଷ୍ଟକର ହୋଇଯାଏ | ଏକ ଲିଖିତ ରେକର୍ଡ ସର୍ବଦା ଉପଯୋଗୀ |
ଶେଷରେ, ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ ଶିକ୍ଷକଙ୍କ ମନୋବଳ ବ raise ାଇବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରେ | ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ ରେକର୍ଡଗୁଡିକ ରଖିବା ଆପଣଙ୍କୁ ଜାଣିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରେ ଯେ ପ୍ରତ୍ୟେକ ପିଲା ବିକାଶର ପ୍ରତ୍ୟେକ କ୍ଷେତ୍ରରେ କିପରି ବ has ିଛନ୍ତି ଏବଂ ଏହା ଆପଣଙ୍କୁ ଅତ୍ୟଧିକ ସନ୍ତୋଷର ଅନୁଭବ ଦେଇପାରେ | ଆପଣ ପାଇଥିବେ ଯେ ପିଲାମାନେ ବହୁତ ଭଲ ଅଗ୍ରଗତି କରିଛନ୍ତି | ଏହା ଆପଣଙ୍କୁ ଏକ ଉତ୍ସାହ, ପରବର୍ତ୍ତୀ ବର୍ଷ ପିଲାମାନଙ୍କ ସହିତ ଉତ୍ସାହର ସହିତ କାର୍ଯ୍ୟ କରିବାକୁ ଏକ ଉତ୍ସାହ ପ୍ରଦାନ କରେ |

12. Describe Various Ways of Discipling, and Explain Why The affection-oriented way of disciplining is more effective in socializing the child ? 10 mark

When a child does something which is unacceptable to the parents, they will try to stop that
action. Broadly speaking, they respond or discipline in one of the following two ways.

  • affection-oriented disciplining
  • power-oriented disciplining

affection-oriented disciplining

  •  parents point out the consequences of the child’s action to her, reason with her and
    appeal to her sense of responsibility and concern for others in order to prevent her from
    doing the same thing again.
  • When disciplining the child they are likely to say, “Don’t hit Pinkoo. It hurts her.
  • Such statements draw the child’s attention to the feelings and motives of other people,
    encourage her to reflect on her own behavior,
  • It helps her to understand the rules and know the reasons for these rules.
  • These parents are firm in their disciplining and they are affectionate and gentle with the child.
  • They convey to the child that a certain action behavior is wrong without condemning the child.
  • They say, “What you did was bad” instead of saying, “You are a bad girl”.
  • Such a method of disciplining is affection-oriented and is very effective in socializing the child.

power-oriented disciplining

  • These parents mainly use commands to stop the child from a particular behavior.
  • They say, “Don’t do that!”, “I tell you stop that at once!”, without giving the child a reason for why they want her to stop that behavior.
  • In this case, the parent uses their authority and power to discipline without reasoning with the child.
  • They may also threaten the child and withhold privileges.
  • They say  “If you do not do this, I won’t let you go to the park .
  •  They may also use physical punishment.
  • This technique is the power-oriented technique of disciplining.

The affection-oriented way of disciplining is more effective in socializing the child

  • It enhances the child’s sense of moral values and behavior and promotes a sense of personal
    responsibility.
  • The child accepts the parents’ rules as her own and they become a part of her.
  • The child feels guilt and & shame when she does something undesirable.
  • Such disciplining stylc fosters an attitude of being responsible for one’s actions.

अनुशासन के विभिन्न तरीकों का वर्णन करें, और समझाएं कि अनुशासन का स्नेह-उन्मुख तरीका बच्चे के सामाजिककरण में अधिक प्रभावी क्यों है? 10 अंक

जब कोई बच्चा कुछ ऐसा करता है जो माता-पिता के लिए अस्वीकार्य है, तो वे उसे रोकने की कोशिश करेंगे
कार्रवाई। मोटे तौर पर, वे निम्नलिखित दो तरीकों में से एक में प्रतिक्रिया या अनुशासन देते हैं।

  • स्नेह-उन्मुख अनुशासन
  • शक्ति-उन्मुख अनुशासन

स्नेह-उन्मुख अनुशासन

माता-पिता बच्चे की कार्रवाई के परिणामों के बारे में उसे बताते हैं, उसके साथ तर्क करते हैं और
उसे रोकने के लिए दूसरों के लिए जिम्मेदारी और चिंता की भावना की अपील करें
फिर से वही काम करना।
बच्चे को अनुशासित करते समय वे कहते हैं, “पिंकू को मत मारो। इससे उसे दर्द होता है।
इस तरह के बयान बच्चे का ध्यान अन्य लोगों की भावनाओं और उद्देश्यों की ओर आकर्षित करते हैं,
उसे अपने व्यवहार पर प्रतिबिंबित करने के लिए प्रोत्साहित करें,
इससे उसे नियमों को समझने और इन नियमों के कारणों को जानने में मदद मिलती है।
ये माता-पिता अपने अनुशासन में दृढ़ होते हैं और बच्चे के साथ स्नेही और कोमल होते हैं।
वे बच्चे को बताते हैं कि बच्चे की निंदा किए बिना एक निश्चित क्रिया व्यवहार गलत है।
वे कहते हैं, “तुमने जो किया वह बुरा था” कहने के बजाय, “तुम एक बुरी लड़की हो”।
अनुशासन की ऐसी विधि स्नेह-उन्मुख है और बच्चे के सामाजिककरण में बहुत प्रभावी है।

शक्ति-उन्मुख अनुशासन

ये माता-पिता मुख्य रूप से बच्चे को किसी विशेष व्यवहार से रोकने के लिए आदेशों का उपयोग करते हैं।
वे कहते हैं, “ऐसा मत करो!”, “मैं तुमसे कहता हूं कि इसे तुरंत रोक दो!”, बच्चे को यह कारण बताए बिना कि वे उसे उस व्यवहार को क्यों रोकना चाहते हैं।
इस मामले में, माता-पिता बच्चे के साथ तर्क के बिना अनुशासन के लिए अपने अधिकार और शक्ति का उपयोग करते हैं।
वे बच्चे को धमकी भी दे सकते हैं और विशेषाधिकार रोक सकते हैं।
वे कहते हैं  “अगर आप ऐसा नहीं करते हैं, तो मैं आपको पार्क में नहीं जाने दूंगा.
वे शारीरिक दंड का भी उपयोग कर सकते हैं।
यह तकनीक अनुशासन की शक्ति-उन्मुख तकनीक है।

अनुशासित करने का स्नेह-उन्मुख तरीका बच्चे के सामाजिककरण में अधिक प्रभावी होता है

यह बच्चे के नैतिक मूल्यों और व्यवहार की भावना को बढ़ाता है और व्यक्तिगत भावना को बढ़ावा देता है
ज़िम्मेदारी।
बच्चा माता-पिता के नियमों को अपना मानता है और वे उसका हिस्सा बन जाते हैं।
जब वह कुछ अवांछनीय करती है तो बच्चा अपराधबोध और शर्म महसूस करता है।
इस तरह की अनुशासनात्मक शैली किसी के कार्यों के लिए जिम्मेदार होने के दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है।

ଶୃଙ୍ଖଳାର ବିଭିନ୍ନ ଉପାୟ ବର୍ଣ୍ଣନା କର, ଏବଂ ବ୍ୟାଖ୍ୟା କର ଯେ ସ୍ନେହ-ଆଧାରିତ ଅନୁଶାସନ ପଦ୍ଧତି ଶିଶୁକୁ ସାମାଜିକ କରିବାରେ ଅଧିକ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ କାହିଁକି? 10 ମାର୍କ

ଯେତେବେଳେ ଏକ ଶିଶୁ ଏପରି କିଛି କରେ ଯାହା ପିତାମାତାଙ୍କ ପାଇଁ ଗ୍ରହଣୀୟ ନୁହେଁ, ସେମାନେ ଏହାକୁ ବନ୍ଦ କରିବାକୁ ଚେଷ୍ଟା କରିବେ |
କାର୍ଯ୍ୟ ବ୍ୟାପକ ଭାବରେ କହିବାକୁ ଗଲେ, ସେମାନେ ନିମ୍ନଲିଖିତ ଦୁଇଟି ଉପାୟ ମଧ୍ୟରୁ ଗୋଟିଏରେ ପ୍ରତିକ୍ରିୟା କରନ୍ତି କିମ୍ବା ଅନୁଶାସନ କରନ୍ତି |

ସ୍ନେହ-ଆଧାରିତ ଅନୁଶାସନ |
ଶକ୍ତି-ଆଧାରିତ ଅନୁଶାସନ |

ସ୍ନେହ-ଆଧାରିତ ଅନୁଶାସନ |

ପିତାମାତାମାନେ ଶିଶୁର କାର୍ଯ୍ୟର ପରିଣାମ, ତାଙ୍କ ସହିତ କାରଣ ଏବଂ
ତାଙ୍କୁ ରୋକିବା ପାଇଁ ତା’ର ଦାୟିତ୍ sense ଏବଂ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ପାଇଁ ଚିନ୍ତାକୁ ଆବେଦନ କର |
ପୁନର୍ବାର ସମାନ କାର୍ଯ୍ୟ କରିବା |
ପିଲାକୁ ଅନୁଶାସନ କରିବାବେଳେ ସେମାନେ କହିବାର ସମ୍ଭାବନା ଅଛି, “ପିଙ୍କୋକୁ ମାରନ୍ତୁ ନାହିଁ। ଏହା ତାଙ୍କୁ କଷ୍ଟ ଦିଏ |
ଏହିପରି ବିବୃତ୍ତି ଶିଶୁର ଧ୍ୟାନ ଅନ୍ୟ ଲୋକଙ୍କ ଭାବନା ଏବଂ ଉଦ୍ଦେଶ୍ୟ ପ୍ରତି ଆକର୍ଷିତ କରିଥାଏ,
ତାଙ୍କୁ ନିଜ ଆଚରଣ ଉପରେ ପ୍ରତିଫଳିତ କରିବାକୁ ଉତ୍ସାହିତ କର,
ଏହା ତାଙ୍କୁ ନିୟମ ବୁ understand ିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରେ ଏବଂ ଏହି ନିୟମର କାରଣ ଜାଣିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରେ |
ଏହି ପିତାମାତାମାନେ ସେମାନଙ୍କର ଶୃଙ୍ଖଳାରେ ଦୃ firm ଅଟନ୍ତି ଏବଂ ସେମାନେ ପିଲାଙ୍କ ପ୍ରତି ସ୍ନେହଶୀଳ ଏବଂ ଭଦ୍ର ଅଟନ୍ତି |
ସେମାନେ ଶିଶୁକୁ ଜଣାନ୍ତି ଯେ ଶିଶୁକୁ ନିନ୍ଦା ନକରି ଏକ ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ କାର୍ଯ୍ୟ ଆଚରଣ ଭୁଲ ଅଟେ |
ସେମାନେ କୁହନ୍ତି, “ତୁମେ ଏକ ଖରାପ girl ିଅ” କହିବା ପରିବର୍ତ୍ତେ “ତୁମେ ଯାହା କରିଥିଲ ତାହା ଖରାପ ଥିଲା” |
ଅନୁଶାସନର ଏପରି ପଦ୍ଧତି ସ୍ନେହ-ଆଧାରିତ ଏବଂ ଶିଶୁକୁ ସାମାଜିକ କରିବାରେ ଅତ୍ୟନ୍ତ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ |

ଶକ୍ତି-ଆଧାରିତ ଅନୁଶାସନ |

ଏହି ପିତାମାତାମାନେ ମୁଖ୍ୟତ the ପିଲାକୁ ଏକ ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ ଆଚରଣରୁ ଅଟକାଇବା ପାଇଁ ନିର୍ଦ୍ଦେଶ ବ୍ୟବହାର କରନ୍ତି |
ସେମାନେ କୁହନ୍ତି, “ତାହା କର ନାହିଁ!”, “ମୁଁ କହୁଛି ତୁମେ ଏହାକୁ ଥରେ ବନ୍ଦ କର!”
ଏହି ପରିପ୍ରେକ୍ଷୀରେ, ପିତାମାତା ସେମାନଙ୍କର ଅଧିକାର ଏବଂ ଶକ୍ତି ବ୍ୟବହାର କରି ପିଲାଙ୍କ ସହିତ ଯୁକ୍ତି ନକରି ଅନୁଶାସନ କରନ୍ତି |
ସେମାନେ ମଧ୍ୟ ଶିଶୁକୁ ଧମକ ଦେଇପାରନ୍ତି ଏବଂ ଅଧିକାରକୁ ଅଟକାଇ ପାରନ୍ତି |
ସେମାନେ କୁହନ୍ତି “ଯଦି ତୁମେ ଏହା କର ନାହିଁ, ମୁଁ ତୁମକୁ ପାର୍କକୁ ଯିବାକୁ ଦେବି ନାହିଁ |
ସେମାନେ ଶାରୀରିକ ଦଣ୍ଡ ମଧ୍ୟ ବ୍ୟବହାର କରିପାରନ୍ତି |
ଏହି କ que ଶଳ ହେଉଛି ଶୃଙ୍ଖଳାର ଶକ୍ତି-ଆଧାରିତ କ techni ଶଳ |

ସ୍ନେହ-ଆଧାରିତ ଅନୁଶାସନ ପଦ୍ଧତି ଶିଶୁକୁ ସାମାଜିକ କରିବାରେ ଅଧିକ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ |

ଏହା ଶିଶୁର ନ moral ତିକ ମୂଲ୍ୟବୋଧ ଏବଂ ଆଚରଣର ଭାବନାକୁ ବ ances ାଇଥାଏ ଏବଂ ବ୍ୟକ୍ତିଗତ ଭାବନାକୁ ପ୍ରୋତ୍ସାହିତ କରିଥାଏ |
ଦାୟିତ୍। |
ପିଲାଟି ପିତାମାତାଙ୍କ ନିୟମକୁ ନିଜର ଭାବରେ ଗ୍ରହଣ କରେ ଏବଂ ସେମାନେ ତାଙ୍କର ଏକ ଅଂଶ ହୁଅନ୍ତି |
ପିଲା ଯେତେବେଳେ କିଛି ଅବାଞ୍ଛିତ କାର୍ଯ୍ୟ କରେ ସେତେବେଳେ ଦୋଷ ଏବଂ ଲଜ୍ଜା ଅନୁଭବ କରେ |
ଏହିପରି ଶୃଙ୍ଖଳିତ ଷ୍ଟାଇକ୍ ଜଣଙ୍କର କାର୍ଯ୍ୟ ପାଇଁ ଦାୟୀ ହେବାର ଏକ ମନୋଭାବ ପୋଷଣ କରେ |

13. What is punishment, what are the aspects the caregiver should keep in mind and   What are the negative effects of punishing the child frequently, particularly physical and why The timing of the punishment is important . 10 mark

What is punishment

punishment can take different forms:

  • physical punishment: slapping and spanking
  • verbal punishment: scolding, swearing, threatening
  • withholding material things like eatables, toys or clothes
  • withdrawal of love through ignoring, isolating or accusing the child of hurting one’s feelings

what are the aspects the caregiver should keep in mind

  • punishment must be used cautiously, caregiver should explain why he/she punished and also take care of child emotion.
  • gives the reason – Punishments or prohibitions will have their greatest impact if the caregiver gives the reason for the punishment.
  • The timing of the punishment is important Punishmenpis most effective when it
    immediately follows the misbehavior. The best time to stop an act is when it is just about
    to occur or as it is beginning. When the child snatches the toy for the first time, that is when
    the parent must step in, rather than waiting for the fifth time when the child does it. if this is
    done, the need for physical punishment will not arise .
  • emotional relationship in the important aspect that determines how the child reacts to punishment by the parent is the emotional relationship they share. Punishment from a nurturant and affectionate parent is more likely to be effective than punishment from a  hostile parent.
    This is because when an affectionate parent punishes the child, the child loses the parent’s
    affection temporarily, which hurts her. So she stops the undesirable behavior in order to
    regain the parent’s affection.
  • consistent One must be consistent in discipline. It should not be that one punishes the undesirable act one day, ignores it another day, and praises it yet another day. Neither should he
    undesirable behavior be punished by one parent and let off by the other. This inconsistency
    in actions confuses the child and consequently, undesirable behavior persists.
  • fair and mild The punishment given for a certain action must be fair and mild. However, mild
    punishment may not always have an effect. While the punishment may be just moderate, it
    must not be severe because while that makes the child obedient, it also generates resentment
    and fear.

What are the negative effects of punishing the child frequently, particularly physical

  • If punishment becomes a regular method of dealing with the child’s misbehavior then it can
    have many negative consequences, particularly when parents do not explain the reason for
    the punishment.
  • Therefore, punishment must be used cautiously.
  • The child fails to internalize the rules.
  • Excessive punishment may give the child a feeling that she never does anything right, which is likely to lower her self-esteem.
  • The child usually becomes less compliant with adults and peers.
  • When punishment is used often, it leaves the child feeling resentful and angry with the parent.
  • She may begin to avoid the parent.
  • Severe punishment may generate so much anxiety in the child that she does not learn the intended lesson.
  • These negative effects of punishment are increased if parents often use physical punishment.
  • Besides this there is another undesirable long-lasting effect of physical punishment and that is
    parents who regularly use physical punishment serve as models of aggression.
  • Watching adults use aggression (punishment) to control situations, the child too begins to behave
    aggressively.
  • Many research studies have supported this fact. In one research study, preschoolers were shown videotapes of parent-child conflicts and asked what they would do if they were the parent. In reply, the children mentioned those methods of disciplining which their own parents used with them.
  • It can be said that parents who use severe punishment are unknowingly training their children to use punishment-oriented techniques later on.
  • It is possible that parents who use physical punishment were themselves disciplined
    in that way as children.

why The timing of the punishment is important

  • The timing of the punishment is important
  • Punishment is most effective when it immediately follows the misbehavior.
  • The best time to stop an act is when it is just about to occur or as it is beginning.
  • When the child snatches the toy for the first time, that is when the parent must step in, rather than waiting for the fifth time when the child does it.
  • If this is done, the need for physical punishment will not arise.

13. सजा क्या है, देखभाल करने वाले को किन पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए और बच्चे को बार-बार दंडित करने के नकारात्मक प्रभाव क्या हैं, विशेष रूप से शारीरिक और क्यों सजा का समय महत्वपूर्ण है। 10 अंक

सजा क्या है

सजा विभिन्न रूप ले सकती है:

शारीरिक दंड: थप्पड़ मारना और पिटाई करना
मौखिक सजा: डांटना, गाली देना, धमकी देना
खाने-पीने की चीज़ें, खिलौने या कपड़े जैसी भौतिक चीज़ों को रोकना
किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए बच्चे पर नज़रअंदाज़ करना, अलग-थलग करना या आरोप लगाकर प्यार को वापस लेना

देखभाल करने वाले को किन पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए?

सजा का सावधानी से इस्तेमाल किया जाना चाहिए, देखभाल करने वाले को यह बताना चाहिए कि उसने दंडित क्यों किया और बच्चे की भावनाओं का भी ख्याल रखा।
कारण देता है – दंड या निषेध का उनका सबसे बड़ा प्रभाव होगा यदि देखभाल करने वाला दंड का कारण बताता है।
सजा का समय महत्वपूर्ण है Punishmenpis सबसे प्रभावी जब यह
तुरंत दुर्व्यवहार का पालन करता है। किसी कार्य को रोकने का सबसे अच्छा समय तब होता है जब वह लगभग होता है
घटित होना या जैसे यह शुरू हो रहा है। जब बच्चा पहली बार खिलौना छीनता है, वह तब होता है जब
जब बच्चा ऐसा करता है तो पांचवीं बार प्रतीक्षा करने के बजाय माता-पिता को कदम उठाना चाहिए। अगर यह है
किया, शारीरिक दंड की आवश्यकता नहीं होगी।
महत्वपूर्ण पहलू में भावनात्मक संबंध जो यह निर्धारित करता है कि माता-पिता द्वारा दंड के प्रति बच्चा कैसे प्रतिक्रिया करता है, वह भावनात्मक संबंध है जो वे साझा करते हैं। एक शत्रुतापूर्ण माता-पिता की सजा की तुलना में एक पोषक और स्नेही माता-पिता की सजा अधिक प्रभावी होने की संभावना है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि जब एक स्नेही माता-पिता बच्चे को दंड देते हैं, तो बच्चा माता-पिता को खो देता है
स्नेह अस्थायी रूप से, जो उसे आहत करता है। इसलिए वह अवांछित व्यवहार को रोक देती है ताकि
माता-पिता का स्नेह पुनः प्राप्त करें।
संगत व्यक्ति को अनुशासन में रहना चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि कोई एक दिन अवांछनीय कार्य की सजा देता है, दूसरे दिन उसकी उपेक्षा करता है और एक और दिन उसकी प्रशंसा करता है। उसे भी नहीं चाहिए
अवांछनीय व्यवहार को एक माता-पिता द्वारा दंडित किया जाता है और दूसरे द्वारा छोड़ दिया जाता है। यह विसंगति
कार्यों में बच्चे को भ्रमित करता है और फलस्वरूप अवांछनीय व्यवहार बना रहता है।
निष्पक्ष और सौम्य एक निश्चित कार्रवाई के लिए दी गई सजा निष्पक्ष और हल्की होनी चाहिए। हालांकि, हल्का
सजा का प्रभाव हमेशा नहीं हो सकता है। जबकि सजा सिर्फ मध्यम हो सकती है, यह
गंभीर नहीं होना चाहिए क्योंकि यह बच्चे को आज्ञाकारी बनाता है, लेकिन यह नाराजगी भी पैदा करता है
और डर।

बच्चे को बार-बार दंडित करने के नकारात्मक प्रभाव क्या हैं, विशेष रूप से शारीरिक

यदि दंड बच्चे के दुर्व्यवहार से निपटने का एक नियमित तरीका बन जाता है तो यह हो सकता है
कई नकारात्मक परिणाम होते हैं, खासकर जब माता-पिता इसका कारण नहीं बताते हैं
सजा।
इसलिए, सजा का इस्तेमाल सावधानी से किया जाना चाहिए।
बच्चा नियमों को आंतरिक करने में विफल रहता है।
अत्यधिक सजा से बच्चे को यह अहसास हो सकता है कि वह कभी भी कुछ भी सही नहीं करता है, जिससे उसके आत्म-सम्मान में कमी आने की संभावना है।
बच्चा आमतौर पर वयस्कों और साथियों के साथ कम आज्ञाकारी हो जाता है।
जब सजा का प्रयोग अक्सर किया जाता है, तो यह बच्चे को माता-पिता के प्रति नाराजगी और गुस्सा महसूस कराता है।
वह माता-पिता से बचना शुरू कर सकती है।
कड़ी सजा से बच्चे में इतनी चिंता उत्पन्न हो सकती है कि वह इच्छित पाठ नहीं सीख पाती है।
यदि माता-पिता अक्सर शारीरिक दंड का उपयोग करते हैं तो सजा के ये नकारात्मक प्रभाव बढ़ जाते हैं।
इसके अलावा शारीरिक दंड का एक और अवांछनीय दीर्घकालिक प्रभाव है और वह है
माता-पिता जो नियमित रूप से शारीरिक दंड का उपयोग करते हैं वे आक्रामकता के मॉडल के रूप में कार्य करते हैं।
वयस्कों को स्थितियों को नियंत्रित करने के लिए आक्रामकता (दंड) का उपयोग करते हुए देखकर, बच्चा भी व्यवहार करना शुरू कर देता है
उग्रता के साथ।
कई शोध अध्ययनों ने इस तथ्य का समर्थन किया है। एक शोध अध्ययन में, प्रीस्कूलर को माता-पिता-बच्चे के संघर्षों के वीडियोटेप दिखाए गए और पूछा गया कि अगर वे माता-पिता होते तो वे क्या करते। जवाब में बच्चों ने अनुशासन के उन तरीकों का जिक्र किया जो उनके अपने माता-पिता उनके साथ करते थे।
यह कहा जा सकता है कि कठोर दंड का उपयोग करने वाले माता-पिता अनजाने में अपने बच्चों को बाद में दंड-उन्मुख तकनीकों का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं।
यह संभव है कि शारीरिक दंड का उपयोग करने वाले माता-पिता स्वयं अनुशासित हों
इस तरह बच्चों के रूप में।

सजा का समय क्यों महत्वपूर्ण है

सजा का समय महत्वपूर्ण है
सजा सबसे प्रभावी है जब यह तुरंत दुर्व्यवहार का पालन करता है।
किसी कार्य को रोकने का सबसे अच्छा समय वह है जब वह होने वाला हो या जैसे ही वह शुरू हो रहा हो।
जब बच्चा पहली बार खिलौना छीनता है, तब माता-पिता को कदम उठाना चाहिए, न कि पांचवीं बार जब बच्चा ऐसा करता है।
यदि ऐसा किया जाता है, तो शारीरिक दंड की आवश्यकता उत्पन्न नहीं होगी।

13. ଦଣ୍ଡ କ’ଣ, ଯତ୍ନ ନେଉଥିବା ଦିଗଗୁଡିକ କ’ଣ ଏବଂ ଶିଶୁକୁ ବାରମ୍ବାର ଦଣ୍ଡ ଦେବାର ନକାରାତ୍ମକ ପ୍ରଭାବ କ’ଣ, ବିଶେଷତ physical ଶାରୀରିକ ଏବଂ ଦଣ୍ଡର ସମୟ କାହିଁକି ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ | 10 ମାର୍କ

ଦଣ୍ଡ କ’ଣ?

ଦଣ୍ଡ ବିଭିନ୍ନ ରୂପ ନେଇପାରେ:

ଶାରୀରିକ ଦଣ୍ଡ: ଚାପୁଡ଼ା ମାରିବା ଏବଂ ପିଟିବା |
ମ bal ଖିକ ଦଣ୍ଡ: ଗାଳି, ଶପଥ, ଧମକ |
ଖାଇବା ସାମଗ୍ରୀ, ଖେଳନା କିମ୍ବା ପୋଷାକ ପରି ବସ୍ତୁ ଜିନିଷକୁ ଅଟକାଇବା |
ଅବହେଳା, ପୃଥକ କରିବା କିମ୍ବା ପିଲାକୁ ନିଜ ଭାବନାକୁ ଆଘାତ ଦେଇଥିବାର ଅଭିଯୋଗ ମାଧ୍ୟମରେ ପ୍ରେମ ପ୍ରତ୍ୟାହାର |

ଯତ୍ନ ନେଉଥିବା ଦିଗଗୁଡିକ କ’ଣ?

ଦଣ୍ଡକୁ ସତର୍କତାର ସହିତ ବ୍ୟବହାର କରାଯିବା ଆବଶ୍ୟକ, ଯତ୍ନ ନେଉଥିବା ବ୍ୟକ୍ତି କାହିଁକି ତାଙ୍କୁ ଦଣ୍ଡିତ କରିବା ଉଚିତ ଏବଂ ଶିଶୁ ଭାବପ୍ରବଣତାର ଯତ୍ନ ନେବା ଉଚିତ୍ |
କାରଣ ଦର୍ଶାଏ – ଯଦି ଯତ୍ନକାରୀ ଦଣ୍ଡର କାରଣ ଦିଅନ୍ତି ତେବେ ଦଣ୍ଡ କିମ୍ବା ପ୍ରତିବନ୍ଧକ ସେମାନଙ୍କର ସର୍ବାଧିକ ପ୍ରଭାବ ପକାଇବ |
ଦଣ୍ଡର ସମୟ ହେଉଛି ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ଦଣ୍ଡବିଧାନକାରୀ ଯେତେବେଳେ ଏହା ଅଧିକ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ |
ତୁରନ୍ତ ଦୁଷ୍କର୍ମକୁ ଅନୁସରଣ କରେ | ଏକ କାର୍ଯ୍ୟକୁ ବନ୍ଦ କରିବା ପାଇଁ ସର୍ବୋତ୍ତମ ସମୟ ହେଉଛି ଯେତେବେଳେ ଏହା ପ୍ରାୟ |
ଘଟିବାକୁ କିମ୍ବା ଏହା ଆରମ୍ଭ ହେବା ପରି | ଯେତେବେଳେ ପିଲା ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ଖେଳଣା ଛଡ଼ାଇ ନେଇଥାଏ, ସେତେବେଳେ |
ପିଲାଟି ଯେତେବେଳେ ପଞ୍ଚମ ଥର ଅପେକ୍ଷା କରିବା ଅପେକ୍ଷା ପିତାମାତା ପାଦ ଦେବା ଆବଶ୍ୟକ | ଯଦି ଏହା ହେଉଛି
କରାଗଲା, ଶାରୀରିକ ଦଣ୍ଡର ଆବଶ୍ୟକତା ଆସିବ ନାହିଁ |
ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ଦିଗରେ ଭାବପ୍ରବଣତା ଯାହା ନିର୍ଣ୍ଣୟ କରେ ଯେ ପିତାମାତାଙ୍କ ଦ୍ୱାରା ଦଣ୍ଡ ଉପରେ ପିଲା କିପରି ପ୍ରତିକ୍ରିୟା କରେ ତାହା ହେଉଛି ଭାବପ୍ରବଣତା | ଜଣେ ପାଳିତ ପିତାମାତାଙ୍କ ଦଣ୍ଡ ଅପେକ୍ଷା ଜଣେ ପାଳିତ ଏବଂ ସ୍ନେହୀ ପିତାମାତାଙ୍କଠାରୁ ଦଣ୍ଡ ଅଧିକ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ ହେବାର ସମ୍ଭାବନା ଅଧିକ |
ଏହାର କାରଣ ହେଉଛି ଯେତେବେଳେ ଏକ ସ୍ନେହୀ ପିତାମାତା ପିଲାକୁ ଦଣ୍ଡ ଦିଅନ୍ତି, ପିଲାଟି ପିତାମାତାଙ୍କ ହରାଇଥାଏ |
ଅସ୍ଥାୟୀ ସ୍ନେହ, ଯାହା ତାଙ୍କୁ କଷ୍ଟ ଦେଇଥାଏ | ତେଣୁ ସେ ଅବାଞ୍ଛିତ ଆଚରଣ ବନ୍ଦ କରିଦିଅନ୍ତି |
ପିତାମାତାଙ୍କ ସ୍ନେହକୁ ପୁନ ain ପ୍ରାପ୍ତ କରନ୍ତୁ |
ସ୍ଥିର ଜଣେ ଅନୁଶାସନରେ ସ୍ଥିର ହେବା ଜରୁରୀ | ଏହା ହେବା ଉଚିତ ନୁହେଁ ଯେ ଜଣେ ଦିନେ ଅବାଞ୍ଛିତ କାର୍ଯ୍ୟକୁ ଦଣ୍ଡିତ କରେ, ଏହାକୁ ଅନ୍ୟ ଦିନକୁ ଅଣଦେଖା କରେ ଏବଂ ଅନ୍ୟ ଦିନକୁ ପ୍ରଶଂସା କରେ | ନା ସେ କରିବା ଉଚିତ୍ |
ଅବାଞ୍ଛିତ ଆଚରଣକୁ ଜଣେ ପିତାମାତା ଦଣ୍ଡିତ କରନ୍ତି ଏବଂ ଅନ୍ୟ ଜଣକୁ ଛାଡିଦିଅନ୍ତି | ଏହି ଅସଙ୍ଗତି |
କାର୍ଯ୍ୟରେ ଶିଶୁକୁ ଦ୍ୱନ୍ଦ୍ୱରେ ପକାଇଥାଏ ଏବଂ ଫଳସ୍ୱରୂପ, ଅବାଞ୍ଛିତ ଆଚରଣ ରହିଥାଏ |
ଏକ ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ କାର୍ଯ୍ୟ ପାଇଁ ଦିଆଯାଇଥିବା ଦଣ୍ଡ ନିରପେକ୍ଷ ଏବଂ ମୃଦୁ ହେବା ଆବଶ୍ୟକ | ତଥାପି, ମୃଦୁ |
ଦଣ୍ଡର ସବୁବେଳେ ପ୍ରଭାବ ପଡି ନପାରେ | ଦଣ୍ଡ କେବଳ ମଧ୍ୟମ ହୋଇପାରେ, ଏହା |
କଠୋର ହେବା ଉଚିତ ନୁହେଁ କାରଣ ଏହା ଶିଶୁକୁ ଆଜ୍ଞାକାରୀ କରିଥାଏ, ଏହା ମଧ୍ୟ ଅସନ୍ତୋଷ ସୃଷ୍ଟି କରିଥାଏ |
ଏବଂ ଭୟ କର।

ପିଲାକୁ ବାରମ୍ବାର ଦଣ୍ଡ ଦେବାର ନକାରାତ୍ମକ ପ୍ରଭାବ କ’ଣ, ବିଶେଷ କରି ଶାରୀରିକ |

ଯଦି ଦଣ୍ଡ ଶିଶୁର ଅସଦାଚରଣର ମୁକାବିଲା କରିବାର ଏକ ନିୟମିତ ପଦ୍ଧତିରେ ପରିଣତ ହୁଏ ତେବେ ଏହା ହୋଇପାରେ |
ଅନେକ ନକାରାତ୍ମକ ପରିଣାମ ଅଛି, ବିଶେଷତ when ଯେତେବେଳେ ପିତାମାତା ଏହାର କାରଣ ବର୍ଣ୍ଣନା କରନ୍ତି ନାହିଁ |
ଦଣ୍ଡ
ତେଣୁ ଦଣ୍ଡକୁ ସତର୍କତାର ସହିତ ବ୍ୟବହାର କରାଯିବା ଆବଶ୍ୟକ |
ପିଲା ନିୟମକୁ ଆଭ୍ୟନ୍ତରୀଣ କରିବାରେ ବିଫଳ ହୁଏ |
ଅତ୍ୟଧିକ ଦଣ୍ଡ ପିଲାଙ୍କୁ ଏକ ଅନୁଭବ ଦେଇପାରେ ଯେ ସେ କେବେବି କିଛି ଠିକ୍ କରନ୍ତି ନାହିଁ, ଯାହା ତାଙ୍କ ଆତ୍ମ ସମ୍ମାନକୁ ହ୍ରାସ କରିବାର ସମ୍ଭାବନା ଥାଏ |
ପିଲା ସାଧାରଣତ adults ବୟସ୍କ ଏବଂ ସାଥୀମାନଙ୍କ ସହିତ କମ୍ ଅନୁରୂପ ହୋଇଯାଏ |
ଯେତେବେଳେ ଦଣ୍ଡ ପ୍ରାୟତ used ବ୍ୟବହୃତ ହୁଏ, ଏହା ପିଲାକୁ ପିତାମାତାଙ୍କ ଉପରେ ଅସନ୍ତୋଷ ଏବଂ କ୍ରୋଧ ଅନୁଭବ କରେ |
ସେ ପିତାମାତାଙ୍କୁ ଏଡ଼ାଇବା ଆରମ୍ଭ କରିପାରେ |
କଠୋର ଦଣ୍ଡ ପିଲାଟିରେ ଏତେ ଚିନ୍ତା ସୃଷ୍ଟି କରିପାରେ ଯେ ସେ ଉଦ୍ଦିଷ୍ଟ ଶିକ୍ଷା ଶିଖନ୍ତି ନାହିଁ |
ପିତାମାତା ବାରମ୍ବାର ଶାରୀରିକ ଦଣ୍ଡ ବ୍ୟବହାର କଲେ ଦଣ୍ଡର ଏହି ନକାରାତ୍ମକ ପ୍ରଭାବ ବୃଦ୍ଧି ପାଇଥାଏ |
ଏହା ବ୍ୟତୀତ ଶାରୀରିକ ଦଣ୍ଡର ଆଉ ଏକ ଅବାଞ୍ଛିତ ଦୀର୍ଘସ୍ଥାୟୀ ପ୍ରଭାବ ଅଛି ଏବଂ ତାହା ହେଉଛି |
ପିତାମାତା ଯେଉଁମାନେ ନିୟମିତ ଶାରୀରିକ ଦଣ୍ଡ ବ୍ୟବହାର କରନ୍ତି, ସେମାନେ ଆକ୍ରୋଶର ମଡେଲ ଭାବରେ କାର୍ଯ୍ୟ କରନ୍ତି |
ବୟସ୍କମାନଙ୍କୁ ଦେଖିବା ପରିସ୍ଥିତିକୁ ନିୟନ୍ତ୍ରଣ କରିବା ପାଇଁ ଆକ୍ରୋଶ (ଦଣ୍ଡ) ବ୍ୟବହାର କରେ, ପିଲା ମଧ୍ୟ ଆଚରଣ କରିବା ଆରମ୍ଭ କରେ |
ଆକ୍ରମଣାତ୍ମକ ଭାବରେ |
ଅନେକ ଗବେଷଣା ଅଧ୍ୟୟନ ଏହି ତଥ୍ୟକୁ ସମର୍ଥନ କରିଛନ୍ତି | ଗୋଟିଏ ଅନୁସନ୍ଧାନ ଅଧ୍ୟୟନରେ, ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲାମାନଙ୍କୁ ପିତାମାତା-ଶିଶୁ ବିବାଦର ଭିଡିଓକ୍ୟାପ୍ ଦେଖାଯାଇଥିଲା ଏବଂ ସେମାନେ ପିତାମାତା ହେଲେ ସେମାନେ କଣ କରିବେ ବୋଲି ପଚାରିଥିଲେ | ଏହାର ଉତ୍ତରରେ, ପିଲାମାନେ ସେହି ଅନୁଶାସନ ପ୍ରଣାଳୀ ବିଷୟରେ ଉଲ୍ଲେଖ କରିଥିଲେ ଯାହା ସେମାନଙ୍କର ନିଜ ପିତାମାତା ସେମାନଙ୍କ ସହିତ ବ୍ୟବହାର କରିଥିଲେ |
ଏହା କୁହାଯାଇପାରେ ଯେ ଯେଉଁ ପିତାମାତାମାନେ କଠୋର ଦଣ୍ଡ ବ୍ୟବହାର କରନ୍ତି ସେମାନେ ଅଜାଣତରେ ନିଜ ପିଲାମାନଙ୍କୁ ଦଣ୍ଡ-ଆଧାରିତ କ ques ଶଳ ବ୍ୟବହାର କରିବାକୁ ତାଲିମ ଦେଉଛନ୍ତି |
ଏହା ସମ୍ଭବ ଯେ ଶାରୀରିକ ଦଣ୍ଡ ବ୍ୟବହାର କରୁଥିବା ପିତାମାତାମାନେ ନିଜେ ଶୃଙ୍ଖଳିତ ହୋଇଥିଲେ |
ସେହିଭଳି ପିଲାମାନଙ୍କ ପରି |

ଦଣ୍ଡର ସମୟ କାହିଁକି ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ |

ଦଣ୍ଡର ସମୟ ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ |
ଯେତେବେଳେ ଏହା ତୁରନ୍ତ ଅସଦାଚରଣକୁ ଅନୁସରଣ କରେ ଦଣ୍ଡ ଅଧିକ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ |
ଏକ କାର୍ଯ୍ୟକୁ ବନ୍ଦ କରିବାର ସର୍ବୋତ୍ତମ ସମୟ ହେଉଛି ଯେତେବେଳେ ଏହା ଘଟିବାକୁ ଯାଉଛି କିମ୍ବା ଏହା ଆରମ୍ଭ ହେଉଛି |
ଯେତେବେଳେ ପିଲାଟି ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ଖେଳଣା ଛଡ଼ାଇ ନେଇଥାଏ, ସେତେବେଳେ ଯେତେବେଳେ ପିତାମାତା ଏହା କରିବା ଉଚିତ୍, ଯେତେବେଳେ ପିଲାଟି ପଞ୍ଚମ ଥର ଅପେକ୍ଷା କରିବା ଅପେକ୍ଷା |
ଯଦି ଏହା କରାଯାଏ, ଶାରୀରିକ ଦଣ୍ଡର ଆବଶ୍ୟକତା ଆସିବ ନାହିଁ |

14. What is an aggression on child , What are the factors in the family that promote aggression in the child?

What is an aggression on child

When toddlers are upset or frustrated, they may express their emotions by behaving aggressively. They may throw things and kick others. Preschoolers, beside displaying physical aggression, also begin to use verbal aggression such as calling names and taunting.

  • It is during the preschool years that parents start to deal with aggression more strictly.This is  the causes of aggressive behavior among preschoolers and how the parents can socialize the child away from it.
  • There are many situations in which the preschool child may feel frustrated and, therefore,
    behave aggressively. She may have been punished, she may not be getting the attention of
    her parents, she cannot get the toy she wants to play with or has been left out of the playgroup.
  • When preschoolers play together, some frustration is bound to result, as they fail to consider
    each other’s point of view. Such situations can lead to temper tantrums, and physical aggression.
  •  Since aggression is neither a desirable nor a fruitful way of dealing with situations, it is important for the caregivers to socialize the child away from aggressive behavior.
  • One way this can be done is to understand what causes children to behave aggressively and then remove those causes so that the child’s behavior changes.

What are the factors in the family that promote aggression in the child?

Parents serve as models for aggression  children learn to behave aggressively is by
watching others. Parents who are aggressive themselves serve as models for aggression
and their children are likely to imitate their aggressive behavior.

One research study showed conclusively that aggressive behavior is learned through imitation. In that study, children between three and five years of age were divided into three groups.

One of the groups watched a film where an adult punished, threw, kicked and sat on a rubber doll.

Another group watched a, film in which a cartoon, figure hit the doll and the third group saw the
adult sit quietly near the doll and play .

After watching the,film, children were allowed to play with their toys and a doll similar to the one in the film.

Most of the children who had seen the doll being hit by the adult, hit the doll themselves and many
of them imitated the adult’s actions blow by blow.

Most of the children in the third group played with the doll, without kicking it or behaving aggressively towards it.

Inconsistency between the caregiver’s words and actions is another factor that increases
aggressive behavior in children. When parents verbally disapprove of aggressive behavior
but, in practice, use aggression towards others, the child shows higher levels of aggression.
As in the case of learning to be altruistic, it is not enough to say “Do what I say”. One has to
set an example.

Parents behavior towards the child may cause the child to behave aggressively. Parents
who are hostile and rejecting towards their child are increasing the chances of their child behaving aggressively. The child uses aggression as a means of attracting the parents .

parents use physical punishment inconsistently and arbitrarily, i.e.
as and when they feel like it, it usually leads to aggression in the child. But again there are
individual differences. Some children suppress their hostile responses if they are punished,
but others persist, and some even increase their aggressive behavior

14. बच्चे पर आक्रामकता क्या है, परिवार में ऐसे कौन से कारक हैं जो बच्चे में आक्रामकता को बढ़ावा देते हैं?

बच्चे पर आक्रामकता क्या है

जब बच्चे परेशान या निराश होते हैं, तो वे आक्रामक व्यवहार करके अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं। वे चीजें फेंक सकते हैं और दूसरों को लात मार सकते हैं। प्रीस्कूलर, शारीरिक आक्रामकता दिखाने के अलावा, मौखिक आक्रामकता का भी उपयोग करना शुरू कर देते हैं जैसे कि नाम पुकारना और ताना मारना।

यह पूर्वस्कूली वर्षों के दौरान है कि माता-पिता आक्रामकता से अधिक सख्ती से निपटना शुरू करते हैं। यह प्रीस्कूलर के बीच आक्रामक व्यवहार का कारण है और माता-पिता बच्चे को इससे कैसे दूर कर सकते हैं।
ऐसी कई स्थितियाँ हैं जिनमें पूर्वस्कूली बच्चा निराश महसूस कर सकता है और इसलिए,
आक्रामक व्यवहार करें। हो सकता है कि उसे दंडित किया गया हो, उस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा हो
उसके माता-पिता, उसे वह खिलौना नहीं मिल सकता जिसके साथ वह खेलना चाहती है या उसे प्लेग्रुप से बाहर कर दिया गया है।
जब प्रीस्कूलर एक साथ खेलते हैं, तो कुछ निराशा का परिणाम होना तय है, क्योंकि वे विचार करने में विफल रहते हैं
एक दूसरे का दृष्टिकोण। ऐसी स्थितियों से गुस्सा नखरे और शारीरिक आक्रामकता हो सकती है।
चूंकि आक्रामकता परिस्थितियों से निपटने का न तो वांछनीय और न ही उपयोगी तरीका है, इसलिए देखभाल करने वालों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे बच्चे को आक्रामक व्यवहार से दूर रखें।
ऐसा करने का एक तरीका यह है कि यह समझें कि बच्चे किस कारण से आक्रामक व्यवहार करते हैं और फिर उन कारणों को हटा दें ताकि बच्चे का व्यवहार बदल जाए।

परिवार में ऐसे कौन से कारक हैं जो बच्चे में आक्रामकता को बढ़ावा देते हैं?

माता-पिता आक्रामकता के लिए मॉडल के रूप में सेवा करते हैं बच्चे आक्रामक व्यवहार करना सीखते हैं
दूसरों को देख रहे हैं। जो माता-पिता स्वयं आक्रामक होते हैं वे आक्रामकता के लिए मॉडल के रूप में कार्य करते हैं
और उनके बच्चे उनके आक्रामक व्यवहार की नकल करने की संभावना रखते हैं।

एक शोध अध्ययन ने निर्णायक रूप से दिखाया कि आक्रामक व्यवहार अनुकरण के माध्यम से सीखा जाता है। उस अध्ययन में तीन से पांच साल की उम्र के बच्चों को तीन समूहों में बांटा गया था।

समूहों में से एक ने एक फिल्म देखी जिसमें एक वयस्क ने दंडित किया, फेंका, लात मारी और रबर की गुड़िया पर बैठ गया।

एक अन्य समूह ने एक फिल्म देखी, जिसमें एक कार्टून, आकृति गुड़िया को लगी और तीसरे समूह ने देखा
वयस्क चुपचाप गुड़िया के पास बैठते हैं और खेलते हैं।

फिल्म देखने के बाद, बच्चों को अपने खिलौनों और फिल्म की तरह एक गुड़िया के साथ खेलने की अनुमति दी गई।

जिन बच्चों ने गुड़िया को वयस्कों द्वारा मारा जा रहा था, उनमें से अधिकांश बच्चों ने खुद गुड़िया को मारा और कई
उनमें से वयस्कों के कार्यों को झटका से उड़ा दिया।

तीसरे समूह के अधिकांश बच्चे गुड़िया को लात मारे बिना या उसके प्रति आक्रामक व्यवहार किए बिना उसके साथ खेलते थे।

देखभाल करने वाले के शब्दों और कार्यों के बीच असंगति एक और कारक है जो बढ़ जाता है
बच्चों में आक्रामक व्यवहार। जब माता-पिता मौखिक रूप से आक्रामक व्यवहार को अस्वीकार करते हैं
लेकिन, व्यवहार में, दूसरों के प्रति आक्रामकता का प्रयोग करें, बच्चा उच्च स्तर की आक्रामकता दिखाता है।
जैसा कि परोपकारी होना सीखने के मामले में, “मैं जो कहता हूं वह करो” कहना पर्याप्त नहीं है। एक करना है
एक उदाहरण स्थापित।

बच्चे के प्रति माता-पिता का व्यवहार बच्चे को आक्रामक व्यवहार करने का कारण बन सकता है। माता-पिता
जो शत्रुतापूर्ण हैं और अपने बच्चे के प्रति अस्वीकार कर रहे हैं, उनके बच्चे के आक्रामक व्यवहार करने की संभावना बढ़ रही है। माता-पिता को आकर्षित करने के साधन के रूप में बच्चा आक्रामकता का उपयोग करता है।

माता-पिता असंगत और मनमाने ढंग से शारीरिक दंड का उपयोग करते हैं, अर्थात।
जब और जब वे ऐसा महसूस करते हैं, तो यह आमतौर पर बच्चे में आक्रामकता की ओर ले जाता है। लेकिन फिर से हैं
व्यक्तिगत मतभेद। कुछ बच्चे दंडित होने पर अपनी शत्रुतापूर्ण प्रतिक्रियाओं को दबा देते हैं,
लेकिन अन्य बने रहते हैं, और कुछ अपने आक्रामक व्यवहार को भी बढ़ा देते हैं

14. ପିଲା ଉପରେ ଆକ୍ରୋଶ କ’ଣ, ପରିବାରରେ କେଉଁ କାରଣଗୁଡ଼ିକ ପିଲାଙ୍କ ଉପରେ ଆକ୍ରୋଶକୁ ପ୍ରୋତ୍ସାହିତ କରେ?

ପିଲା ଉପରେ ଆକ୍ରୋଶ କ’ଣ?

ଯେତେବେଳେ ଛୋଟ ପିଲାମାନେ ବିରକ୍ତ ହୁଅନ୍ତି କିମ୍ବା ହତାଶ ହୁଅନ୍ତି, ସେମାନେ ଆକ୍ରମଣାତ୍ମକ ଆଚରଣ କରି ନିଜର ଭାବନା ପ୍ରକାଶ କରିପାରନ୍ତି | ସେମାନେ ଜିନିଷ ଫିଙ୍ଗି ଅନ୍ୟମାନଙ୍କୁ ପିଟି ପାରନ୍ତି | ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲାମାନେ, ଶାରୀରିକ ଆକ୍ରୋଶ ପ୍ରଦର୍ଶନ କରିବା ସହିତ, ନାମ ଡାକିବା ଏବଂ ଅପମାନ କରିବା ଭଳି ମ bal ଖିକ ଆକ୍ରୋଶ ମଧ୍ୟ ବ୍ୟବହାର କରିବା ଆରମ୍ଭ କରନ୍ତି |

ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟ ବର୍ଷରେ ହିଁ ପିତାମାତାମାନେ ଆକ୍ରୋଶର ମୁକାବିଲା କରିବାକୁ ଆରମ୍ଭ କରନ୍ତି | ଏହା ହେଉଛି ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲାମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ଆକ୍ରମଣାତ୍ମକ ଆଚରଣର କାରଣ ଏବଂ ପିତାମାତା କିପରି ପିଲାଙ୍କୁ ଏଥିରୁ ଦୂରେଇ ରଖିପାରିବେ |
ଅନେକ ପରିସ୍ଥିତି ଅଛି ଯେଉଁଥିରେ ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲା ହତାଶ ଅନୁଭବ କରିପାରନ୍ତି ଏବଂ, ତେଣୁ,
ଆକ୍ରମଣାତ୍ମକ ଆଚରଣ କର | ସେ ହୁଏତ ଦଣ୍ଡିତ ହୋଇଥାଇ ପାରନ୍ତି, ସେ ହୁଏତ ଦୃଷ୍ଟି ଆକର୍ଷଣ କରୁନାହାଁନ୍ତି |
ତାଙ୍କ ପିତାମାତା, ସେ ଖେଳିବାକୁ ଚାହୁଁଥିବା ଖେଳନା ପାଇପାରିବେ ନାହିଁ କିମ୍ବା ପ୍ଲେ ଗ୍ରୁପରୁ ବାଦ ପଡିଛନ୍ତି |
ଯେତେବେଳେ ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟଗୁଡ଼ିକ ଏକତ୍ର ଖେଳନ୍ତି, କିଛି ନିରାଶା ଫଳାଫଳ ହେବାକୁ ବାଧ୍ୟ ହୋଇଥାଏ, ଯେହେତୁ ସେମାନେ ବିଚାର କରିବାରେ ବିଫଳ ହୋଇଥିଲେ |
ପରସ୍ପରର ଦୃଷ୍ଟିକୋଣ | ଏହିପରି ପରିସ୍ଥିତି କ୍ରୋଧିତ ହୋଇପାରେ ଏବଂ ଶାରୀରିକ ଆକ୍ରୋଶର କାରଣ ହୋଇପାରେ |
ଯେହେତୁ ଆକ୍ରୋଶ ଏକ ପରିସ୍ଥିତିର ମୁକାବିଲା ପାଇଁ ଏକ ଇଚ୍ଛାଯୋଗ୍ୟ କିମ୍ବା ଫଳପ୍ରଦ ଉପାୟ ନୁହେଁ, ତେଣୁ ଅଭିଭାବକମାନେ ଶିଶୁକୁ ଆକ୍ରମଣାତ୍ମକ ଆଚରଣରୁ ଦୂରରେ ସାମାଜିକ କରିବା ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ |
ଏହା କରିବା ପାଇଁ ଗୋଟିଏ ଉପାୟ ହେଉଛି ବୁ understand ିବା ହେଉଛି କେଉଁ କାରଣରୁ ପିଲାମାନେ ଆକ୍ରମଣାତ୍ମକ ଆଚରଣ କରନ୍ତି ଏବଂ ତା’ପରେ ସେହି କାରଣଗୁଡ଼ିକୁ ଅପସାରଣ କରନ୍ତି ଯାହା ଦ୍ the ାରା ଶିଶୁର ଆଚରଣ ବଦଳିଯାଏ |

ପରିବାରରେ କେଉଁ କାରଣଗୁଡ଼ିକ ପିଲାଙ୍କ ଉପରେ ଆକ୍ରୋଶକୁ ପ୍ରୋତ୍ସାହିତ କରେ?

ଅଭିଭାବକମାନେ ଆକ୍ରୋଶର ଆଦର୍ଶ ଭାବରେ କାର୍ଯ୍ୟ କରନ୍ତି ପିଲାମାନେ ଆକ୍ରମଣାତ୍ମକ ଆଚରଣ କରିବାକୁ ଶିଖନ୍ତି |
ଅନ୍ୟମାନଙ୍କୁ ଦେଖିବା | ପିତାମାତା ଯେଉଁମାନେ ନିଜେ ଆକ୍ରମଣାତ୍ମକ ଅଟନ୍ତି, ସେମାନେ ଆକ୍ରୋଶର ଆଦର୍ଶ ଭାବରେ କାର୍ଯ୍ୟ କରନ୍ତି |
ଏବଂ ସେମାନଙ୍କର ପିଲାମାନେ ସେମାନଙ୍କର ଆକ୍ରମଣାତ୍ମକ ଆଚରଣକୁ ଅନୁକରଣ କରିବାର ସମ୍ଭାବନା ଅଛି |

ଗୋଟିଏ ଅନୁସନ୍ଧାନ ଅଧ୍ୟୟନ ଚରମ ଭାବରେ ଦର୍ଶାଇଲା ଯେ ଅନୁକରଣ ମାଧ୍ୟମରେ ଆକ୍ରମଣାତ୍ମକ ଆଚରଣ ଶିଖାଯାଏ | ସେହି ଅଧ୍ୟୟନରେ, ତିନି ରୁ ପାଞ୍ଚ ବର୍ଷ ବୟସର ପିଲାମାନଙ୍କୁ ତିନି ଗୋଷ୍ଠୀରେ ବିଭକ୍ତ କରାଯାଇଥିଲା |

ଗୋଷ୍ଠୀ ମଧ୍ୟରୁ ଗୋଟିଏ ଫିଲ୍ମ ଦେଖିଲା ଯେଉଁଠାରେ ଜଣେ ବୟସ୍କ ବ୍ୟକ୍ତି ଏକ ରବର ଡଲ୍ ଉପରେ ଦଣ୍ଡିତ, ଫିଙ୍ଗି, କିସ୍ କରି ବସିଥିଲେ |

ଅନ୍ୟ ଏକ ଗୋଷ୍ଠୀ ଏକ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଦେଖିଲେ ଯେଉଁଥିରେ ଏକ କାର୍ଟୁନ୍, ଫିଗର୍ ଡଲ୍ କୁ ଧକ୍କା ଦେଇଥିଲା ଏବଂ ତୃତୀୟ ଗୋଷ୍ଠୀ ଦେଖିଥିଲେ |
ବୟସ୍କମାନେ ଡଲ୍ ପାଖରେ ଚୁପଚାପ୍ ବସି ଖେଳନ୍ତୁ |

ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଦେଖିବା ପରେ ପିଲାମାନଙ୍କୁ ସେମାନଙ୍କର ଖେଳନା ଏବଂ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ରରେ ଥିବା ଏକ ପୋଷାକ ସହିତ ଖେଳିବାକୁ ଅନୁମତି ଦିଆଯାଇଥିଲା |

ଅଧିକାଂଶ ପିଲା ଯେଉଁମାନେ ବୟସ୍କଙ୍କ ଦ୍ the ାରା ଡଲ୍ ମାଡ ହେଉଥିବା ଦେଖିଥିଲେ, ସେମାନେ ନିଜେ ଏବଂ ଅନେକଙ୍କୁ ଡଲ୍ ମାରିଥିଲେ |
ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ବୟସ୍କଙ୍କ କାର୍ଯ୍ୟକଳାପକୁ ଅନୁକରଣ କରି ଅନୁକରଣ କରିଥିଲେ |

ତୃତୀୟ ଗୋଷ୍ଠୀର ଅଧିକାଂଶ ପିଲା ଏହାକୁ ପିଟିବା କିମ୍ବା ଏହା ପ୍ରତି ଆକ୍ରମଣାତ୍ମକ ବ୍ୟବହାର ନକରି ଡଲ୍ ସହିତ ଖେଳିଥିଲେ |

ଅଭିଭାବକଙ୍କ ଶବ୍ଦ ଏବଂ କାର୍ଯ୍ୟ ମଧ୍ୟରେ ଅସଙ୍ଗତି ହେଉଛି ଅନ୍ୟ ଏକ କାରଣ ଯାହା ବ .ିଥାଏ |
ପିଲାମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ଆକ୍ରମଣାତ୍ମକ ଆଚରଣ | ଯେତେବେଳେ ପିତାମାତାମାନେ ଆକ୍ରମଣାତ୍ମକ ଆଚରଣକୁ ମ b ଖିକ ଭାବରେ ନାପସନ୍ଦ କରନ୍ତି |
କିନ୍ତୁ, ଅଭ୍ୟାସରେ, ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ପ୍ରତି ଆକ୍ରୋଶ ବ୍ୟବହାର କରନ୍ତୁ, ପିଲା ଉଚ୍ଚ ସ୍ତରର ଆକ୍ରୋଶ ଦେଖାଏ |
ଯେପରି ସ୍ୱାର୍ଥପର ହେବାକୁ ଶିଖିବା ପରି, “ମୁଁ ଯାହା କହୁଛି ତାହା କର” କହିବା ଯଥେଷ୍ଟ ନୁହେଁ | ଜଣକୁ କରିବାକୁ ପଡିବ |
ଏକ ଉଦାହରଣ ସେଟ୍ କରନ୍ତୁ |

ପିଲାଙ୍କ ପ୍ରତି ପିତାମାତାଙ୍କ ଆଚରଣ ପିଲାକୁ ଆକ୍ରମଣାତ୍ମକ ଆଚରଣ କରିପାରେ | ପିତାମାତା |
ଯେଉଁମାନେ ଶତ୍ରୁ ଏବଂ ସେମାନଙ୍କ ପିଲାଙ୍କ ପ୍ରତି ପ୍ରତ୍ୟାଖ୍ୟାନ କରନ୍ତି, ସେମାନଙ୍କ ପିଲା ଆକ୍ରମଣାତ୍ମକ ଆଚରଣ କରିବାର ସମ୍ଭାବନା ବ are ଼ାଉଛନ୍ତି | ପିଲାଟି ପିତାମାତାଙ୍କୁ ଆକର୍ଷିତ କରିବାର ଏକ ମାଧ୍ୟମ ଭାବରେ ଆକ୍ରୋଶ ବ୍ୟବହାର କରେ |

ପିତାମାତାମାନେ ଶାରୀରିକ ଦଣ୍ଡକୁ ଅସଙ୍ଗତ ଏବଂ ଇଚ୍ଛାଧୀନ ଭାବରେ ବ୍ୟବହାର କରନ୍ତି, ଯଥା |
ଯେପରି ଏବଂ ଯେତେବେଳେ ସେମାନେ ଏହା ଅନୁଭବ କରନ୍ତି, ଏହା ସାଧାରଣତ the ପିଲାଙ୍କ ଉପରେ ଆକ୍ରୋଶର କାରଣ ହୋଇଥାଏ | କିନ୍ତୁ ପୁନର୍ବାର ସେଠାରେ ଅଛି |
ବ୍ୟକ୍ତିଗତ ପାର୍ଥକ୍ୟ | କିଛି ପିଲା ଯଦି ସେମାନଙ୍କର ଦଣ୍ଡିତ ହୁଅନ୍ତି, ତେବେ ସେମାନଙ୍କର ଶତ୍ରୁ ପ୍ରତିକ୍ରିୟାକୁ ଦମନ କରନ୍ତି,
କିନ୍ତୁ ଅନ୍ୟମାନେ ସ୍ଥିର ରୁହନ୍ତି, ଏବଂ କେତେକ ସେମାନଙ୍କ ଆକ୍ରମଣାତ୍ମକ ଆଚରଣକୁ ମଧ୍ୟ ବ increase ାନ୍ତି |

15. What is EMPATHY AND ALTRUISM, How can parents foster the development of empathy and prosocial behavior in children?

EMPATHY

Empathy is the ability to emotionally understand what other people feel, see things from their point of view, and imagine yourself in their place. Essentially, it is putting yourself in someone else’s position and feeling what they must be feeling.

Toddlers will hug or kiss a person who is looking distressed, in an effort to help. That they can infer the emotional state of another person means that they can recall their own earlier
emotional experiences and understand how the other person must be feeling.

They are, however, still limited to their own perspective in deciding what would be most comforting
for the distressed person. During preschool years, as the child’s ability to see things from
another person’s perspective develops further, she responds by doing what the distressed
person would like.

The following incident brings out how well five-year-old Salma understands her mother’s feelings and how sensitively she deals with them.

Salma’s mother was not feeling well and was resting in bed. Salma, who had been playing
outside, came in to find her mother looking ill. Salma went up to her, placed her hand on
her forehead and said, “Are you ill? Should I tell Papa? We will call the doctor. O.K. “, and
ran out of the room to look for her father in the neighboring house.

ALTRUISM

Altruism is the unselfish concern for other people—doing things simply out of a desire to help, not because you feel obligated to out of duty, loyalty, or religious reasons. It involves acting out of concern for the well-being of other people.

How can parents foster the development of empathy and prosocial behavior in children?

  • providing warmth and being caring towards the child
  •  modeling prosocial behaviour-
  • using the affection-oriented method of disciplining
  • being firm and affectionate in parenting

15. सहानुभूति और परोपकारिता क्या है, माता-पिता बच्चों में सहानुभूति और सामाजिक व्यवहार के विकास को कैसे बढ़ावा दे सकते हैं?

सहानुभूति

सहानुभूति भावनात्मक रूप से यह समझने की क्षमता है कि दूसरे लोग क्या महसूस करते हैं, चीजों को उनके दृष्टिकोण से देखते हैं, और उनके स्थान पर खुद की कल्पना करते हैं। अनिवार्य रूप से, यह खुद को किसी और की स्थिति में डाल रहा है और महसूस कर रहा है कि वे क्या महसूस कर रहे होंगे।

बच्चों को गले या एक व्यक्ति जो दिखने मदद करने के प्रयास में व्यथित है, चुंबन होगा। कि वे किसी अन्य व्यक्ति की भावनात्मक स्थिति का अनुमान लगा सकते हैं, इसका मतलब है कि वे अपनी खुद की पहले की याद कर सकते हैं
भावनात्मक अनुभव और समझें कि दूसरे व्यक्ति को कैसा महसूस होना चाहिए।

हालाँकि, वे अभी भी यह तय करने में अपने स्वयं के दृष्टिकोण तक सीमित हैं कि सबसे अधिक सुकून देने वाला क्या होगा
व्यथित व्यक्ति के लिए। पूर्वस्कूली वर्षों के दौरान, बच्चे की चीजों को देखने की क्षमता के रूप में
किसी अन्य व्यक्ति का दृष्टिकोण आगे विकसित होता है, वह व्यथित को करने के द्वारा प्रतिक्रिया करता है
व्यक्ति चाहेगा।

निम्नलिखित घटना से पता चलता है कि पांच वर्षीय सलमा अपनी मां की भावनाओं को कितनी अच्छी तरह समझती है और उनके साथ कितनी संवेदनशीलता से पेश आती है।

सलमा की माँ की तबीयत ठीक नहीं थी और वह बिस्तर पर आराम कर रही थी। सलमा, जो खेल रही थी
बाहर, अपनी माँ को बीमार देखने के लिए अंदर आई। सलमा उसके पास गई, उस पर हाथ रखा
उसके माथे और कहा, “क्या तुम बीमार हो? क्या मैं पापा को बता दूं? हम डॉक्टर को बुलाएंगे। ठीक है “, और
पड़ोस के घर में अपने पिता को खोजने के लिए कमरे से बाहर भागी।

दूसरों का उपकार करने का सिद्धान्त

परोपकारिता अन्य लोगों के लिए निःस्वार्थ चिंता है – केवल मदद करने की इच्छा से काम करना, इसलिए नहीं कि आप कर्तव्य, निष्ठा, या धार्मिक कारणों से बाध्य महसूस करते हैं। इसमें अन्य लोगों की भलाई के लिए चिंता से बाहर कार्य करना शामिल है।

माता-पिता बच्चों में सहानुभूति और सामाजिक व्यवहार के विकास को कैसे बढ़ावा दे सकते हैं?

गर्मी प्रदान करना और बच्चे की देखभाल करना
मॉडलिंग अभियोग व्यवहार-
अनुशासित करने की स्नेह-उन्मुख पद्धति का उपयोग करना
पालन-पोषण में दृढ़ और स्नेही होना

15. EMPATHY ଏବଂ ALTRUISM କ’ଣ, ପିତାମାତାମାନେ ପିଲାମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ସହାନୁଭୂତି ଏବଂ ସାମାଜିକ ଆଚରଣର ବିକାଶକୁ କିପରି ବୃଦ୍ଧି କରିପାରିବେ?

EMPATHY

ସହାନୁଭୂତି ହେଉଛି ଅନ୍ୟ ଲୋକମାନେ ଯାହା ଅନୁଭବ କରନ୍ତି, ଭାବପ୍ରବଣ ଭାବରେ ବୁ understand ିବା, ଜିନିଷଗୁଡ଼ିକୁ ସେମାନଙ୍କ ଦୃଷ୍ଟିକୋଣରୁ ଦେଖିବା ଏବଂ ନିଜ ସ୍ଥାନରେ ନିଜକୁ କଳ୍ପନା କରିବାର କ୍ଷମତା | ମୂଳତ।, ଏହା ନିଜକୁ ଅନ୍ୟର ସ୍ଥିତିରେ ରଖୁଛି ଏବଂ ସେମାନେ ଯାହା ଅନୁଭବ କରୁଛନ୍ତି ତାହା ଅନୁଭବ କରୁଛନ୍ତି |

ଛୋଟ ପିଲାମାନେ ସାହାଯ୍ୟ କରିବାକୁ ଏକ ପ୍ରୟାସରେ ଦୁ distress ଖୀ ଦେଖାଯାଉଥିବା ବ୍ୟକ୍ତିଙ୍କୁ ଆଲିଙ୍ଗନ କରିବେ କିମ୍ବା ଚୁମ୍ବନ ଦେବେ | ଯେ ସେମାନେ ଅନ୍ୟ ଜଣଙ୍କର ଭାବପ୍ରବଣ ସ୍ଥିତିକୁ ଅନୁମାନ କରିପାରନ୍ତି ଏହାର ଅର୍ଥ ହେଉଛି ଯେ ସେମାନେ ପୂର୍ବରୁ ନିଜର ସ୍ମରଣ କରିପାରନ୍ତି |
ଭାବପ୍ରବଣ ଅନୁଭୂତି ଏବଂ ଅନ୍ୟ ଜଣ କିପରି ଅନୁଭବ କରୁଛନ୍ତି ତାହା ବୁ understand ନ୍ତୁ |

କ’ଣ, ଅଧିକ ଆରାମଦାୟକ ହେବ ତାହା ସ୍ଥିର କରିବାରେ ସେମାନେ ତଥାପି ନିଜ ନିଜ ଦୃଷ୍ଟିକୋଣରେ ସୀମିତ |
ଦୁ ed ଖୀ ବ୍ୟକ୍ତିଙ୍କ ପାଇଁ | ପ୍ରାକ୍ ବିଦ୍ୟାଳୟ ବର୍ଷରେ, ପିଲାଙ୍କ ଠାରୁ ଜିନିଷ ଦେଖିବାର କ୍ଷମତା ଭାବରେ |
ଅନ୍ୟର ଦୃଷ୍ଟିକୋଣ ଆହୁରି ବିକଶିତ ହୁଏ, ସେ ଦୁ ed ଖୀ ଯାହା କରି ପ୍ରତିକ୍ରିୟା କରନ୍ତି |
ବ୍ୟକ୍ତି ଚାହାଁନ୍ତି |

ନିମ୍ନଲିଖିତ ଘଟଣାଟି ପା five ୍ଚ ବର୍ଷ ବୟସ୍କା ସଲମା ନିଜ ମା’ର ଭାବନାକୁ କେତେ ଭଲ ଭାବରେ ବୁ understand ନ୍ତି ଏବଂ ସେ ସେମାନଙ୍କ ସହିତ କେତେ ସମ୍ବେଦନଶୀଳ ଭାବରେ ବ୍ୟବହାର କରନ୍ତି |

ସଲମାଙ୍କ ମା ଭଲ ଅନୁଭବ କରୁନଥିଲେ ଏବଂ ବିଛଣାରେ ବିଶ୍ରାମ ନେଉଥିଲେ। ଖେଳୁଥିବା ସଲମା
ବାହାରେ, ମାଆ ଅସୁସ୍ଥ ଥିବା ଦେଖିବାକୁ ପାଇଲେ | ସଲମା ତାଙ୍କ ପାଖକୁ ଯାଇ ତାଙ୍କ ହାତ ରଖିଲେ
ତାଙ୍କ କପାଳରେ କହିଲା, “ତୁମେ ଅସୁସ୍ଥ କି? ମୁଁ ପାପାଙ୍କୁ କହିବି କି? ଆମେ ଡାକ୍ତରଙ୍କୁ ଡାକିବୁ। O.K.”, ଏବଂ
ପଡୋଶୀ ଘରେ ପିତାଙ୍କୁ ଖୋଜିବା ପାଇଁ କୋଠରୀରୁ ଦ ran ଡ଼ିଗଲେ |

ALTRUISM

ସ୍ୱାର୍ଥପରତା ଅନ୍ୟ ଲୋକଙ୍କ ପାଇଁ ନି self ସ୍ୱାର୍ଥପର ଚିନ୍ତା – ସାହାଯ୍ୟ କରିବାକୁ ଇଚ୍ଛା କରି କାର୍ଯ୍ୟ କରିବା, କାରଣ ତୁମେ କର୍ତ୍ତବ୍ୟ, ବିଶ୍ୱସ୍ତତା କିମ୍ବା ଧାର୍ମିକ କାରଣରୁ ବାଧ୍ୟ ବୋଲି ଅନୁଭବ କରୁନାହଁ | ଏହା ଅନ୍ୟ ଲୋକଙ୍କ କଲ୍ୟାଣ ପାଇଁ ଚିନ୍ତା କରି କାର୍ଯ୍ୟ କରିବା ସହିତ ଜଡିତ |

ପିତାମାତାମାନେ ପିଲାମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ସହାନୁଭୂତି ଏବଂ ସାମାଜିକ ଆଚରଣର ବିକାଶକୁ କିପରି ବୃଦ୍ଧି କରିପାରିବେ?

ଉଷ୍ମତା ପ୍ରଦାନ କରିବା ଏବଂ ପିଲା ପ୍ରତି ଯତ୍ନବାନ ହେବା |
ପ୍ରୋସିସିଆଲ୍ ଆଚରଣ ମଡେଲିଂ-
ଅନୁଶାସନର ସ୍ନେହ-ଆଧାରିତ ପଦ୍ଧତି ବ୍ୟବହାର କରି |
ପିତାମାତାଙ୍କ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଦୃ firm ଏବଂ ସ୍ନେହଶୀଳ ହେବା |

16. describe the nature of friendship during the preschool years. What role do friends play for the preschoolers?

nature of friendship during the preschool years

  • Friendships of preschool age are “momentary playmates”.
  • To preschoolers, a friend is someone you play with at that time.
  • Preschoolers are not concerned about lasting friendship.
  • Older preschoolers realize that feelings keep friends together, but they only think about their needs.

What role do friends play for the preschoolers

  • Friends provide emotional security.
  • From them, the child learns many skills.
  • They serve as standard against whom the child evaluates herself.
  • Interactions with friends foster cognitive and social development.
  • Friends enjoy doing the same things as the child herself .

16. पूर्वस्कूली वर्षों के दौरान दोस्ती की प्रकृति का वर्णन करें। प्रीस्कूलर के लिए दोस्त क्या भूमिका निभाते हैं?

पूर्वस्कूली वर्षों के दौरान दोस्ती की प्रकृति

पूर्वस्कूली उम्र की दोस्ती “क्षणिक सहपाठी” हैं।
प्रीस्कूलर के लिए, एक दोस्त वह होता है जिसके साथ आप उस समय खेलते हैं।
प्रीस्कूलर स्थायी दोस्ती के बारे में चिंतित नहीं हैं।
पुराने प्रीस्कूलर महसूस करते हैं कि भावनाएं दोस्तों को एक साथ रखती हैं, लेकिन वे केवल अपनी जरूरतों के बारे में सोचते हैं।

प्रीस्कूलर के लिए दोस्त क्या भूमिका निभाते हैं

मित्र भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करते हैं।
इनसे बच्चा कई तरह के हुनर सीखता है।
वे मानक के रूप में कार्य करते हैं जिनके विरुद्ध बच्चा स्वयं का मूल्यांकन करता है।
दोस्तों के साथ बातचीत संज्ञानात्मक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देती है।
दोस्तों को वही काम करने में मजा आता है जो खुद बच्चे को करते हैं।

16. ପ୍ରାକ୍ ବିଦ୍ୟାଳୟ ବର୍ଷରେ ବନ୍ଧୁତ୍ୱର ପ୍ରକୃତି ବର୍ଣ୍ଣନା କର | ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲାମାନଙ୍କ ପାଇଁ ସାଙ୍ଗମାନେ କେଉଁ ଭୂମିକା ଗ୍ରହଣ କରନ୍ତି?

ପ୍ରାକ୍ ବିଦ୍ୟାଳୟ ବର୍ଷରେ ବନ୍ଧୁତ୍ୱର ପ୍ରକୃତି |

ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ବନ୍ଧୁତା ହେଉଛି “କ୍ଷଣସ୍ଥାୟୀ ଖେଳାଳୀ” |
ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲାମାନଙ୍କ ପାଇଁ, ଜଣେ ବନ୍ଧୁ ତୁମେ ସେହି ସମୟରେ ଖେଳୁଛ |
ପ୍ରାଥମିକ ବନ୍ଧୁମାନେ ଚିରସ୍ଥାୟୀ ବନ୍ଧୁତା ପାଇଁ ଚିନ୍ତିତ ନୁହଁନ୍ତି |
ପୁରାତନ ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲାମାନେ ଅନୁଭବ କରନ୍ତି ଯେ ଭାବନା ସାଙ୍ଗମାନଙ୍କୁ ଏକତ୍ର ରଖେ, କିନ୍ତୁ ସେମାନେ କେବଳ ସେମାନଙ୍କର ଆବଶ୍ୟକତା ବିଷୟରେ ଚିନ୍ତା କରନ୍ତି |

ସାଙ୍ଗମାନେ ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟ ପାଇଁ କେଉଁ ଭୂମିକା ଗ୍ରହଣ କରନ୍ତି |

ବନ୍ଧୁମାନେ ଭାବପ୍ରବଣ ସୁରକ୍ଷା ପ୍ରଦାନ କରନ୍ତି |
ସେମାନଙ୍କଠାରୁ ପିଲା ଅନେକ କ skills ଶଳ ଶିଖେ |
ସେମାନେ ମାନକ ଭାବରେ କାର୍ଯ୍ୟ କରନ୍ତି ଯାହା ବିରୁଦ୍ଧରେ ପିଲା ନିଜକୁ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରେ |
ସାଙ୍ଗମାନଙ୍କ ସହିତ କଥାବାର୍ତ୍ତା ଜ୍ ogn ାନକ social ଶଳ ଏବଂ ସାମାଜିକ ବିକାଶକୁ ପ୍ରୋତ୍ସାହିତ କରିଥାଏ |
ସାଙ୍ଗମାନେ ପିଲାଙ୍କ ପରି ସମାନ କାର୍ଯ୍ୟ କରିବାକୁ ଉପଭୋଗ କରନ୍ତି |

17.  Explain What is stranger anxiety and Separation Anxiety . 

Stranger Anxiety

  •  When we tried approaching infants between five and twelve months of age who are not familiar with you?
  • the chances are that most would have shown fear at your approach.
  • The typical behavior of the infant in such situations is as follows: she studies the stranger’s face for some time, then her face tightens and she begins to cry.
  • If the stranger leaves, the child becomes quiet. The infant is showing stranger anxiety.
  • This is a direct result of her attachment with her parents. Once attached, infants become upset on seeing an unfamiliar adult.
  • Such anxiety shows its beginning around six months and reaches its peak between eight and twelve months, gradually disappearing between fifteen and eighteen months.

Separation Anxiety

  • A little after infants become aware of strangers, they begin to develop anxiety about being separated from those to whom they are attached.
  • We seen that around 10 or 11 months of age many infants spend a considerable time following parents from room to room, making sure they are available when needed.
  • As long as the parents are within sight, the infants will play and explore even in unfamiliar situations.
  • But when separated from the parents, they get distressed, This fear is referred to as separation anxiety.
  • It is at its peak around 12 to 18 months of age and disappears between 20 and 24 months of age.

समझाएं कि अजनबी चिंता और पृथक्करण चिंता क्या है।

अजनबी चिंता

जब हमने पांच से बारह महीने की उम्र के उन शिशुओं से संपर्क करने की कोशिश की जो आपसे परिचित नहीं हैं?
संभावना है कि अधिकांश लोगों ने आपके दृष्टिकोण पर भय दिखाया होगा।
ऐसी स्थितियों में शिशु का विशिष्ट व्यवहार इस प्रकार है: वह कुछ समय के लिए अजनबी के चेहरे का अध्ययन करती है, फिर उसका चेहरा कड़ा हो जाता है और वह रोने लगती है।
अजनबी चला जाता है तो बच्चा चुप हो जाता है। शिशु अजनबी चिंता दिखा रहा है।
यह उसके माता-पिता के साथ उसके लगाव का प्रत्यक्ष परिणाम है। एक बार संलग्न हो जाने पर, शिशु किसी अपरिचित वयस्क को देखकर परेशान हो जाते हैं।
इस तरह की चिंता छह महीने के आसपास शुरू होती है और आठ से बारह महीनों के बीच अपने चरम पर पहुंच जाती है, धीरे-धीरे पंद्रह और अठारह महीनों के बीच गायब हो जाती है।

जुदाई की चिंता

शिशुओं को अजनबियों के बारे में पता चलने के कुछ समय बाद, वे उन लोगों से अलग होने के बारे में चिंता करना शुरू कर देते हैं जिनसे वे जुड़े हुए हैं।
हमने देखा कि लगभग १० या ११ महीने की उम्र के कई शिशु माता-पिता का एक कमरे से दूसरे कमरे में अनुसरण करने में काफी समय बिताते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे जरूरत पड़ने पर उपलब्ध हैं।
जब तक माता-पिता दृष्टि में हैं, तब तक शिशु अपरिचित परिस्थितियों में भी खेलेंगे और खोजबीन करेंगे।
लेकिन माता-पिता से अलग होने पर वे व्यथित हो जाते हैं, इस भय को अलगाव की चिंता कहा जाता है।
यह लगभग 12 से 18 महीने की उम्र में अपने चरम पर होता है और 20 से 24 महीने की उम्र के बीच गायब हो जाता है।

18) How can we say that the development of language is influenced by environmental
factors?

  • The role of environment in language acquisition becomes clear when we consider the following facts.
  • No child can learn language till she hears it being spoken.
  • Each child learns the language she hears and she speaks it the way she hears it.
  • Children living in institutions tend to show lower levels of language development.
  • When caregivers stimulate the child, her language development is fostered.

हम कैसे कह सकते हैं कि भाषा का विकास पर्यावरण से प्रभावित होता है कारक?

भाषा अर्जन में पर्यावरण की भूमिका तब स्पष्ट हो जाती है जब हम निम्नलिखित तथ्यों पर विचार करते हैं।
कोई भी बच्चा भाषा तब तक नहीं सीख सकता, जब तक कि वह बोली जाने वाली भाषा न सुन ले।
प्रत्येक बच्चा वह भाषा सीखता है जो वह सुनती है और वह जिस तरह से सुनती है उसी तरह बोलती है।
संस्थानों में रहने वाले बच्चे भाषा के विकास के निम्न स्तर दिखाते हैं।
जब देखभाल करने वाले बच्चे को प्रोत्साहित करते हैं, तो उसके भाषा विकास को बढ़ावा मिलता है।

19 . List four ways in which caregivers help the infant to understand and acquire
language.

i) The caregivers keep their language simple when talking to infants.
ii) They show and describe objects,
iii) They comment about what is going on around the child.
iv) They also play language games with the infant and encourage her to speak.

उन चार तरीकों की सूची बनाएं जिनसे देखभाल करने वाले शिशु को समझने और हासिल करने में मदद करते हैं भाषा: 

i) शिशुओं से बात करते समय देखभाल करने वाले अपनी भाषा सरल रखते हैं।
ii) वे वस्तुओं को दिखाते हैं और उनका वर्णन करते हैं,
iii) वे इस बारे में टिप्पणी करते हैं कि बच्चे के आसपास क्या हो रहा है।
iv) वे शिशु के साथ भाषा के खेल भी खेलते हैं और उसे बोलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

20 . List the activities that you would plan. for infants in each of the following age groups.

i)      newborn baby

The neonate does not need toys and games. Cradling, Netting, cuddling, swaying and gently rocking and bouncing her, gives her pleasure and comfort. The caregiver needs to give her prompt attention.

ii)    1-3 months old infant

—  tracking sound source

—  tracking a moving object

—  massaging the infant

—. singing and talking to the infant

iii)   3-6 months old infant

—  keeping an object at a distance so that the infant reaches for it

— letting the baby lie on the stomach for 5-10 minutes

—  activities that motivate her to turn on her side

— respond to and imitate the sounds the infant makes

—  giving her a variety of toys and objects to play with and explore

उन गतिविधियों की सूची बनाएं जिनकी आप योजना बनाएंगे। निम्नलिखित आयु समूहों में से प्रत्येक में शिशुओं के लिए।

i)      नवजात शिशु

नवजात को खिलौने और खेल की जरूरत नहीं है। पालना, जाल बिछाना, गले लगाना, लहराना और धीरे से उसे हिलाना और उछालना, उसे आनंद और आराम देता है। देखभाल करने वाले को उसे तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।

ii)    1-3 महीने का शिशु

—  ध्वनि स्रोत को ट्रैक करना

—  किसी चलती हुई वस्तु को ट्रैक करना

—  शिशु की मालिश करना

-. गायन और शिशु से बात करना

iii)   3-6 महीने का शिशु

—  किसी वस्तु को इतनी दूरी पर रखना कि शिशु उसके पास पहुंच जाए

— 5-10 मिनट के लिए बच्चे को पेट के बल लेटने दें

—  गतिविधियां जो उसे अपनी तरफ मुड़ने के लिए प्रेरित करती हैं

— शिशु द्वारा की जाने वाली ध्वनियों पर प्रतिक्रिया दें और उनका अनुकरण करें

—  उसे खेलने और तलाशने के लिए तरह-तरह के खिलौने और वस्तुएँ देना

21. In what ways can caregivers promote cognitive development?

  • The caregiver can help in cognitive development by providing the infant stimulating experiences in keeping with the infant’s level of understanding.
  • The caregiver must provide her with a variety of play materials.
  • Playing and talking to the infant and directing her attention towards people and things will
    help her to learn .

21. देखभाल करने वाले किन तरीकों से संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा दे सकते हैं?

देखभाल करने वाला शिशु के समझ के स्तर को ध्यान में रखते हुए शिशु को उत्तेजक अनुभव प्रदान करके संज्ञानात्मक विकास में मदद कर सकता है।

देखभाल करने वाले को उसे विभिन्न प्रकार की खेल सामग्री प्रदान करनी चाहिए।
शिशु के साथ खेलना और बात करना और उसका ध्यान लोगों और चीजों की ओर लगाना
उसे सीखने में मदद करें।

22. Explain the following . 

a)Moro reflex

On hearing a loud sound or receiving a physical shock, the infant throws out her arms and arches her back.

b) Grasping reflex

When pressure is applied on the infant’s palm, she curls her fingers and grasps the object .

c)Topic neck reflex

If the infant’s head is turned to one side, the arm and leg on that side extend while those on the other side bend.

d) Rooting reflex

When touched on the cheek, the child turns towards the touch and seeks something to suck on .

22. निम्नलिखित की व्याख्या करें।

ए) मोरो रिफ्लेक्स

जोर से आवाज सुनने या शारीरिक झटका लगने पर, शिशु अपनी बाहों को बाहर निकालता है और अपनी पीठ को झुकाता है।

b) लोभी प्रतिवर्त

जब शिशु की हथेली पर दबाव डाला जाता है, तो वह अपनी उंगलियों को घुमाती है और वस्तु को पकड़ लेती है।

सी) टॉपिक नेक रिफ्लेक्स

यदि शिशु का सिर एक तरफ कर दिया जाता है, तो उस तरफ के हाथ और पैर आगे बढ़ जाते हैं जबकि दूसरी तरफ झुक जाते हैं।

d) रूटिंग रिफ्लेक्स

जब गाल पर स्पर्श किया जाता है, तो बच्चा स्पर्श की ओर मुड़ जाता है और चूसने के लिए कुछ चाहता है।

 23 . What are the effects of inadequate diet during pregnancy on the health of the mother and the baby?

के स्वास्थ्य पर गर्भावस्था के दौरान अपर्याप्त आहार के प्रभाव क्या हैं माँ और बच्चा?

There are a range of adverse health effects associated with maternal under-nutrition. It can affect both the pregnant woman and developing baby in the short and long-term.

मातृत्व पोषण के साथ जुड़े प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों की एक श्रृंखला है। यह गर्भवती महिला और विकासशील बच्चे दोनों को छोटी और लंबी अवधि में प्रभावित कर सकता है।

Under-nutrition can be classified as either:                 

  • malnutrition; or
  • micronutrient deficiency.

Malnutrition occurs when an individual consistently consumes less energy (measured in calories and obtained from proteins and carbohydrates) than they expend. Malnutrition results in the individual being underweight and experiencing greater ill-health.

Micronutrient deficiency is a condition which occurs when an individual consumes enough food overall, but does not consume enough of the specific micronutrients they need to maintain the growth and function of specific body parts and systems. For example, calcium deficiency can affect the growth of bones and teeth.

अंडर-पोषण को या तो वर्गीकृत किया जा सकता है:

कुपोषण; या
सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी।

कुपोषण तब होता है जब एक व्यक्ति लगातार कम ऊर्जा खर्च करता है (कैलोरी में मापा जाता है और प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट से प्राप्त होता है) जितना वे खर्च करते हैं। कुपोषण के कारण व्यक्ति का वजन कम होता है और वह अधिक अस्वस्थता का अनुभव करता है।

माइक्रोन्यूट्रिएंट की कमी एक ऐसी स्थिति है जो तब होती है जब कोई व्यक्ति समग्र रूप से पर्याप्त भोजन लेता है, लेकिन शरीर के विशिष्ट भागों और प्रणालियों के विकास और कार्य को बनाए रखने के लिए पर्याप्त सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपभोग नहीं करता है। उदाहरण के लिए, कैल्शियम की कमी हड्डियों और दांतों के विकास को प्रभावित कर सकती है।

24 ) In what way does excessive smoking and consumption of alcohol by the
pregnant woman harm the baby?

Drinking too much can lead to:

  • premature birth
  • low birth weight
  • impacting on the physical and mental development of the child, a condition known as Foetal Alcohol Syndrome (FAS)

Women are therefore strongly advised to not drink alcohol at all at any stage during pregnancy because there may be an increased risk of miscarriage. The current advice is to avoid alcohol completely.

Foetal Alcohol Syndrome

Children born with FAS can have growth problems, facial defects and lifelong learning and behaviour problems.

Foetal Alcohol Spectrum Disorder (FASD) describes the range of less obvious effects that can be mild to severe and relate to one or more of the following symptoms of FASD;

  • low birth size
  • problems eating and sleeping
  • problems seeing and hearing
  • difficulty following directions and learning to do simple things
  • trouble paying attention and learning in school
  • trouble getting along with others and controlling their behaviour

Smoking

Smoking while pregnant not only damages your own health, but can also harm your baby.

It has been linked to a variety of health problems, including:

  • premature birth
  • low birth weight
  • miscarriage and cot death
  • breathing problems and wheezing in the first six months of life

Every year, more than 17,000 children under the age of five are admitted to hospital because of the effects of secondhand smoke. If you stop smoking, you will reduce the risk of harm to yourself and your baby.

२४) किस तरह से अत्यधिक धूम्रपान और शराब का सेवन करता है गर्भवती महिला बच्चे को नुकसान?

बहुत अधिक शराब पीने से हो सकता है:

समय से पहले जन्म
जन्म के वक़्त, शिशु के वजन मे कमी होना
बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास पर प्रभाव डालने वाली स्थिति, जिसे भ्रूण शराब सिंड्रोम (एफएएस) के रूप में जाना जाता है।

इसलिए महिलाओं को दृढ़ता से सलाह दी जाती है कि गर्भावस्था के दौरान किसी भी स्तर पर शराब का सेवन न करें क्योंकि इससे गर्भपात का खतरा बढ़ सकता है। वर्तमान सलाह शराब से पूरी तरह से बचने की है।

भ्रूण शराब सिंड्रोम

एफएएस के साथ पैदा हुए बच्चों में विकास की समस्याएं, चेहरे की खराबी और आजीवन सीखने और व्यवहार संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

भ्रूण अल्कोहल स्पेक्ट्रम विकार (एफएएसडी) कम स्पष्ट प्रभावों की श्रेणी का वर्णन करता है जो हल्के से गंभीर हो सकते हैं और एफएएसडी के निम्नलिखित लक्षणों में से एक या अधिक से संबंधित हो सकते हैं;

कम जन्म का आकार
खाने और सोने में समस्या
देखने और सुनने में समस्या
निर्देशों का पालन करने में कठिनाई और साधारण चीजें करना सीखना
स्कूल में ध्यान देने और सीखने में परेशानी
दूसरों के साथ मिलने और उनके व्यवहार को नियंत्रित करने में परेशानी
धूम्रपान

गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान न केवल आपके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि आपके बच्चे को भी नुकसान पहुंचा सकता है।

इसे कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से जोड़ा गया है, जिनमें शामिल हैं:

समय से पहले जन्म
जन्म के वक़्त, शिशु के वजन मे कमी होना
गर्भपात और खाट मृत्यु
जीवन के पहले छह महीनों में सांस लेने में समस्या और घरघराहट

हर साल पांच साल से कम उम्र के 17,000 से अधिक बच्चों को सेकेंड हैंड धुएं के प्रभाव के कारण अस्पताल में भर्ती कराया जाता है। यदि आप धूम्रपान बंद कर देते हैं, तो आप अपने और अपने बच्चे के लिए नुकसान के जोखिम को कम कर देंगे।

24) କେଉଁ ଉପାୟରେ ଅତ୍ୟଧିକ ଧୂମପାନ ଏବଂ ମଦ୍ୟପାନ ଦ୍ୱାରା | ଗର୍ଭବତୀ ମହିଳା ଶିଶୁକୁ କ୍ଷତି କରନ୍ତି?

ଅତ୍ୟଧିକ ମଦ୍ୟପାନ କରିପାରେ:

ଅକାଳ ଜନ୍ମ
କମ୍ ଜନ୍ମ ଓଜନ |
ଶିଶୁର ଶାରୀରିକ ଏବଂ ମାନସିକ ବିକାଶ ଉପରେ ପ୍ରଭାବ ପକାଇଥାଏ, ଏକ ଅବସ୍ଥା ଫେଟାଲ୍ ଆଲକୋହଲ୍ ସିଣ୍ଡ୍ରୋମ୍ (FAS) ଭାବରେ ଜଣାଶୁଣା |

ମହିଳାମାନଙ୍କୁ ଗର୍ଭାବସ୍ଥାରେ କ stage ଣସି ପର୍ଯ୍ୟାୟରେ ଆଦ alcohol ମଦ୍ୟପାନ ନକରିବାକୁ ଦୃ strongly ଭାବରେ ପରାମର୍ଶ ଦିଆଯାଇଛି କାରଣ ଗର୍ଭଧାରଣ ହେବାର ଆଶଙ୍କା ବ .ିପାରେ | ବର୍ତ୍ତମାନର ପରାମର୍ଶ ହେଉଛି ମଦ୍ୟପାନକୁ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣରୂପେ ଏଡାଇବା |

ଗର୍ଭସ୍ଥ ମଦ୍ୟପାନ ସିଣ୍ଡ୍ରୋମ |

FAS ସହିତ ଜନ୍ମ ହୋଇଥିବା ପିଲାମାନଙ୍କର ଅଭିବୃଦ୍ଧି ସମସ୍ୟା, ମୁଖର ତ୍ରୁଟି ଏବଂ ଆଜୀବନ ଶିକ୍ଷା ଏବଂ ଆଚରଣ ସମସ୍ୟା ହୋଇପାରେ |

ଗର୍ଭସ୍ଥ ଆଲକୋହଲ୍ ସ୍ପେକ୍ଟ୍ରମ୍ ଡିସଅର୍ଡର (FASD) କମ୍ ସ୍ପଷ୍ଟ ପ୍ରଭାବର ପରିସର ବର୍ଣ୍ଣନା କରେ ଯାହା ସାମାନ୍ୟରୁ ଗମ୍ଭୀର ହୋଇପାରେ ଏବଂ FASD ର ନିମ୍ନଲିଖିତ ଲକ୍ଷଣଗୁଡ଼ିକ ସହିତ ଜଡିତ ହୋଇପାରେ |

କମ୍ ଜନ୍ମ ଆକାର |
ଖାଇବା ଏବଂ ଶୋଇବାରେ ସମସ୍ୟା |
ଦେଖିବା ଏବଂ ଶୁଣିବାରେ ସମସ୍ୟା |
ନିର୍ଦ୍ଦେଶଗୁଡିକ ଅନୁସରଣ କରିବା ଏବଂ ସରଳ କାର୍ଯ୍ୟ କରିବାକୁ ଶିଖିବାରେ ଅସୁବିଧା |
ଧ୍ୟାନ ଦେବା ଏବଂ ବିଦ୍ୟାଳୟରେ ଶିଖିବାରେ ଅସୁବିଧା |
ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ସହିତ ମିଶିବା ଏବଂ ସେମାନଙ୍କ ଆଚରଣକୁ ନିୟନ୍ତ୍ରଣ କରିବାରେ ଅସୁବିଧା |
ଧୂମପାନ

ଗର୍ଭବତୀ ଥିବା ସମୟରେ ଧୂମପାନ କରିବା କେବଳ ଆପଣଙ୍କ ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟକୁ କ୍ଷତି ପହଞ୍ଚାଏ ନାହିଁ, ବରଂ ଆପଣଙ୍କ ଶିଶୁକୁ ମଧ୍ୟ କ୍ଷତି ପହଞ୍ଚାଇପାରେ |

ଏହା ବିଭିନ୍ନ ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ ସମସ୍ୟା ସହିତ ସଂଯୁକ୍ତ ହୋଇଛି, ଅନ୍ତର୍ଭୁକ୍ତ କରି:

ଅକାଳ ଜନ୍ମ
କମ୍ ଜନ୍ମ ଓଜନ |
ଗର୍ଭପାତ ଏବଂ ଖଟ ମୃତ୍ୟୁ |
ଜୀବନର ପ୍ରଥମ ଛଅ ମାସରେ ଶ୍ hing ାସକ୍ରିୟା ସମସ୍ୟା ଏବଂ ଚକ୍କର |

ଦ୍ second ିତୀୟ ଧୂଆଁର ପ୍ରଭାବ ହେତୁ ପ୍ରତିବର୍ଷ ପାଞ୍ଚ ବର୍ଷରୁ କମ୍ 17,000 ରୁ ଅଧିକ ପିଲା ଡାକ୍ତରଖାନାରେ ଭର୍ତ୍ତି ହୁଅନ୍ତି। ଯଦି ଆପଣ ଧୂମପାନ ବନ୍ଦ କରନ୍ତି, ତେବେ ଆପଣ ନିଜ ତଥା ଆପଣଙ୍କ ଶିଶୁର କ୍ଷତି ହେବାର ଆଶଙ୍କା ହ୍ରାସ କରିବେ |

25. Explain in details the important of providing preschool education to children in the age of group 3 to 6 years .  15 mark

providing pre-school education to children in the age of 3 to 6 year is important as children gain a variety of experiences in preschool .

they develop social and emotional skill by interacting with other children by performing various physical activity.

their physical development is comparatively better and fast than those who do not perform physical activity in the case of where pre-school education is not provided to the children.

children who attend pre-school they develop their

  • better pre-reading skill
  • better vocabularies
  • strong basic maths

importance of preschool education

  • providing provides a foundation for learning
  • provides opportunity to be in the structured
  • learn ABC and 123 (fundamental blocks) in Play way method
  • help in solving their various questions
  • help child to develop social and emotional skill

providing provides a foundation for learning

pre-school teachers teachers offers a wide variety of games and activities that will help them to acquire necessary academic as well as social skills which are important for learning

provides opportunity to be in the structured setting

pre-school provide opportunity to the study student/children to be in structure setting with teachers and other children where there they learn to share follow instruction , asking question by raising hand and waiting for their turn.

learn ABC and 123 (fundamental blocks) in Play way method

children in preschool learning ABC 123 and other basic concept in Play way method that their own place without any pressure for example to help kids learn free math skills teacher will ask them to count food items during snack time

help in solving their various questions

as kids are curious by nature and they have multiple question like how do bird fly ? what doestree do ?  pre-school teachers help them to solve this question in an efficient manner .

help child to develop social and emotional skill

in pre-school kids learn to interact with other people they learn how to compromise and how to be respectful to others thus it develop their social and emotional skill .

conclusion

pre-school education is very important for the holistic development of the child and will help them in further life  for tackling various issues .

25. समूह 3 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों को पूर्वस्कूली शिक्षा प्रदान करने के महत्व को विस्तार से समझाएं। १५ अंक

3 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों को प्री-स्कूल शिक्षा प्रदान करना महत्वपूर्ण है क्योंकि बच्चे प्रीस्कूल में विभिन्न प्रकार के अनुभव प्राप्त करते हैं।

वे विभिन्न शारीरिक गतिविधि करके अन्य बच्चों के साथ बातचीत करके सामाजिक और भावनात्मक कौशल विकसित करते हैं।

जहां बच्चों को प्री-स्कूल शिक्षा प्रदान नहीं की जाती है, वहां शारीरिक गतिविधि नहीं करने वालों की तुलना में उनका शारीरिक विकास तुलनात्मक रूप से बेहतर और तेज होता है।

जो बच्चे प्री-स्कूल जाते हैं वे अपना विकास करते हैं

  • बेहतर पूर्व-पठन कौशल
  • बेहतर शब्दसंग्रह
  • मजबूत बुनियादी गणित

पूर्वस्कूली शिक्षा का महत्व

  • प्रदान करना सीखने के लिए एक आधार प्रदान करता है
  • संरचित में रहने का अवसर प्रदान करता है
  • प्ले वे विधि में एबीसी और 123 (मौलिक ब्लॉक) सीखें
  • उनके विभिन्न प्रश्नों को हल करने में मदद करें
  • बच्चे को सामाजिक और भावनात्मक कौशल विकसित करने में मदद करें

प्रदान करना सीखने के लिए एक आधार प्रदान करता है

प्री-स्कूल शिक्षक शिक्षक विभिन्न प्रकार के खेल और गतिविधियाँ प्रदान करते हैं जो उन्हें आवश्यक शैक्षणिक और साथ ही सामाजिक कौशल हासिल करने में मदद करेंगे जो सीखने के लिए महत्वपूर्ण हैं

संरचित सेटिंग में रहने का अवसर प्रदान करता है

प्री-स्कूल अध्ययन छात्र/बच्चों को शिक्षकों और अन्य बच्चों के साथ संरचना सेटिंग में रहने का अवसर प्रदान करता है जहां वे निर्देश का पालन करना सीखते हैं, हाथ उठाकर सवाल पूछते हैं और अपनी बारी का इंतजार करते हैं।

प्ले वे विधि में एबीसी और 123 (मौलिक ब्लॉक) सीखें

पूर्वस्कूली सीखने वाले बच्चे एबीसी 123 और प्ले वे विधि में अन्य बुनियादी अवधारणा है कि बिना किसी दबाव के उनका अपना स्थान उदाहरण के लिए बच्चों को मुफ्त गणित कौशल सीखने में मदद करने के लिए शिक्षक उन्हें नाश्ते के समय खाद्य पदार्थों की गिनती करने के लिए कहेंगे

उनके विभिन्न प्रश्नों को हल करने में मदद करें

चूंकि बच्चे स्वभाव से जिज्ञासु होते हैं और उनके मन में कई सवाल होते हैं कि पक्षी कैसे उड़ते हैं? क्या करता है प्री-स्कूल शिक्षक उन्हें इस प्रश्न को एक कुशल तरीके से हल करने में मदद करते हैं।

बच्चे को सामाजिक और भावनात्मक कौशल विकसित करने में मदद करें

प्री-स्कूल में बच्चे अन्य लोगों के साथ बातचीत करना सीखते हैं, वे सीखते हैं कि कैसे समझौता करना है और दूसरों का सम्मान कैसे करना है, इस प्रकार यह उनके सामाजिक और भावनात्मक कौशल को विकसित करता है।

निष्कर्ष

प्री-स्कूल शिक्षा बच्चे के समग्र विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और विभिन्न मुद्दों से निपटने के लिए उन्हें आगे के जीवन में मदद करेगी।

25. ଗ୍ରୁପ୍ 3 ରୁ 6 ବର୍ଷ ବୟସର ପିଲାମାନଙ୍କୁ ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟ ଶିକ୍ଷା ପ୍ରଦାନର ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ବିଷୟରେ ବିସ୍ତୃତ ଭାବରେ ବ୍ୟାଖ୍ୟା କର | 15 ମାର୍କ

3 ରୁ 6 ବର୍ଷ ବୟସର ପିଲାମାନଙ୍କୁ ପ୍ରାକ୍ ବିଦ୍ୟାଳୟ ଶିକ୍ଷା ପ୍ରଦାନ ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ କାରଣ ପିଲାମାନେ ପ୍ରାକ୍ ବିଦ୍ୟାଳୟରେ ବିଭିନ୍ନ ଅଭିଜ୍ଞତା ହାସଲ କରନ୍ତି |

ସେମାନେ ବିଭିନ୍ନ ଶାରୀରିକ କାର୍ଯ୍ୟକଳାପ କରି ଅନ୍ୟ ପିଲାମାନଙ୍କ ସହିତ ଯୋଗାଯୋଗ କରି ସାମାଜିକ ଏବଂ ଭାବପ୍ରବଣତା ବିକାଶ କରନ୍ତି |

ସେମାନଙ୍କର ଶାରୀରିକ ବିକାଶ ତୁଳନାତ୍ମକ ଭାବରେ ଉନ୍ନତ ଏବଂ ଦ୍ରୁତ ଅଟେ ଯେଉଁମାନେ ଶାରୀରିକ କାର୍ଯ୍ୟକଳାପ କରନ୍ତି ନାହିଁ ଯେଉଁଠାରେ ପିଲାମାନଙ୍କୁ ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟ ଶିକ୍ଷା ପ୍ରଦାନ କରାଯାଏ ନାହିଁ |

ପ୍ରି-ସ୍କୁଲରେ ପ children ୁଥିବା ପିଲାମାନେ ସେମାନଙ୍କର ବିକାଶ କରନ୍ତି |

ଉତ୍ତମ ପୂର୍ବ-ପ reading ଼ିବା ଦକ୍ଷତା |
ଉତ୍ତମ ଶବ୍ଦଗୁଡ଼ିକ
ଶକ୍ତିଶାଳୀ ମ basic ଳିକ ଗଣିତ |

ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ଶିକ୍ଷାର ଗୁରୁତ୍ୱ |

ପ୍ରଦାନ ଶିଖିବା ପାଇଁ ଏକ ଭିତ୍ତି ପ୍ରଦାନ କରେ |
ସଂରଚନାରେ ରହିବାକୁ ସୁଯୋଗ ପ୍ରଦାନ କରେ |
ପ୍ଲେ ୱେ ପଦ୍ଧତିରେ ABC ଏବଂ 123 (ମ fundamental ଳିକ ବ୍ଲକଗୁଡିକ) ଶିଖ |
ସେମାନଙ୍କର ବିଭିନ୍ନ ପ୍ରଶ୍ନର ସମାଧାନରେ ସାହାଯ୍ୟ କରନ୍ତୁ |
ପିଲାଙ୍କୁ ସାମାଜିକ ଏବଂ ଭାବପ୍ରବଣ ଦକ୍ଷତା ବିକାଶରେ ସାହାଯ୍ୟ କରନ୍ତୁ |

ପ୍ରଦାନ ଶିଖିବା ପାଇଁ ଏକ ଭିତ୍ତି ପ୍ରଦାନ କରେ |

ପ୍ରାକ୍ ବିଦ୍ୟାଳୟର ଶିକ୍ଷକ ଶିକ୍ଷକମାନେ ବିଭିନ୍ନ ପ୍ରକାରର ଖେଳ ଏବଂ କାର୍ଯ୍ୟକଳାପ ପ୍ରଦାନ କରନ୍ତି ଯାହା ସେମାନଙ୍କୁ ଆବଶ୍ୟକ ଏକାଡେମିକ୍ ତଥା ସାମାଜିକ କ skills ଶଳ ହାସଲ କରିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରିବ ଯାହା ଶିକ୍ଷା ପାଇଁ ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ |

ସଂରଚନା ସେଟିଂରେ ରହିବାକୁ ସୁଯୋଗ ପ୍ରଦାନ କରେ |

ପ୍ରି-ସ୍କୁଲ୍ ଅଧ୍ୟୟନ ଛାତ୍ର / ପିଲାମାନଙ୍କୁ ଶିକ୍ଷକ ଏବଂ ଅନ୍ୟ ପିଲାମାନଙ୍କ ସହିତ ସଂରଚନା ସେଟିଂରେ ରହିବାକୁ ସୁଯୋଗ ପ୍ରଦାନ କରେ ଯେଉଁଠାରେ ସେମାନେ ଅନୁସରଣ ନିର୍ଦ୍ଦେଶନା ବାଣ୍ଟିବାକୁ ଶିଖନ୍ତି, ହାତ ବ by ାଇ ପ୍ରଶ୍ନ ପଚାରନ୍ତି ଏବଂ ସେମାନଙ୍କ ପର୍ଯ୍ୟାୟକୁ ଅପେକ୍ଷା କରନ୍ତି |

ପ୍ଲେ ୱେ ପଦ୍ଧତିରେ ABC ଏବଂ 123 (ମ fundamental ଳିକ ବ୍ଲକଗୁଡିକ) ଶିଖ |

ପ୍ରିସ୍କୁଲ୍ ଶିକ୍ଷା କରୁଥିବା ପିଲାମାନେ ABC 123 ଏବଂ ପ୍ଲେ ମ way ଳିକ ପଦ୍ଧତିରେ ଅନ୍ୟାନ୍ୟ ମ basic ଳିକ ଧାରଣା ଯାହାକି କ free ଣସି ଚାପ ବିନା ସେମାନଙ୍କର ନିଜ ସ୍ଥାନ ଉଦାହରଣ ସ୍ୱରୂପ ପିଲାମାନଙ୍କୁ ମାଗଣା ଗଣିତ କ skills ଶଳ ଶିଖିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରିବାକୁ ଶିକ୍ଷକ ସେମାନଙ୍କୁ ସ୍ନାକ୍ସ ସମୟରେ ଖାଦ୍ୟ ସାମଗ୍ରୀ ଗଣିବାକୁ କହିବେ

ସେମାନଙ୍କର ବିଭିନ୍ନ ପ୍ରଶ୍ନର ସମାଧାନରେ ସାହାଯ୍ୟ କରନ୍ତୁ |

ଯେହେତୁ ପିଲାମାନେ ପ୍ରକୃତି ଦ୍ୱାରା ଆଗ୍ରହୀ ଏବଂ ସେମାନଙ୍କର ଏକାଧିକ ପ୍ରଶ୍ନ ଅଛି ଯେପରି ପକ୍ଷୀ କିପରି ଉଡ଼ନ୍ତି? କଣ କରିବେ? ପ୍ରାକ୍ ବିଦ୍ୟାଳୟ ଶିକ୍ଷକମାନେ ସେମାନଙ୍କୁ ଏହି ପ୍ରଶ୍ନର ଦକ୍ଷତାର ସହିତ ସମାଧାନ କରିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରନ୍ତି |

ପିଲାଙ୍କୁ ସାମାଜିକ ଏବଂ ଭାବପ୍ରବଣ ଦକ୍ଷତା ବିକାଶରେ ସାହାଯ୍ୟ କରନ୍ତୁ |

ପ୍ରି-ସ୍କୁଲ୍ ପିଲାମାନେ ଅନ୍ୟ ଲୋକଙ୍କ ସହିତ ଯୋଗାଯୋଗ କରିବାକୁ ଶିଖନ୍ତି ସେମାନେ କିପରି ଆପୋଷ ବୁ and ାମଣା କରନ୍ତି ଏବଂ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ପ୍ରତି କିପରି ସମ୍ମାନ ପ୍ରଦର୍ଶନ କରିବେ ତାହା ଶିଖନ୍ତି ତେଣୁ ଏହା ସେମାନଙ୍କର ସାମାଜିକ ଏବଂ ଭାବପ୍ରବଣତା ବିକାଶ କରେ |

ଉପସଂହାର

ପ୍ରାକ୍ ବିଦ୍ୟାଳୟ ଶିକ୍ଷା ଶିଶୁର ସାମଗ୍ରିକ ବିକାଶ ପାଇଁ ଅତ୍ୟନ୍ତ ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ଏବଂ ବିଭିନ୍ନ ସମସ୍ୟାର ମୁକାବିଲା ପାଇଁ ସେମାନଙ୍କୁ ପରବର୍ତ୍ତୀ ଜୀବନରେ ସାହାଯ୍ୟ କରିବ |

26. Describe five behaviour of a 1 year old child which give evidence of the child thinking abilities . discuss how can you can promote cognitive development of children during the first two years of life ?

Behaviour of 1 year old child that gives evidence of child’s thinking abilities

  • Imitation of adults
  • remember games
  • responding on his name
  • recognizing family members
  • follow the instruction of others

imitation of adults

A child also do the same thing which he sees doing others . Achild copy /imitates them

for example if someone dancing he also starts dancing

responding on his name

A child respond  on his name whenever somebody call his name,  he starts looking here and there,  which means he recognizes his name.

for example if child name is  “Jasmine ” and you will say Jasmine .  the child will start looking here and there and  search who is calling.

Recognise family members

a child recognise familiar faces which means he remember his family members and develop a sense of attachment to them.

for example a child cries  in the hand of any stranger but does not cry in the hand of his mother

remember games ( basic rules of kids play)

a child remember games like hide and seek , one for you one for me .

for example in hide and seek child will search for you in every corner on while hiding himself  behind any large object

follow the instruction of others

A is child follow the instruction given to him by others which gives evidence of his thinking abilities

for example if you tell a child to go to the Papa (father). he will go to his father

Technique to promote cognitive development of Children by Caregiver

  • play with your child
  • let him explore the things
  • reading for your child from picture books
  • provide opportunity to think
  • provide puzzle games

play with your child

a child learna lot while  playing . learning the rules of game and understand how to respond will help in the cognitive development of the child

let him explore the thing

leave the child freely and let him explore the things himself (as suggested by Jean Piaget)

read from picture books

Caregivers can read from picture books to the child for cognitive development as child will remember and  reassemble the thing seen in the picture to real life object.

provide opportunity to thing to think

as a caregiver should provide opportunity through various situation to thing by child himself . the more child will try to use his mind, the more his cognitive development will be .

provided puzzle games

give your child puzzle games like zigsow puzzle, where the child will do or try multiple way to solve the puzzle .

conclusion

A child learns from his own experience. she/he should be encouraged to  actively participate and explore the thing for cognitive development ( based on theory of cognitive development by Jean Piaget).

26. एक 1 वर्ष के बच्चे के पाँच व्यवहारों का वर्णन कीजिए जो बच्चे की सोचने की क्षमता का प्रमाण देते हैं। चर्चा करें कि आप जीवन के पहले दो वर्षों के दौरान बच्चों के संज्ञानात्मक विकास को कैसे बढ़ावा दे सकते हैं?

1 साल के बच्चे का व्यवहार जो देता है बच्चे की सोचने की क्षमता का प्रमाण

  • वयस्कों की नकल
  • खेल याद रखें
  • उनके नाम पर प्रतिक्रिया
  • परिवार के सदस्यों को पहचानना
  • दूसरों के निर्देश का पालन करें

वयस्कों की नकल

बच्चा भी वही करता है जो वह दूसरों को करते देखता है। बच्चे की नकल / उनकी नकल करता है

उदाहरण के लिए अगर कोई नाचता है तो वह भी नाचने लगता है

उनके नाम पर प्रतिक्रिया

एक बच्चा उसके नाम पर प्रतिक्रिया करता है जब भी कोई उसका नाम पुकारता है, वह इधर-उधर देखने लगता है, जिसका अर्थ है कि वह अपना नाम पहचानता है।

उदाहरण के लिए यदि बच्चे का नाम “जैस्मीन” है और आप जैस्मीन कहेंगे। बच्चा इधर-उधर देखना शुरू कर देगा और खोजेगा कि कौन बुला रहा है।

परिवार के सदस्यों को पहचानें

एक बच्चा परिचित चेहरों को पहचानता है जिसका अर्थ है कि वह अपने परिवार के सदस्यों को याद करता है और उनके प्रति लगाव की भावना विकसित करता है।

उदाहरण के लिए एक बच्चा किसी अजनबी के हाथ में रोता है लेकिन अपनी माँ के हाथ में नहीं रोता

खेल याद रखें (बच्चों के खेलने के बुनियादी नियम)

एक बच्चा लुका-छिपी जैसे खेल याद रखता है, एक तुम्हारे लिए एक मेरे लिए।

उदाहरण के लिए लुका-छिपी में बच्चा किसी भी बड़ी वस्तु के पीछे खुद को छुपाते हुए हर कोने में आपको ढूंढेगा

दूसरों के निर्देश का पालन करें

ए बच्चा है जो दूसरों द्वारा उसे दिए गए निर्देशों का पालन करता है जो उसकी सोचने की क्षमता का प्रमाण देता है

उदाहरण के लिए यदि आप किसी बच्चे को पापा (पिता) के पास जाने के लिए कहते हैं। वह अपने पिता के पास जाएगा

देखभाल करने वाले द्वारा बच्चों के संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा देने की तकनीक

  • अपने बच्चे के साथ खेलो
  • उसे चीजों का पता लगाने दें
  • चित्र पुस्तकों से अपने बच्चे के लिए पढ़ना
  • सोचने का अवसर प्रदान करें
  • पहेली खेल प्रदान करें

अपने बच्चे के साथ खेलो

एक बच्चा खेलते समय बहुत कुछ सीखता है। खेल के नियमों को सीखने और प्रतिक्रिया करने के तरीके को समझने से बच्चे के संज्ञानात्मक विकास में मदद मिलेगी

उसे चीज़ का पता लगाने दें

बच्चे को स्वतंत्र रूप से छोड़ दें और उसे स्वयं चीजों का पता लगाने दें (जैसा कि जीन पियागेट द्वारा सुझाया गया है)

चित्र पुस्तकों से पढ़ें

देखभाल करने वाले बच्चे को संज्ञानात्मक विकास के लिए चित्र पुस्तकों से पढ़ सकते हैं क्योंकि बच्चा याद रखेगा और चित्र में दिखाई देने वाली चीज़ को वास्तविक जीवन की वस्तु में फिर से इकट्ठा करेगा।

सोचने का अवसर प्रदान करें 

एक देखभालकर्ता के रूप में बच्चे को स्वयं विभिन्न परिस्थितियों के माध्यम से वस्तु को अवसर प्रदान करना चाहिए। बच्चा जितना अधिक अपने दिमाग का उपयोग करने की कोशिश करेगा, उसका संज्ञानात्मक विकास उतना ही अधिक होगा।

पहेली खेल प्रदान किया

अपने बच्चे को पहेली जैसे पहेली खेल दें, जहाँ बच्चा पहेली को हल करने के लिए कई तरह से करेगा या कोशिश करेगा।

निष्कर्ष

बच्चा अपने अनुभव से सीखता है। उसे सक्रिय रूप से भाग लेने और संज्ञानात्मक विकास के लिए चीजों का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए (जीन पियागेट द्वारा संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत पर आधारित)।

26. 1 ବର୍ଷର ଶିଶୁର ପାଞ୍ଚଟି ଆଚରଣ ବର୍ଣ୍ଣନା କର ଯାହା ଶିଶୁର ଚିନ୍ତାଧାରାର ପ୍ରମାଣ ଦେଇଥାଏ | ଜୀବନର ପ୍ରଥମ ଦୁଇ ବର୍ଷ ମଧ୍ୟରେ ଆପଣ କିପରି ପିଲାମାନଙ୍କର ଜ୍ଞାନଗତ ବିକାଶକୁ ପ୍ରୋତ୍ସାହିତ କରିପାରିବେ ଆଲୋଚନା କରନ୍ତୁ?

1 ବର୍ଷର ଶିଶୁର ଆଚରଣ ଯାହା ଶିଶୁର ଚିନ୍ତାଧାରାର ପ୍ରମାଣ ଦେଇଥାଏ |

ବୟସ୍କମାନଙ୍କ ଅନୁକରଣ
ଖେଳଗୁଡିକ ମନେରଖ |
ତାଙ୍କ ନାମରେ ପ୍ରତିକ୍ରିୟା
ପରିବାର ସଦସ୍ୟଙ୍କୁ ଚିହ୍ନିବା |
ଅନ୍ୟମାନଙ୍କର ନିର୍ଦ୍ଦେଶ ଅନୁସରଣ କରନ୍ତୁ |

ବୟସ୍କମାନଙ୍କ ଅନୁକରଣ

ଏକ ଶିଶୁ ମଧ୍ୟ ସମାନ କାର୍ଯ୍ୟ କରେ ଯାହା ସେ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କୁ ଦେଖେ | ଆଚିଲ୍ଡ ସେମାନଙ୍କୁ ନକଲ / ଅନୁକରଣ କରନ୍ତି |

ଉଦାହରଣ ସ୍ୱରୂପ ଯଦି କେହି ନାଚନ୍ତି ସେ ମଧ୍ୟ ନାଚିବା ଆରମ୍ଭ କରନ୍ତି |

ତାଙ୍କ ନାମରେ ପ୍ରତିକ୍ରିୟା

ଜଣେ ଶିଶୁ ତାଙ୍କ ନାମ ଉପରେ ପ୍ରତିକ୍ରିୟା କରେ ଯେତେବେଳେ ବି କେହି ତାଙ୍କ ନାମ ଡାକନ୍ତି, ସେ ଏଠାକୁ ଦେଖିବା ଆରମ୍ଭ କରନ୍ତି, ଅର୍ଥାତ୍ ସେ ତାଙ୍କ ନାମକୁ ଚିହ୍ନନ୍ତି |

ଉଦାହରଣ ସ୍ୱରୂପ ଯଦି ଶିଶୁର ନାମ “ଜସ୍ମିନ୍” ଏବଂ ଆପଣ ଜସ୍ମିନ୍ କହିବେ | ପିଲାଟି ଏଠାକୁ ଦେଖିବା ଆରମ୍ଭ କରିବ ଏବଂ କିଏ କଲ୍ କରୁଛି ତାହା ଖୋଜିବ |

ପରିବାର ସଦସ୍ୟଙ୍କୁ ଚିହ୍ନନ୍ତୁ |

ଏକ ଶିଶୁ ପରିଚିତ ଚେହେରାକୁ ଚିହ୍ନିଥାଏ ଯାହାର ଅର୍ଥ ହେଉଛି ସେ ତାଙ୍କ ପରିବାର ସଦସ୍ୟଙ୍କୁ ମନେ ରଖନ୍ତି ଏବଂ ସେମାନଙ୍କ ପ୍ରତି ଏକ ସଂଲଗ୍ନ ଭାବନା ସୃଷ୍ଟି କରନ୍ତି |

ଉଦାହରଣ ସ୍ୱରୂପ ଏକ ଶିଶୁ କ stranger ଣସି ଅଜଣା ବ୍ୟକ୍ତିଙ୍କ ହାତରେ କାନ୍ଦନ୍ତି କିନ୍ତୁ ତାଙ୍କ ମାଆଙ୍କ ହାତରେ କାନ୍ଦନ୍ତି ନାହିଁ |

ଖେଳଗୁଡିକ ମନେରଖନ୍ତୁ (ପିଲାମାନଙ୍କର ମ basic ଳିକ ନିୟମ)

ଗୋଟିଏ ପିଲା ଲୁଚାଇବା ଏବଂ ଖୋଜିବା ଭଳି ଖେଳକୁ ମନେ ରଖେ, ତୁମ ପାଇଁ ଗୋଟିଏ ମୋ ପାଇଁ ଗୋଟିଏ |

ଉଦାହରଣ ସ୍ୱରୂପ ଲୁକ୍କାୟିତ ଏବଂ ଖୋଜୁଥିବା ପିଲାଟି ପ୍ରତ୍ୟେକ କୋଣରେ ତୁମକୁ ଖୋଜିବ ଯେତେବେଳେ କ any ଣସି ବଡ଼ ବସ୍ତୁ ପଛରେ ନିଜକୁ ଲୁଚାଇବ |

ଅନ୍ୟମାନଙ୍କର ନିର୍ଦ୍ଦେଶ ଅନୁସରଣ କରନ୍ତୁ |

A ହେଉଛି ଶିଶୁ ତାଙ୍କୁ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ଦ୍ୱାରା ଦିଆଯାଇଥିବା ନିର୍ଦ୍ଦେଶକୁ ଅନୁସରଣ କରେ ଯାହା ତାଙ୍କ ଚିନ୍ତାଧାରା ଦକ୍ଷତାର ପ୍ରମାଣ ଦେଇଥାଏ |

ଉଦାହରଣ ସ୍ୱରୂପ ଯଦି ତୁମେ ଏକ ପିଲାକୁ ପାପା (ପିତା) କୁ ଯିବାକୁ କୁହ | ସେ ତାଙ୍କ ପିତାଙ୍କ ନିକଟକୁ ଯିବେ

ଯତ୍ନକାରୀଙ୍କ ଦ୍ Children ାରା ପିଲାମାନଙ୍କର ଜ୍ଞାନଗତ ବିକାଶକୁ ପ୍ରୋତ୍ସାହିତ କରିବା ପାଇଁ କ ech ଶଳ |

ତୁମ ପିଲା ସହିତ ଖେଳ |
ତାଙ୍କୁ ଜିନିଷଗୁଡିକ ଅନୁସନ୍ଧାନ କରିବାକୁ ଦିଅ |
ଛବି ବହିରୁ ତୁମ ପିଲା ପାଇଁ ପ reading ଼ିବା |
ଚିନ୍ତା କରିବାର ସୁଯୋଗ ପ୍ରଦାନ କରନ୍ତୁ |
ପଜଲ୍ ଖେଳଗୁଡିକ ପ୍ରଦାନ କରନ୍ତୁ |

ତୁମ ପିଲା ସହିତ ଖେଳ |

ପିଲା ଖେଳିବାବେଳେ ବହୁତ କିଛି ଶିଖେ | ଖେଳର ନିୟମ ଶିଖିବା ଏବଂ କିପରି ପ୍ରତିକ୍ରିୟା କରାଯିବ ତାହା ବୁ understand ିବା ଶିଶୁର ଜ୍ଞାନଗତ ବିକାଶରେ ସାହାଯ୍ୟ କରିବ |

ତାଙ୍କୁ ସେହି ଜିନିଷ ଅନୁସନ୍ଧାନ କରିବାକୁ ଦିଅ |

ପିଲାଟିକୁ ମୁକ୍ତ ଭାବରେ ଛାଡି ଦିଅ ଏବଂ ତାଙ୍କୁ ନିଜେ ଜିନିଷଗୁଡିକ ଅନୁସନ୍ଧାନ କରିବାକୁ ଦିଅ (ଜାନ୍ ପିଆଗେଟ୍ଙ୍କ ପରାମର୍ଶ ଅନୁଯାୟୀ)

ଛବି ବହିରୁ ପ read ଼ନ୍ତୁ |

ଯତ୍ନଶୀଳ ବ୍ୟକ୍ତିମାନେ ଚିତ୍ର ପୁସ୍ତକରୁ ପିଲାଙ୍କୁ ଜ୍ଞାନଗତ ବିକାଶ ପାଇଁ ପ read ିପାରିବେ କାରଣ ପିଲାଟି ଚିତ୍ରରେ ଦେଖାଯାଇଥିବା ଜିନିଷକୁ ବାସ୍ତବ ଜୀବନ ବସ୍ତୁକୁ ମନେ ରଖିବ ଏବଂ ପୁନ ass ଏକତ୍ର କରିବ |

ଭାବିବାକୁ ଜିନିଷକୁ ସୁଯୋଗ ଦିଅ |

ଜଣେ ଯତ୍ନକାରୀ ଭାବରେ ବିଭିନ୍ନ ପରିସ୍ଥିତି ମାଧ୍ୟମରେ ନିଜେ ପିଲାଙ୍କ ଦ୍ୱାରା ସୁଯୋଗ ପ୍ରଦାନ କରିବା ଉଚିତ୍ | ଯେତେ ପିଲା ନିଜ ମନ ବ୍ୟବହାର କରିବାକୁ ଚେଷ୍ଟା କରିବ, ତା’ର ଜ୍ଞାନଗତ ବିକାଶ ସେତେ ଅଧିକ ହେବ |

ପଜଲ୍ ଖେଳଗୁଡିକ ପ୍ରଦାନ କରାଯାଇଛି |

ଜିଗ୍ସୋ ପଜଲ୍ ପରି ତୁମ ପିଲାଙ୍କୁ ପଜଲ୍ ଖେଳ ଦିଅ, ଯେଉଁଠାରେ ପିଲାଟି ପଜଲ୍ ସମାଧାନ ପାଇଁ ଏକାଧିକ ଉପାୟ କରିବ କିମ୍ବା ଚେଷ୍ଟା କରିବ |

ଉପସଂହାର

ଏକ ଶିଶୁ ନିଜ ଅନୁଭୂତିରୁ ଶିଖେ | ତାଙ୍କୁ ସକ୍ରିୟ ଭାବରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିବାକୁ ଏବଂ ଜ୍ଞାନଗତ ବିକାଶ ପାଇଁ ଜିନିଷକୁ ଅନୁସନ୍ଧାନ କରିବାକୁ ଉତ୍ସାହିତ କରାଯିବା ଉଚିତ୍ (ଜାନ୍ ପିଆଗେଟ୍ଙ୍କ ଜ୍ଞାନଗତ ବିକାଶର ସିଦ୍ଧାନ୍ତ ଉପରେ ଆଧାର କରି) |

27. Discuss the attitude and qualities which are necessary for working as a early childhood educator .

A good early childhood educator must possess a number of quality as working with small children and handling them . It  is not a easy task.

kids at preschool admire their teacher a lot thus a teacher should be following qualities

  • energetic
  • caring nature
  • good knowledge of pedagogy
  •  patience
  • innovative and creative
  • good sense of humour
  • passionate about teaching
  • flexible
  • good communicator and listener
  • knowledge of technology

energetic

preschool teachers should be energetic as kids are always energetic.  it becomes essential for the teacher to match to their energy level for maximum productivity.

caring nature

preschool teachers should have caring nature . she should care for the kids like a mother . small children required much more care  to learning a very small thing .

good knowledge of pedagogy

good knowledge of pedagogy is important for teachers as pedagogy help the teacher  is to decide how to teach  what to teach according to the age and mental level of student .

Patience

small kids ask number of question and tells very small issue in this case preschool teachers should have patience for answer snd care the child.

 innovative and creative

children at preschool are mainly tought through activity . preparation of activity required hai innovative idea to graps the attention of the children

good sense of humour

to maintain the happy atmosphere during teaching learning experiences a teacher should have a good sense of humour to break the boredom of class .

passionate about teaching

a teacher of preschool teacher should have passion to teach and bring the best out of children by giving them in new innovative activity.

 flexible

a preschool teacher should be flexible enough to care to the needs of the individual student as per the need and situation

good communicator and listener

a preschool teacher should be good communicator so that she can communicate her Idea clearly to the student, she  should be a good listener so that she listened to all the problem of children

knowledge of technology

a preschool teachers should have the skill to use technology efficiently in her teaching and learning experiences

conclusion

A preschool teachers should have number of skills to deal with little kids and she need to be innovative, careing ,energetic as well as should have good knowledge of pedagogy also which will help children in their holistic development.

27. प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षक के रूप में कार्य करने के लिए आवश्यक दृष्टिकोण और गुणों की चर्चा कीजिए।

एक अच्छे प्रारंभिक बचपन के शिक्षक में छोटे बच्चों के साथ काम करने और उन्हें संभालने जैसे कई गुण होने चाहिए। यह आसान काम नहीं है।

पूर्वस्कूली में बच्चे अपने शिक्षक की बहुत प्रशंसा करते हैं इसलिए एक शिक्षक को निम्नलिखित गुणों का होना चाहिए

  • शक्तिशाली
  • देखभाल करने वाला स्वभाव
  • शिक्षाशास्त्र का अच्छा ज्ञान knowledge
  • धीरज
  • अभिनव और रचनात्मक
  • अच्छी मजाक करने की आदत
  • पढ़ाने का शौक
  • लचीला
  • अच्छा संचारक और श्रोता
  • तकनीक का ज्ञान

शक्तिशाली

पूर्वस्कूली शिक्षकों को ऊर्जावान होना चाहिए क्योंकि बच्चे हमेशा ऊर्जावान होते हैं। अधिकतम उत्पादकता के लिए शिक्षक के लिए अपने ऊर्जा स्तर से मेल खाना आवश्यक हो जाता है।

देखभाल करने वाला स्वभाव

पूर्वस्कूली शिक्षकों में देखभाल करने वाला स्वभाव होना चाहिए। उसे एक माँ की तरह बच्चों की देखभाल करनी चाहिए। छोटे बच्चों को बहुत छोटी सी बात सीखने के लिए बहुत अधिक देखभाल की आवश्यकता होती है।

शिक्षाशास्त्र का अच्छा ज्ञान

शिक्षकों के लिए शिक्षाशास्त्र का अच्छा ज्ञान महत्वपूर्ण है क्योंकि शिक्षाशास्त्र शिक्षक को यह तय करने में मदद करता है कि छात्र की उम्र और मानसिक स्तर के अनुसार क्या पढ़ाया जाए।

धीरज

छोटे बच्चे कई सवाल पूछते हैं और बहुत छोटे मुद्दे बताते हैं इस मामले में पूर्वस्कूली शिक्षकों को उत्तर के लिए धैर्य रखना चाहिए और बच्चे की देखभाल करना चाहिए।

अभिनव और रचनात्मक

पूर्वस्कूली में बच्चों को मुख्य रूप से गतिविधि के माध्यम से कठिनाइयां होती हैं। गतिविधि की तैयारी के लिए आवश्यक है बच्चों का ध्यान खींचने के लिए अभिनव विचार

अच्छी मजाक करने की आदत

शिक्षण अधिगम अनुभवों के दौरान खुशनुमा माहौल बनाए रखने के लिए कक्षा की ऊब को तोड़ने के लिए शिक्षक में हास्य की अच्छी समझ होनी चाहिए।

पढ़ाने का शौक

पूर्वस्कूली शिक्षक के एक शिक्षक को नई नवीन गतिविधि में बच्चों को पढ़ाने और उनमें से सर्वश्रेष्ठ लाने का जुनून होना चाहिए।

लचीला

एक पूर्वस्कूली शिक्षक को इतना लचीला होना चाहिए कि वह आवश्यकता और स्थिति के अनुसार व्यक्तिगत छात्र की जरूरतों की देखभाल कर सके

अच्छा संचारक और श्रोता

एक पूर्वस्कूली शिक्षक को अच्छा संचारक होना चाहिए ताकि वह छात्र को अपने विचार स्पष्ट रूप से बता सके, उसे एक अच्छा श्रोता होना चाहिए ताकि वह बच्चों की सभी समस्याओं को सुन सके।

तकनीक का ज्ञान

पूर्वस्कूली शिक्षकों में अपने शिक्षण और सीखने के अनुभवों में कुशलता से प्रौद्योगिकी का उपयोग करने का कौशल होना चाहिए

निष्कर्ष

एक पूर्वस्कूली शिक्षक के पास छोटे बच्चों के साथ व्यवहार करने के लिए कई कौशल होने चाहिए और उसे नवीन, देखभाल करने वाला, ऊर्जावान होने के साथ-साथ अध्यापन का भी अच्छा ज्ञान होना चाहिए जो बच्चों को उनके समग्र विकास में मदद करेगा।

27. ପିଲାଦିନର ଶିକ୍ଷାବିତ୍ ଭାବରେ କାର୍ଯ୍ୟ କରିବା ପାଇଁ ଆବଶ୍ୟକ ମନୋଭାବ ଏବଂ ଗୁଣ ବିଷୟରେ ଆଲୋଚନା କରନ୍ତୁ |

ପିଲାଦିନର ଭଲ ଶିକ୍ଷାବିତ୍ ଛୋଟ ପିଲାମାନଙ୍କ ସହିତ କାମ କରିବା ଏବଂ ସେମାନଙ୍କୁ ପରିଚାଳନା କରିବା ପରି ଅନେକ ଗୁଣ ଧାରଣ କରିବା ଆବଶ୍ୟକ | ଏହା ଏକ ସହଜ କାର୍ଯ୍ୟ ନୁହେଁ |

ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲାମାନେ ସେମାନଙ୍କର ଶିକ୍ଷକଙ୍କୁ ବହୁତ ପ୍ରଶଂସା କରନ୍ତି ତେଣୁ ଜଣେ ଶିକ୍ଷକ ଗୁଣଗୁଡିକ ଅନୁସରଣ କରିବା ଉଚିତ୍ |

ଶକ୍ତିଶାଳୀ |
ଯତ୍ନଶୀଳ ପ୍ରକୃତି |
ଶିକ୍ଷାଦାନ ବିଷୟରେ ଭଲ ଜ୍ଞାନ |
ଧ patience ର୍ଯ୍ୟ
ଅଭିନବ ଏବଂ ସୃଜନଶୀଳ |
ଭଲ ହାସ୍ୟରସ
ଶିକ୍ଷାଦାନ ପ୍ରତି ଆଗ୍ରହୀ |
ନମନୀୟ |
ଭଲ ଯୋଗାଯୋଗକାରୀ ଏବଂ ଶ୍ରୋତା |
ଟେକ୍ନୋଲୋଜିର ଜ୍ଞାନ |

ଶକ୍ତିଶାଳୀ |

ପିଲାମାନେ ସର୍ବଦା ଶକ୍ତିଶାଳୀ ଥିବାରୁ ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ଶିକ୍ଷକମାନେ ଶକ୍ତିଶାଳୀ ହେବା ଉଚିତ୍ | ସର୍ବାଧିକ ଉତ୍ପାଦନ ପାଇଁ ଶିକ୍ଷକ ସେମାନଙ୍କ ଶକ୍ତି ସ୍ତର ସହିତ ମେଳ ହେବା ଜରୁରୀ ଅଟେ |

ଯତ୍ନଶୀଳ ପ୍ରକୃତି |

ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ଶିକ୍ଷକମାନେ ଯତ୍ନଶୀଳ ପ୍ରକୃତି ରହିବା ଉଚିତ୍ | ସେ ମା ପରି ପିଲାମାନଙ୍କ ଯତ୍ନ ନେବା ଉଚିତ୍ | ଛୋଟ ପିଲାମାନେ ଏକ ଛୋଟ ଜିନିଷ ଶିଖିବା ପାଇଁ ଅଧିକ ଯତ୍ନ ଆବଶ୍ୟକ କରନ୍ତି |

ଶିକ୍ଷାଦାନ ବିଷୟରେ ଭଲ ଜ୍ଞାନ |

ଶିକ୍ଷକମାନଙ୍କ ପାଇଁ ଶିକ୍ଷାଦାନ ବିଷୟରେ ଭଲ ଜ୍ଞାନ ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ କାରଣ ଶିକ୍ଷାର୍ଥୀଙ୍କର ବୟସ ଏବଂ ମାନସିକ ସ୍ତର ଅନୁଯାୟୀ କ’ଣ ଶିକ୍ଷା ଦେବେ ତାହା ସ୍ଥିର କରିବାକୁ ଶିକ୍ଷକ ସାହାଯ୍ୟ କରନ୍ତି |

ଧ ati ର୍ଯ୍ୟ

ଛୋଟ ପିଲାମାନେ ଅନେକ ପ୍ରଶ୍ନ ପଚାରନ୍ତି ଏବଂ ଏହି କ୍ଷେତ୍ରରେ ବହୁତ ଛୋଟ ପ୍ରସଙ୍ଗ କୁହନ୍ତି ପ୍ରିସ୍କୁଲ୍ ଶିକ୍ଷକମାନେ ପିଲାଟିର ଉତ୍ତର ପାଇଁ ଯତ୍ନ ନେବା ଉଚିତ୍ |

ଅଭିନବ ଏବଂ ସୃଜନଶୀଳ |

ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ପିଲାମାନେ ମୁଖ୍ୟତ activity କାର୍ଯ୍ୟକଳାପ ମାଧ୍ୟମରେ ଚିନ୍ତା କରନ୍ତି | କାର୍ଯ୍ୟକଳାପର ପ୍ରସ୍ତୁତି ପିଲାମାନଙ୍କ ଦୃଷ୍ଟି ଆକର୍ଷଣ କରିବା ପାଇଁ ହ i ଅଭିନବ ଚିନ୍ତାଧାରା ଆବଶ୍ୟକ କରେ |

ଭଲ ହାସ୍ୟରସ

ଶିକ୍ଷଣ ଅଭିଜ୍ଞତା ଶିଖିବା ସମୟରେ ଖୁସିର ବାତାବରଣ ବଜାୟ ରଖିବା ପାଇଁ ଜଣେ ଶିକ୍ଷକ ଶ୍ରେଣୀର ବିରକ୍ତିକୁ ଭାଙ୍ଗିବା ପାଇଁ ଏକ ଉତ୍ତମ ହାସ୍ୟରସ ରହିବା ଉଚିତ |

ଶିକ୍ଷାଦାନ ପ୍ରତି ଆଗ୍ରହୀ |

ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ଶିକ୍ଷକଙ୍କର ଶିକ୍ଷାଦାନ ଏବଂ ନୂତନ ଅଭିନବ କାର୍ଯ୍ୟକଳାପରେ ପିଲାମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ସର୍ବୋତ୍ତମକୁ ଆଣିବା ପାଇଁ ଉତ୍ସାହ ରହିବା ଉଚିତ୍ |

ନମନୀୟ |

ଏକ ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ଶିକ୍ଷକ ଆବଶ୍ୟକତା ଏବଂ ପରିସ୍ଥିତି ଅନୁଯାୟୀ ବ୍ୟକ୍ତିଗତ ଛାତ୍ରଙ୍କ ଆବଶ୍ୟକତା ପ୍ରତି ଯତ୍ନବାନ ହେବା ପାଇଁ ଯଥେଷ୍ଟ ନମନୀୟ ହେବା ଉଚିତ୍ |

ଭଲ ଯୋଗାଯୋଗକାରୀ ଏବଂ ଶ୍ରୋତା |

ଜଣେ ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ଶିକ୍ଷକ ଭଲ ଯୋଗାଯୋଗକାରୀ ହେବା ଉଚିତ ଯାହା ଦ୍ she ାରା ସେ ତାଙ୍କ ଆଇଡିଆକୁ ଛାତ୍ରଙ୍କ ନିକଟରେ ସ୍ପଷ୍ଟ ଭାବରେ ଯୋଗାଯୋଗ କରିପାରିବେ, ସେ ଜଣେ ଭଲ ଶ୍ରୋତା ହେବା ଉଚିତ୍ ଯାହା ଦ୍ children ାରା ସେ ପିଲାମାନଙ୍କର ସମସ୍ତ ସମସ୍ୟା ଶୁଣିବେ।

ଟେକ୍ନୋଲୋଜିର ଜ୍ଞାନ |

ଏକ ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ଶିକ୍ଷକମାନେ ତାଙ୍କ ଶିକ୍ଷାଦାନ ଏବଂ ଶିକ୍ଷଣ ଅଭିଜ୍ଞତାରେ ଦକ୍ଷତାର ସହିତ ଟେକ୍ନୋଲୋଜି ବ୍ୟବହାର କରିବାର ଦକ୍ଷତା ରହିବା ଉଚିତ୍ |

ଉପସଂହାର

ଛୋଟ ପିଲାମାନଙ୍କ ସହିତ ମୁକାବିଲା କରିବା ପାଇଁ ଏକ ପ୍ରାଥମିକ ବିଦ୍ୟାଳୟର ଶିକ୍ଷକମାନଙ୍କ ପାଖରେ ଅନେକ କ skills ଶଳ ରହିବା ଆବଶ୍ୟକ ଏବଂ ସେ ଅଭିନବ, ଯତ୍ନଶୀଳ, ଶକ୍ତିଶାଳୀ ହେବା ସହିତ ଶିକ୍ଷାଦାନ ବିଷୟରେ ମଧ୍ୟ ଭଲ ଜ୍ଞାନ ରହିବା ଆବଶ୍ୟକ ଯାହାକି ପିଲାମାନଙ୍କୁ ସେମାନଙ୍କର ସାମଗ୍ରିକ ବିକାଶରେ ସାହାଯ୍ୟ କରିବ |

28. Suggest five strategies for parent using which they can help their infant to acquire language during the first year . explain how these will help in language development.

parents should keep their language simple

when they are talking to infant specially those only few months old , adult should  call out the child name rather  than saying ” you “and call them some “mummy”  “daddy” rather  than I .

when the infant is around four to five months of age , parent  begin to show them toy and household object

While showing this they refer to them by their names and describe them a little,  sibling delight in such activity with the baby and baby starts uttering words.

By 6- 7 month parents should encourage infants to pick up object and talk about them.

this increases the interaction between the parent and the child and encourage her  to try more and more to utter sound and words.

By 7- 8 month parents should begin to talk about what is going on around the child

parents should refer to their own action and the action of the child,  while walking with the infant on the road . Parent should say this is bus, this is car ,this is the sound of traffic, thus a child knowledge about atmosphere is increase, and she try out utter these word when she again see the same thing .

By 9- 10 month parents should begin to play language game with them

parents say a word like “hello”  “bye-bye” and encourage the child to reproduce it . they also teach her the wave by showing their gesture.

conclusion

increasing competency in language help the baby to interact with more people and form relationship with them which help in language development, as well as the social development,

Thus the parents should try to encourage their infant to uttersound and keep ontalking to them for better acquisition of language .

28. माता-पिता के लिए पाँच रणनीतियाँ सुझाएँ जिनका उपयोग करके वे अपने शिशु को पहले वर्ष के दौरान भाषा सीखने में मदद कर सकते हैं। व्याख्या कीजिए कि ये भाषा के विकास में किस प्रकार सहायक होंगे।

माता-पिता को अपनी भाषा सरल रखनी चाहिए

जब वे शिशु से विशेष रूप से केवल कुछ महीने के बच्चों से बात कर रहे हों, तो वयस्क को “आप” कहने के बजाय बच्चे का नाम पुकारना चाहिए और उन्हें मेरे बजाय कुछ “मम्मी” “डैडी” कहना चाहिए।

जब शिशु लगभग चार से पांच महीने का होता है, तो माता-पिता उन्हें खिलौना और घरेलू वस्तु दिखाना शुरू कर देते हैं

यह दिखाते हुए वे उन्हें उनके नाम से बुलाते हैं और उनका थोड़ा-बहुत वर्णन करते हैं, भाई-बहन इस तरह की गतिविधि में बच्चे और बच्चे के साथ खुशी के शब्द बोलने लगते हैं।

६-७ महीने तक माता-पिता को चाहिए कि वे शिशुओं को वस्तु उठाने और उनके बारे में बात करने के लिए प्रोत्साहित करें।

यह माता-पिता और बच्चे के बीच बातचीत को बढ़ाता है और उसे ध्वनि और शब्दों को बोलने के लिए अधिक से अधिक प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

7-8 महीने तक माता-पिता को इस बारे में बात करना शुरू कर देना चाहिए कि बच्चे के आसपास क्या चल रहा है

सड़क पर शिशु के साथ चलते समय माता-पिता को अपने स्वयं के कार्यों और बच्चे की कार्रवाई का उल्लेख करना चाहिए। माता-पिता को कहना चाहिए कि यह बस है, यह कार है, यह यातायात की आवाज है, इस प्रकार एक बच्चे को वातावरण के बारे में ज्ञान बढ़ जाता है, और जब वह फिर से वही चीज़ देखती है तो वह इन शब्दों को बोलने की कोशिश करती है।

9-10 महीने तक माता-पिता को उनके साथ भाषा का खेल खेलना शुरू कर देना चाहिए

माता-पिता “हैलो”  “अलविदा” जैसा शब्द कहते हैं और बच्चे को इसे पुन: पेश करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वे अपना हावभाव दिखाकर उसे लहर भी सिखाते हैं।

निष्कर्ष

भाषा में बढ़ती योग्यता बच्चे को अधिक लोगों के साथ बातचीत करने और उनके साथ संबंध बनाने में मदद करती है जो भाषा के विकास के साथ-साथ सामाजिक विकास में भी मदद करती है,

इसलिए माता-पिता को चाहिए कि वे अपने शिशु को बोलने के लिए प्रोत्साहित करें और भाषा के बेहतर ज्ञान के लिए उनसे बात करते रहें।

28. ପିତାମାତାଙ୍କ ପାଇଁ ପାଞ୍ଚଟି କ ies ଶଳ ପରାମର୍ଶ ଦିଅନ୍ତୁ ଯାହା ଦ୍ their ାରା ସେମାନେ ସେମାନଙ୍କର ଶିଶୁକୁ ପ୍ରଥମ ବର୍ଷରେ ଭାଷା ହାସଲ କରିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରିପାରିବେ | ଭାଷା ବିକାଶରେ ଏହା କିପରି ସାହାଯ୍ୟ କରିବ ତାହା ବ୍ୟାଖ୍ୟା କର |

ପିତାମାତାମାନେ ସେମାନଙ୍କର ଭାଷାକୁ ସରଳ ରଖିବା ଉଚିତ୍ |

ଯେତେବେଳେ ସେମାନେ କେବଳ କିଛି ମାସର ଶିଶୁ ସହିତ ବିଶେଷ ଭାବରେ କଥାବାର୍ତ୍ତା କରନ୍ତି, ବୟସ୍କମାନେ “ତୁମେ” କହିବା ପରିବର୍ତ୍ତେ ପିଲାଙ୍କ ନାମ ଡାକିବା ଉଚିତ ଏବଂ ସେମାନଙ୍କୁ ମୋ ଅପେକ୍ଷା କିଛି “ମମି” “ବାପା” ବୋଲି କହିବା ଉଚିତ୍ |

ଯେତେବେଳେ ଶିଶୁର ଚାରି ରୁ ପାଞ୍ଚ ମାସ ବୟସ ହୁଏ, ପିତାମାତା ସେମାନଙ୍କୁ ଖେଳନା ଏବଂ ଘରର ଜିନିଷ ଦେଖାଇବା ଆରମ୍ଭ କରନ୍ତି |

ଏହାକୁ ଦେଖାଇବାବେଳେ ସେମାନେ ସେମାନଙ୍କର ନାମ ଦ୍ୱାରା ସେମାନଙ୍କୁ ସୂଚିତ କରନ୍ତି ଏବଂ ସେମାନଙ୍କୁ ଟିକିଏ ବର୍ଣ୍ଣନା କରନ୍ତି, ଶିଶୁ ଏବଂ ଶିଶୁ ସହିତ ଏପରି କାର୍ଯ୍ୟକଳାପରେ ଭାଇଭଉଣୀ ଆନନ୍ଦ ଶବ୍ଦ ଆରମ୍ଭ କରନ୍ତି |

6-7 ମାସ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପିତାମାତା ଶିଶୁମାନଙ୍କୁ ବସ୍ତୁ ଉଠାଇବା ଏବଂ ସେମାନଙ୍କ ବିଷୟରେ କଥାବାର୍ତ୍ତା କରିବାକୁ ଉତ୍ସାହିତ କରିବା ଉଚିତ୍ |

ଏହା ପିତାମାତା ଏବଂ ପିଲାଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ପାରସ୍ପରିକ ସମ୍ପର୍କକୁ ବ increases ାଇଥାଏ ଏବଂ ଧ୍ୱନି ଏବଂ ଶବ୍ଦ ଉଚ୍ଚାରଣ କରିବାକୁ ଅଧିକରୁ ଅଧିକ ଚେଷ୍ଟା କରିବାକୁ ଉତ୍ସାହିତ କରେ |

7- 8 ମାସ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପିତାମାତା ପିଲାଙ୍କ ଚାରିପାଖରେ କଣ ଚାଲିଛି ସେ ବିଷୟରେ କହିବା ଆରମ୍ଭ କରିବା ଉଚିତ୍ |

ରାସ୍ତାରେ ଶିଶୁ ସହିତ ଚାଲିବାବେଳେ ପିତାମାତାମାନେ ସେମାନଙ୍କର ନିଜ କାର୍ଯ୍ୟ ଏବଂ ଶିଶୁର କାର୍ଯ୍ୟକୁ ଅନୁସରଣ କରିବା ଉଚିତ୍ | ପିତାମାତା ଏହା କହିବା ଉଚିତ ଯେ ଏହା ବସ୍, ଏହା କାର୍, ଏହା ହେଉଛି ଟ୍ରାଫିକ୍ ର ଶବ୍ଦ, ତେଣୁ ବାୟୁମଣ୍ଡଳ ବିଷୟରେ ପିଲାଙ୍କ ଜ୍ଞାନ ବ is ିଥାଏ, ଏବଂ ଯେତେବେଳେ ସେ ପୁନର୍ବାର ସମାନ କଥା ଦେଖନ୍ତି ସେତେବେଳେ ସେ ଏହି ଶବ୍ଦ ଉଚ୍ଚାରଣ କରିବାକୁ ଚେଷ୍ଟା କରନ୍ତି |

9-10 ମାସ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପିତାମାତା ସେମାନଙ୍କ ସହିତ ଭାଷା ଖେଳ ଖେଳିବା ଆରମ୍ଭ କରିବା ଉଚିତ୍ |

ପିତାମାତା “ହେଲୋ” “ବାଇ-ବାଇ” ପରି ଏକ ଶବ୍ଦ କୁହନ୍ତି ଏବଂ ପିଲାଟିକୁ ପୁନ oduc ପ୍ରକାଶ କରିବାକୁ ଉତ୍ସାହିତ କରନ୍ତି | ସେମାନେ ମଧ୍ୟ ସେମାନଙ୍କର ଅଙ୍ଗଭଙ୍ଗୀ ଦେଖାଇ ତରଙ୍ଗ ଶିଖାନ୍ତି |

ଉପସଂହାର

ଭାଷାରେ ଦକ୍ଷତା ବୃଦ୍ଧି ଶିଶୁକୁ ଅଧିକ ଲୋକଙ୍କ ସହ ଯୋଗାଯୋଗ କରିବାରେ ଏବଂ ସେମାନଙ୍କ ସହିତ ସମ୍ପର୍କ ଗ help ିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରେ ଯାହା ଭାଷା ବିକାଶରେ ତଥା ସାମାଜିକ ବିକାଶରେ ସାହାଯ୍ୟ କରେ,

ଏହିପରି ଅଭିଭାବକମାନେ ସେମାନଙ୍କର ଶିଶୁକୁ ଉଚ୍ଚାରଣ ପାଇଁ ଉତ୍ସାହିତ କରିବା ପାଇଁ ଚେଷ୍ଟା କରିବା ଉଚିତ୍ ଏବଂ ଭାଷାର ଉତ୍ତମ ଅଧିଗ୍ରହଣ ପାଇଁ ସେମାନଙ୍କ ସହିତ ଚାଲିବା |

29. Importance of attachment during infancy .

  • attachment or the attachment bond is the unique emotional relationship between your baby and you(their primary caregiver).
  • it is the key factor in the way your infant brain organises itself and how your child develops socially emotionally intellectually and physically.
  • A secure attachment bond stems from the wordless emotional exchange that draws the two of you together.
  • ensuring that your infant feels safe and calm enough to experience the optimal development of their nervous system.

secure attachment  provides your baby with the best foundation for the life

  • An eagerness to learn
  • a healthy self-awareness
  • trust
  • consideration for other

29. शैशवावस्था में लगाव का महत्व।

  • लगाव या लगाव बंधन आपके बच्चे और आप (उनकी प्राथमिक देखभाल करने वाला) के बीच अद्वितीय भावनात्मक संबंध है।
  • आपका शिशु मस्तिष्क किस प्रकार स्वयं को व्यवस्थित करता है और आपका बच्चा सामाजिक रूप से भावनात्मक रूप से बौद्धिक और शारीरिक रूप से कैसे विकसित होता है, यह महत्वपूर्ण कारक है।
  • एक सुरक्षित लगाव बंधन शब्दहीन भावनात्मक आदान-प्रदान से उपजा है जो आप दोनों को एक साथ खींचता है।
  • यह सुनिश्चित करना कि आपका शिशु अपने तंत्रिका तंत्र के इष्टतम विकास का अनुभव करने के लिए पर्याप्त सुरक्षित और शांत महसूस करता है।

सुरक्षित लगाव आपके बच्चे को जीवन के लिए सबसे अच्छी नींव प्रदान करता है

  • सीखने की ललक
  • एक स्वस्थ आत्म-जागरूकता
  • विश्वास
  • अन्य के लिए विचार

30. Autonomy

  • autonomy means a lot more than simply growing up.
  • its also having the self-confidence to do a certain thing and become independent and the ability to act and think for yourself.
  • by becoming autonomous, the child develop  his self-esteem by creating a stable and rich inner life that will help him to prevent boredom
  • example tell your child to do things by himself or herself  . A child should Brush his teeth himself . A child should wear his or her clothes by himself or herself
  • By devloping Autonomy , we can show him or her that, She or he can capable to doing many things.

30. स्वायत्तता

  • स्वायत्तता का अर्थ केवल बड़े होने से कहीं अधिक है।
  • इसमें एक निश्चित काम करने और स्वतंत्र होने के लिए आत्मविश्वास और अपने लिए कार्य करने और सोचने की क्षमता भी होती है।
  • स्वायत्त बनकर, बच्चा एक स्थिर और समृद्ध आंतरिक जीवन बनाकर अपना आत्म-सम्मान विकसित करता है जो उसे ऊब को रोकने में मदद करेगा
  • उदाहरण के लिए अपने बच्चे से कहें कि वह चीजें खुद ही करें। एक बच्चे को अपने दाँत खुद ब्रश करने चाहिए। एक बच्चे को अपने कपड़े खुद पहनने चाहिए
  • स्वायत्तता विकसित करके, हम उसे दिखा सकते हैं कि वह कई काम करने में सक्षम है।

30. ସ୍ onomy ାଧୀନତା

ସ୍ onomy ାଧୀନତାର ଅର୍ଥ କେବଳ ବଂଚିବା ଅପେକ୍ଷା ବହୁତ ଅଧିକ |
ଏକ ନିର୍ଦ୍ଦିଷ୍ଟ କାର୍ଯ୍ୟ କରିବା ଏବଂ ସ୍ independent ାଧୀନ ହେବା ଏବଂ ନିଜ ପାଇଁ କାର୍ଯ୍ୟ କରିବା ଏବଂ ଚିନ୍ତା କରିବାର କ୍ଷମତା ଉପରେ ଏହାର ଆତ୍ମବିଶ୍ୱାସ ମଧ୍ୟ ଅଛି |
ସ୍ autonomous ୟଂଶାସିତ ହୋଇ, ପିଲା ଏକ ସ୍ଥିର ଏବଂ ସମୃଦ୍ଧ ଆଭ୍ୟନ୍ତରୀଣ ଜୀବନ ସୃଷ୍ଟି କରି ନିଜର ଆତ୍ମ ସମ୍ମାନ ବ develop ାଇଥାଏ ଯାହା ତାଙ୍କୁ ବିରକ୍ତିକୁ ରୋକିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରିବ |
ଉଦାହରଣ ତୁମ ପିଲାକୁ ନିଜେ କିଛି କରିବାକୁ କୁହ | ଏକ ଶିଶୁ ନିଜେ ଦାନ୍ତ ଘଷିବା ଉଚିତ୍ | ପିଲା ନିଜ ପୋଷାକ ପିନ୍ଧିବା ଉଚିତ୍ |
ସ୍ Aut ାଧୀନତାକୁ ଖଣ୍ଡନ କରି, ଆମେ ତାଙ୍କୁ ଦେଖାଇ ପାରିବା ଯେ ସେ ଅନେକ କାର୍ଯ୍ୟ କରିବାକୁ ସକ୍ଷମ ଅଟନ୍ତି |

31 What is Children’s curiosity(ପିଲାମାନଙ୍କର କତୁହଳ |)

The more curious a child is, the more he learns. Nurturing your child’s curiosity is one of the most important ways you can help her become a lifelong learner.

क) बच्चों की जिज्ञासा (ity ity |

एक बच्चा जितना जिज्ञासु होता है, वह उतना ही अधिक सीखता है। अपने बच्चे की जिज्ञासा का पोषण करना सबसे महत्वपूर्ण तरीकों में से एक है जिससे आप उसे आजीवन सीखने में मदद कर सकते हैं।

Babies are born learners, with a natural curiosity to figure out how the world works. Curiosity is the desire to learn. It is an eagerness to explore, discover and figure things out.

Parents and caregivers don’t have to “make” their children curious or “push” their children to learn. In fact, research shows that it is a child’s internal desire to learn (their curiosity), not external pressure, that motivates him to seek out new experiences and leads to greater success in school over the long term.

Curiosity is something all babies are born with. They come into the world with a drive to understand how the world works:

  • A newborn follows sounds, faces and interesting objects with her eyes.
  • An 8-month-old shakes a rattle and then puts it into his mouth to see what this object can do.
  • A toddler takes a stool to reach the countertop where the phone is—a “toy” she loves to play with.
  • A 2-year-old pretends she is the garbage collector and puts all her stuffed animals into the laundry basket “garbage truck” to figure out what it feels like to be in the other person’s shoes.

शिशुओं का जन्म शिक्षार्थियों के साथ होता है, यह जानने की स्वाभाविक जिज्ञासा के साथ कि दुनिया कैसे काम करती है। जिज्ञासा सीखने की इच्छा है। यह चीजों का पता लगाने, खोज करने और उनका पता लगाने की उत्सुकता है।

माता-पिता और देखभाल करने वालों को अपने बच्चों को सीखने के लिए उत्सुक या “धक्का” देना होगा। वास्तव में, अनुसंधान से पता चलता है कि यह एक बच्चे की आंतरिक इच्छा है (सीखने की उनकी जिज्ञासा), बाहरी दबाव नहीं, जो उसे नए अनुभवों की तलाश करने के लिए प्रेरित करता है और लंबे समय में स्कूल में अधिक से अधिक सफलता की ओर ले जाता है।

जिज्ञासा एक ऐसी चीज है जिसका सभी बच्चे जन्म लेते हैं। वे दुनिया में यह समझने के लिए एक ड्राइव के साथ आते हैं कि दुनिया कैसे काम करती है:

एक नवजात शिशु अपनी आँखों से आवाज़, चेहरे और दिलचस्प वस्तुओं का अनुसरण करता है।
8 महीने का बच्चा एक खड़खड़ाहट को हिलाता है और फिर उसे अपने मुंह में डालता है कि यह वस्तु क्या कर सकती है।
एक बच्चा काउंटरटॉप तक पहुंचने के लिए एक स्टूल लेता है जहां फोन है – एक “खिलौना” जिसके साथ वह खेलना पसंद करता है।
एक 2 वर्षीय बहाना है कि वह कचरा संग्रहकर्ता है और अपने सभी भरवां जानवरों को कपड़े धोने की टोकरी “कचरा ट्रक” में डाल देती है ताकि यह पता चल सके कि यह दूसरे व्यक्ति के जूते में क्या लगता है।

32. What is Children’s imitation of adults(ବୟସ୍କମାନଙ୍କ ପିଲାମାନଙ୍କର ଅନୁକରଣ |)

One of our biggest responsibilities is to be a good example to our children. This is because children, especially during the first 5 years of life, imitate everything they see in adults.

बी) बच्चों की वयस्कों की नकल (of Children’s of |

हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारियों में से एक हमारे बच्चों के लिए एक अच्छा उदाहरण है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बच्चे, विशेष रूप से जीवन के पहले 5 वर्षों के दौरान, उन सभी चीजों का अनुकरण करते हैं जो वे वयस्कों में देखते हैं।

For better or for worse, children imitate adults. Almost without us realizing it, their small eyes study and hone in on us, working in behaviors, copying gestures, and internalizing words, expressions, and even roles. We know that children will never be exact copies of their parents

Children don’t only imitate their parents. As we well know, they don’t simply experience isolated scenarios. Nowadays, they have more social stimulation than ever, and even “models” outside their own home or school. We also can’t forget television and those new technologies they use from a very early age.

Everything they see, hear, and happens around them influences them. We adults make up that vast theater of characters that they imitate and that will influence their conduct and even their way of understanding the world. More on this later.

बेहतर या बदतर के लिए, बच्चे वयस्कों की नकल करते हैं। लगभग हमारे बिना इसे साकार करने के लिए, उनकी छोटी-छोटी आँखें अध्ययन करती हैं और हम पर भरोसा करती हैं, व्यवहार में काम करती हैं, इशारों की नकल करती हैं और शब्दों, भावों और यहां तक कि भूमिकाओं को भी आंतरिक करती हैं। हम जानते हैं कि बच्चे कभी भी अपने माता-पिता की हूबहू नकल नहीं करेंगे

बच्चे केवल अपने माता-पिता की नकल नहीं करते हैं। जैसा कि हम अच्छी तरह से जानते हैं, वे केवल अलग-थलग परिदृश्यों का अनुभव नहीं करते हैं। आजकल, उनके पास पहले से कहीं अधिक सामाजिक उत्तेजना है, और यहां तक कि अपने घर या स्कूल के बाहर भी “मॉडल” हैं। हम टेलीविजन और उन नई तकनीकों को भी नहीं भूल सकते जो वे बहुत कम उम्र से इस्तेमाल करते हैं।

वे जो कुछ भी देखते हैं, सुनते हैं, और उनके इर्द-गिर्द होते हैं, वह उन्हें प्रभावित करता है। हम वयस्कों के चरित्रों के उस विशाल रंगमंच को बनाते हैं जिसका वे अनुकरण करते हैं और जो उनके आचरण और यहां तक कि दुनिया को समझने के उनके तरीके को प्रभावित करेगा। इस पर और बाद में।

Father and son with arms outstretched in front of water.

33. Explain the term ‘Child Labour’.

The term “child labour” is often defined as work that deprives children of their childhood, their potential and their dignity, and that is harmful to physical and mental development. It refers to work THAT is mentally, physically, socially or morally dangerous and harmful to children.

  • The worst forms of child labour involves children being enslaved, separated from their families, exposed to serious hazards and illnesses and/or left  on the streets of large cities – often at a very early age.
  • Whether or not particular forms of “work” can be called “child labour” depends on the child’s age, the type and hours of work performed, the conditions under which it is performed and the objectives pursued by individual countries.
  • The answer varies from country to country, as well as among sectors within countries.

Let us examine the situation of children in the lock industry of Aligarh

  • Children start working at the ages of six or seven in this industry.
  • An average working day is between 12 and 14 hours. Some children work for 18 to 20 hours .
  • When they get tired they take a nap or have some Tea.
  • The working conditions are unhealthy with LESS ventilated and overcrowded rooms.
  • The wages are very low and the operations hazardous.
  • Electroplating, handpresses, spray painting and polishing on buffing machines are the most dangerous jobs in the industry and 50 to 70 per cent of this work is done by children.
  • Electroplating, for example, requires children to dip metal in acid and alkaline solutions.
  • The chemicals used this are dangerous-potassium cyanide, hydrochloric and chromic acid, sodium hydroxide etc.
  • Children work without aprons or gloves and their hands are immersed in these solutions for a major part of the day.
  • This is very harmful for their health. Electric shocks are frequent.
  • Within a matter of six to seven years, that is by the time the children are 13 or 14 years old, they suffer from chest diseases, skin allergy or cancer.

‘बाल श्रम’ शब्द की व्याख्या कीजिए।

शब्द “बाल श्रम” को अक्सर ऐसे काम के रूप में परिभाषित किया जाता है जो बच्चों को उनके बचपन, उनकी क्षमता और उनकी गरिमा से वंचित करता है, और यह शारीरिक और मानसिक विकास के लिए हानिकारक है। यह उस कार्य को संदर्भित करता है जो मानसिक, शारीरिक, सामाजिक या नैतिक रूप से खतरनाक और बच्चों के लिए हानिकारक है।

  • बाल श्रम के सबसे बुरे रूपों में बच्चों को गुलाम बनाना, उनके परिवारों से अलग होना, गंभीर खतरों और बीमारियों के संपर्क में आना और/या बड़े शहरों की सड़कों पर छोड़ दिया जाना शामिल है – अक्सर बहुत कम उम्र में।
  • “काम” के विशेष रूपों को “बाल श्रम” कहा जा सकता है या नहीं, यह बच्चे की उम्र, प्रदर्शन किए गए काम के प्रकार और घंटों, जिन परिस्थितियों में इसे किया जाता है और अलग-अलग देशों द्वारा पीछा किए गए उद्देश्यों पर निर्भर करता है।
  • उत्तर देश से दूसरे देश के साथ-साथ देशों के भीतर के क्षेत्रों में भिन्न होता है।

आइए एक नजर डालते हैं अलीगढ़ के ताला उद्योग में बच्चों की स्थिति पर

  • बच्चे इस उद्योग में छह या सात साल की उम्र में काम करना शुरू कर देते हैं।
  • एक औसत कार्य दिवस 12 से 14 घंटे के बीच होता है। कुछ बच्चे 18 से 20 घंटे काम करते हैं।
  • जब वे थक जाते हैं तो झपकी लेते हैं या चाय पीते हैं।
  • कम हवादार और भीड़भाड़ वाले कमरों के साथ काम करने की स्थिति अस्वस्थ है।
  • मजदूरी बहुत कम है और संचालन खतरनाक है।
  • बफिंग मशीनों पर इलेक्ट्रोप्लेटिंग, हैंडप्रेस, स्प्रे पेंटिंग और पॉलिशिंग उद्योग में सबसे खतरनाक काम हैं और इसमें से 50 से 70 प्रतिशत काम बच्चों द्वारा किया जाता है।
  • उदाहरण के लिए, इलेक्ट्रोप्लेटिंग के लिए बच्चों को एसिड और क्षारीय घोल में धातु डुबाने की आवश्यकता होती है।
    इसमें इस्तेमाल होने वाले रसायन खतरनाक हैं-पोटेशियम साइनाइड, हाइड्रोक्लोरिक और क्रोमिक एसिड, सोडियम हाइड्रॉक्साइड आदि।
  • बच्चे एप्रन या दस्ताने के बिना काम करते हैं और उनके हाथ दिन के एक बड़े हिस्से के लिए इन समाधानों में डूबे रहते हैं।
  • यह उनके स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होता है। अक्सर बिजली के झटके आते हैं।
  • छह से सात साल के भीतर, यानी जब बच्चे 13 या 14 साल के होते हैं, तब तक वे छाती की बीमारियों, त्वचा की एलर्जी या कैंसर से पीड़ित हो जाते हैं।

34. What is Development and Growth .

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Development

  • The term ‘development’ is used for changes in a person’s physical and behavioural traits that emerge orderly ways and last for a reasonable period of time.
  • The three main characteristics of these changes are that they are progressive, orderly and long lasting.
  • The term ‘progressive’ implies that these changes result in the acquisition of skills and abilities that are complex, finer and more efficient than the ones that preceded them.
  • To understand this, let us consider the advancement that takes place from crawling to walking and from babbling to taking.
  • Walking requires the child to move upright and balance one foot after the other. This requires greater coordination of the muscles and is more complex than crawling. Walking is also more useful as it frees the hands for other activities and increases the range of vision. Similarly, talking grows out of babbling and is certainly more complex and effective communicating with others.
  • The term ‘orderly’ suggests that there is an order in development.
  • Every development is built upon the previous one and cannot occur before it. Thus a child has to be able to crawl before she can walk and walk before she can run.
  • Similarly, the adult’s ability to handle complex situations is built upon the child’s capability of doing simpler tasks.
  • The ability to take decisions in adult life develops out of the childhood experiences of selecting which game to play or which book to read.
  • Development, therefore, is a process through which a person learns to function with greater ease and competence.
  • Development thus refers to both quantitative as well as qualitative changes.It changes not only in structure but also in function. Development may be defined as orderly and relatively enduring changes over time physical and neurological structure, thought processes and behaviour that every organism goes through from the beginning of its life end.

Growth

  • Growth’ refers to physical increase in the size of the body. Increase in weight, height and the size of internal organs is growth.
  • Growth refers to a quantitative change, that is, a change that can be measured. However, we do not merely grow in size. If that were so, a newborn baby would simply be a bigger baby at the age of 20 years.
  • Something else happens along with increase in size — there is a change in form and an increase in the complexity of body parts and their functioning, thinking abilities and social skills, among many others. In other words, we do not merely grow, but also develop.
  • Growth only one aspect of the larger process of development Development continues even when physical changes are not visible. Physical growth slows down considerably after adolescence but development does not.

Stages of Growth | Child Development | Goodfellow Occupational Therapy

34. विकास और वृद्धि क्या है।

विकास

  • ‘विकास’ शब्द का प्रयोग किसी व्यक्ति के शारीरिक और व्यवहारिक लक्षणों में परिवर्तन के लिए किया जाता है जो व्यवस्थित तरीके से उभरते हैं और उचित समय तक चलते हैं।
  • इन परिवर्तनों की तीन मुख्य विशेषताएं हैं कि वे प्रगतिशील, व्यवस्थित और लंबे समय तक चलने वाले हैं।
  • ‘प्रगतिशील’ शब्द का अर्थ है कि इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप उन कौशलों और क्षमताओं का अधिग्रहण होता है जो उनसे पहले की तुलना में जटिल, बेहतर और अधिक कुशल हैं।
  • इसे समझने के लिए, आइए हम रेंगने से लेकर चलने तक और बड़बड़ाने से लेकर लेने तक की प्रगति पर विचार करें।
    चलने के लिए बच्चे को सीधा चलने और एक के बाद एक पैर को संतुलित करने की आवश्यकता होती है। इसके लिए मांसपेशियों के अधिक समन्वय की आवश्यकता होती है और यह रेंगने से अधिक जटिल होता है। चलना भी अधिक उपयोगी है क्योंकि यह हाथों को अन्य गतिविधियों के लिए मुक्त करता है और दृष्टि की सीमा को बढ़ाता है। इसी तरह, बात करना बड़बड़ाने से बढ़ता है और निश्चित रूप से दूसरों के साथ अधिक जटिल और प्रभावी संचार होता है।
    ‘अर्दली’ शब्द बताता है कि विकास में एक क्रम होता है।
  • प्रत्येक विकास पिछले एक पर निर्मित होता है और इससे पहले नहीं हो सकता है। इस प्रकार एक बच्चे को चलने से पहले रेंगने और दौड़ने से पहले चलने में सक्षम होना चाहिए।
  • इसी तरह, जटिल परिस्थितियों को संभालने की वयस्क की क्षमता बच्चे की सरल कार्यों को करने की क्षमता पर निर्मित होती है।
  • वयस्क जीवन में निर्णय लेने की क्षमता बचपन के अनुभवों से विकसित होती है कि कौन सा खेल खेलना है या कौन सी किताब पढ़नी है।
  • अतः विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति अधिक सहजता और क्षमता के साथ कार्य करना सीखता है।
    विकास इस प्रकार मात्रात्मक और साथ ही गुणात्मक दोनों परिवर्तनों को संदर्भित करता है। यह न केवल संरचना में बल्कि कार्य में भी बदलता है। विकास को समय के साथ व्यवस्थित और अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है शारीरिक और तंत्रिका संबंधी संरचना, विचार प्रक्रियाओं और व्यवहार जो प्रत्येक जीव अपने जीवन के अंत की शुरुआत से गुजरता है।

विकास

  • “विकास’ से तात्पर्य शरीर के आकार में शारीरिक वृद्धि से है। वजन, ऊंचाई और आंतरिक अंगों के आकार में वृद्धि ही वृद्धि है।
  • विकास एक मात्रात्मक परिवर्तन को संदर्भित करता है, अर्थात एक परिवर्तन जिसे मापा जा सकता है। हालाँकि, हम केवल आकार में नहीं बढ़ते हैं। यदि ऐसा होता, तो एक नवजात शिशु केवल 20 वर्ष की आयु में एक बड़ा बच्चा होता।
  • आकार में वृद्धि के साथ कुछ और होता है — शरीर के अंगों की जटिलता और उनके कामकाज, सोचने की क्षमता और सामाजिक कौशल, कई अन्य लोगों के रूप में परिवर्तन और जटिलता में वृद्धि होती है। दूसरे शब्दों में, हम न केवल बढ़ते हैं, बल्कि विकसित भी होते हैं।
  • विकास विकास की बृहत्तर प्रक्रिया का केवल एक पहलू भौतिक परिवर्तन दिखाई न देने पर भी विकास जारी रहता है। किशोरावस्था के बाद शारीरिक विकास काफी धीमा हो जाता है लेकिन विकास नहीं होता है।

35. What is Areas of Development  and explain .

The various developments that take place during the life span of an individual can be classified thus: physical and motor development, social development, emotional development, cognitive development and language development.
Physical development
refers to the physical changes in the size, structure and proportion of the parts of the body that take place from the moment of conception.
Motor development
  • means the development of control over body movements.
  • This results in increasing coordination between various parts of the body. As a result of physical and motor development the child acquires many abilities.
  • These developments will bring about the change from an infant who at the time of birth is capable of only lying on her back to one who learns to roll over, hold her head, sit, walk, run and climb stairs.
  • The improving coordination between the eye and the hand movements will help her to eat food without smearing it on her face. Gradually she will learn to clothe herself, draw, skip, paint, ride a bicycle and type. As she grows she will refine the skills already acquired as well as develop new ones.
Language development
  • refers to those changes that make it possible for an infant, who in the early months uses crying for communication, to learn words and then sentences to converse fluently.
  • How the child learns to speak grammatically correct sentences is amazing! At first the child indicates her need for water through crying.
  • Then she learns to say “water.”A little later she says, “Mummy water” and finally she speaks a complete sentence, “Mummy, I want to drink water.” She will be about three years by this time.
Cognitive development
  • concerns the emergence of thinking capabilities in the individual.
  • We can see how the child’s thinking develops and changes from one age to the next.
  • The infant is not born with the reasoning and thinking abilities of adults.
  • In fact, the infant acts as if an object that is removed from her sight has ceased to exist.
  • Gradually she learns that objects and people are permanent and they exist even if she cannot see them.
  • Around five years of age she can understand concepts such as heavynand light, fast and slow, colours and sizes which she did not comprehend earlier.
  • Exploration of the surroundings and the questions regarding the ‘why’ and “how of things result in an increasing store of information.
  • In everyday use you would have often heard the term ‘intelligence’. How are the terms cognitive development and intelligence used in Child Development? Cognitive development, as you know, is the process of mental development from infancy to adulthood.
  • Cognition refers to the process of coming to know”, which is accomplished through the gathering and processing of information. It includes perceiving, learning, remembering, problem solving, and thinking about the world. Intelligence is a term difficult to define.
  • Nevertheless, according to a well known definition, it refers to the individual’s ability to “act purposefully, think rationally and deal effectively with the environment”.
Social development
  • refers to the development of thosc abilities that enable the individual to behave in accordance with the expectations of the socicly.
  • It is concerned with the child’s relationships with people and her ways of interaction with them.
  • The infant instinctively reaches out to the person who approaches her with love and affection.
  • Gradually she learns to recognize her mother and other caregivers and forms attachment to them.
  • Later she will form relationships with others.
  • As an infant her actions are centered around her own needs. Not before the children are seven or eight years of age will they be able to form stable relationships based on give and take.
  • This is also the time when children make friends and can even identify a best friend. When the child comes in contact with other children and adults she finds out how to behave in a manner that is acceptable to them.
  • She learnt the ways of eating, dressing, talking to elders and other things that are a part of her culture.
  • She will know that it is not right to snatch a toy, hit a child or play out of turn.
  • Slowly she learns to cooperate, to be helpful and generous.
  • The ability to understand another person’s point of view and concern for others will help her to form satisfying relationships with people during adolescence and adulthood.
Emotional development
  • refers to the emergence of emotions like anger, joy, delight, happiness, fear, anxiety and sorrow and the socially acceptable ways of expressing them.
  • As the child grows up and becomes aware of acceptable ways of behaviour, a variety of emotions also emerge.
  • As an infant, she expresses only discomfort and delight.
  • As she grows older, expressions of joy, happiness, fear, anger and disappointment appear.
  • She learns to express these emotions in a healthy manner. For example, initially the child bits out when angry.
  • Gradually she learns to control this and expresses anger in other ways.
Personality
  • is a word that we often use while describing a person, What is personality?
  • If you have observed children and adults over a period of time, you would have noticed this: every individual has a characteristic way of thinking, feeling, relating to people and reacting to situations which she displays in a wide variety of situations and settings.
  • Each child has a unique personality.
  • What the child thinks about herself is an important part of her personality since it determines how she interacts with others.
  • A child who feels confident and happy is likely  be affectionate with others.
  • Personality thus refers to a person’s characteristic ways of relating to others and distinctive patterns of thinking and feeling about oneself and other people.
  • It emerges out of the child’s experienccs and achievements in the areas of physical, motor, cognitive, language, social and emotional development.

35. विकास के क्षेत्र क्या हैं और समझाइए।

किसी व्यक्ति के जीवन काल के दौरान होने वाले विभिन्न विकासों को इस प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है: शारीरिक और मोटर विकास, सामाजिक विकास, भावनात्मक विकास, संज्ञानात्मक विकास और भाषा विकास।

शारीरिक विकास
गर्भाधान के क्षण से शरीर के अंगों के आकार, संरचना और अनुपात में होने वाले भौतिक परिवर्तनों को संदर्भित करता है।

मोटर विकास
का अर्थ है शरीर की गतिविधियों पर नियंत्रण का विकास।
इससे शरीर के विभिन्न अंगों के बीच समन्वय बढ़ता है। शारीरिक और मोटर विकास के परिणामस्वरूप बच्चा कई क्षमताओं को प्राप्त करता है।
ये विकास एक ऐसे शिशु से परिवर्तन लाएगा जो जन्म के समय केवल अपनी पीठ के बल लेटने में सक्षम है, जो लुढ़कना, सिर पकड़ना, बैठना, चलना, दौड़ना और सीढ़ियाँ चढ़ना सीखता है।
आंख और हाथों की गतिविधियों के बीच बेहतर समन्वय से उसे अपने चेहरे पर बिना मलाई के खाना खाने में मदद मिलेगी। धीरे-धीरे वह खुद को कपड़े पहनना, ड्रॉ करना, स्किप करना, पेंट करना, साइकिल चलाना और टाइप करना सीख जाएगी। जैसे-जैसे वह बढ़ती है वह पहले से अर्जित कौशल को परिष्कृत करेगी और साथ ही नए विकसित करेगी।

भाषा विकास
उन परिवर्तनों को संदर्भित करता है जो एक शिशु के लिए संभव बनाता है, जो शुरुआती महीनों में संचार के लिए रोने का उपयोग करता है, शब्दों को सीखने के लिए और फिर धाराप्रवाह बातचीत करने के लिए वाक्यों का उपयोग करता है।
बच्चा कैसे व्याकरणिक रूप से सही वाक्य बोलना सीखता है वह अद्भुत है! पहले तो बच्चा रोने के माध्यम से पानी की आवश्यकता का संकेत देता है।
फिर वह “पानी” कहना सीखती है। थोड़ी देर बाद वह कहती है, “मम्मी पानी” और अंत में वह एक पूरा वाक्य बोलती है, “मम्मी, मुझे पानी पीना है।” इस समय तक वह लगभग तीन साल की हो जाएगी।

ज्ञान संबंधी विकास
व्यक्ति में सोचने की क्षमता के उद्भव की चिंता करता है।
हम देख सकते हैं कि बच्चे की सोच कैसे विकसित होती है और एक उम्र से दूसरी उम्र में कैसे बदलती है।
शिशु वयस्कों की तर्क और सोचने की क्षमता के साथ पैदा नहीं होता है।
वास्तव में, शिशु ऐसा कार्य करता है जैसे कि उसकी दृष्टि से हटाई गई वस्तु का अस्तित्व समाप्त हो गया हो।
धीरे-धीरे उसे पता चलता है कि वस्तुएं और लोग स्थायी हैं और वे मौजूद हैं, भले ही वह उन्हें देख न सके।
करीब पांच साल की उम्र में वह भारी और हल्का, तेज और धीमा, रंग और आकार जैसी अवधारणाओं को समझ सकती है जो वह पहले नहीं समझती थी।
परिवेश की खोज और ‘क्यों’ और “चीजों के कैसे परिणाम के बारे में जानकारी के बढ़ते भंडार में परिणाम होता है।
रोजमर्रा के इस्तेमाल में आपने अक्सर ‘खुफिया’ शब्द सुना होगा। बाल विकास में संज्ञानात्मक विकास और बुद्धि शब्द का प्रयोग किस प्रकार किया जाता है? जैसा कि आप जानते हैं, संज्ञानात्मक विकास शैशवावस्था से वयस्कता तक मानसिक विकास की प्रक्रिया है।
अनुभूति जानने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है”, जो जानकारी के एकत्रीकरण और प्रसंस्करण के माध्यम से पूरा किया जाता है। इसमें दुनिया के बारे में समझना, सीखना, याद रखना, समस्या को हल करना और सोचना शामिल है। इंटेलिजेंस एक ऐसा शब्द है जिसे परिभाषित करना मुश्किल है।
फिर भी, एक प्रसिद्ध परिभाषा के अनुसार, यह व्यक्ति की “उद्देश्यपूर्ण रूप से कार्य करने, तर्कसंगत रूप से सोचने और पर्यावरण के साथ प्रभावी ढंग से निपटने” की क्षमता को संदर्भित करता है।

सामाजिक विकास
थोस्क क्षमताओं के विकास को संदर्भित करता है जो व्यक्ति को सामाजिक रूप से अपेक्षाओं के अनुसार व्यवहार करने में सक्षम बनाता है।
यह लोगों के साथ बच्चे के संबंधों और उनके साथ बातचीत के तरीकों से संबंधित है।
शिशु सहज रूप से उस व्यक्ति के पास पहुंच जाता है जो उससे प्यार और स्नेह के साथ संपर्क करता है।
धीरे-धीरे वह अपनी मां और अन्य देखभाल करने वालों को पहचानना सीखती है और उनसे लगाव बनाती है।
बाद में वह दूसरों के साथ संबंध बनाएगी।
एक शिशु के रूप में उसकी हरकतें उसकी अपनी जरूरतों के इर्द-गिर्द केंद्रित होती हैं। बच्चों के सात या आठ साल के होने से पहले वे लेन-देन के आधार पर स्थिर संबंध नहीं बना पाएंगे।
यह वह समय भी है जब बच्चे दोस्त बनाते हैं और सबसे अच्छे दोस्त की पहचान भी कर सकते हैं। जब बच्चा अन्य बच्चों और वयस्कों के संपर्क में आता है तो उसे पता चलता है कि उसे स्वीकार्य तरीके से कैसे व्यवहार करना है।
उसने खाने के तरीके, कपड़े पहनना, बड़ों से बात करना और अन्य चीजें सीखीं जो उसकी संस्कृति का हिस्सा हैं।
उसे पता चल जाएगा कि खिलौना छीनना, बच्चे को मारना या आउट ऑफ टर्न खेलना सही नहीं है।
धीरे-धीरे वह सहयोग करना, मददगार और उदार बनना सीखती है।
किसी अन्य व्यक्ति के दृष्टिकोण और दूसरों के लिए चिंता को समझने की क्षमता उसे किशोरावस्था और वयस्कता के दौरान लोगों के साथ संतोषजनक संबंध बनाने में मदद करेगी।
भावनात्मक विकास
क्रोध, खुशी, प्रसन्नता, खुशी, भय, चिंता और दुःख जैसी भावनाओं के उद्भव और उन्हें व्यक्त करने के सामाजिक रूप से स्वीकार्य तरीकों को संदर्भित करता है।
जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है और व्यवहार के स्वीकार्य तरीकों से अवगत होता है, विभिन्न प्रकार की भावनाएँ भी उभरती हैं।
एक शिशु के रूप में, वह केवल बेचैनी और प्रसन्नता व्यक्त करती है।
जैसे-जैसे वह बड़ी होती है, खुशी, खुशी, भय, क्रोध और निराशा के भाव प्रकट होते हैं।
वह इन भावनाओं को स्वस्थ तरीके से व्यक्त करना सीखती है। उदाहरण के लिए, बच्चा शुरू में गुस्से में काटता है।
धीरे-धीरे वह इस पर नियंत्रण करना सीख जाती है और दूसरे तरीकों से गुस्सा जाहिर करती है।
व्यक्तित्व
एक शब्द है जिसे हम अक्सर किसी व्यक्ति का वर्णन करते समय उपयोग करते हैं, व्यक्तित्व क्या है?
यदि आपने समय के साथ बच्चों और वयस्कों को देखा है, तो आपने इस पर ध्यान दिया होगा: प्रत्येक व्यक्ति के सोचने, महसूस करने, लोगों से संबंधित होने और उन स्थितियों पर प्रतिक्रिया करने का एक विशिष्ट तरीका होता है जिसे वह विभिन्न प्रकार की स्थितियों और सेटिंग्स में प्रदर्शित करता है।
प्रत्येक बच्चे का एक विशिष्ट व्यक्तित्व होता है।
बच्चा अपने बारे में क्या सोचता है यह उसके व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि यह निर्धारित करता है कि वह दूसरों के साथ कैसे बातचीत करता है।
एक बच्चा जो आत्मविश्वासी और खुश महसूस करता है, वह दूसरों के साथ स्नेही होने की संभावना रखता है।
व्यक्तित्व इस प्रकार एक व्यक्ति के दूसरों से संबंधित होने के विशिष्ट तरीकों और अपने और अन्य लोगों के बारे में सोचने और महसूस करने के विशिष्ट पैटर्न को संदर्भित करता है।
यह शारीरिक, मोटर, संज्ञानात्मक, भाषा, सामाजिक और भावनात्मक विकास के क्षेत्रों में बच्चे के अनुभव और उपलब्धियों से उभरता है।

36 . Describing Universal Patterns of Development
  • there is a sequence in development.
  • Every child first communicates with sounds and gestures.
  • Then she learns words and uses them to express herself and finally uses complete and grammatically correct sentences.
  • There is a similar sequence in the emergence of abilities in all areas of development.
  • The sequence or pattern is common to all children, that is, each child passes through these sequences in the same order.
  • In any area of development, a specific ability emerges at a particular age in most children.
  • Thus, children usually learn to sit by six months of age, speak the first words around the first birthday and achieve the ability to think in abstract terms around 12 years of age.
  • There is, thus, a universal pattern in development.
  • Furthermore, no child can crawl before she can sit and no child can learn to relate to people before
    she learns to relate to the primary caregiver.
  • That is, in each area of development, the emergence of one ability is dependent on and follows the previous one.

36. विकास के सार्वभौम प्रतिमानों का वर्णन करना विकास में एक क्रम है।
प्रत्येक बच्चा सबसे पहले ध्वनियों और इशारों से संवाद करता है।
फिर वह शब्दों को सीखती है और खुद को व्यक्त करने के लिए उनका उपयोग करती है और अंत में पूर्ण और व्याकरणिक रूप से सही वाक्यों का उपयोग करती है।
विकास के सभी क्षेत्रों में योग्यताओं के उद्भव का एक समान क्रम है।
अनुक्रम या पैटर्न सभी बच्चों के लिए समान है, अर्थात प्रत्येक बच्चा एक ही क्रम में इन अनुक्रमों से गुजरता है।
विकास के किसी भी क्षेत्र में, अधिकांश बच्चों में एक विशेष उम्र में एक विशिष्ट क्षमता उभरती है।
इस प्रकार, बच्चे आमतौर पर छह महीने की उम्र तक बैठना सीखते हैं, पहले जन्मदिन के आसपास पहले शब्द बोलते हैं और लगभग 12 साल की उम्र में अमूर्त शब्दों में सोचने की क्षमता हासिल करते हैं।
इस प्रकार, विकास में एक सार्वभौमिक पैटर्न है।
इसके अलावा, कोई भी बच्चा बैठने से पहले रेंग नहीं सकता और कोई भी बच्चा इससे पहले लोगों से संबंधित होना नहीं सीख सकता
वह प्राथमिक देखभालकर्ता से संबंधित होना सीखती है।
अर्थात्, विकास के प्रत्येक क्षेत्र में, एक क्षमता का उदय पिछली क्षमता पर निर्भर करता है और उसका अनुसरण करता है।

37 . Explaining Individual Differences in Development
  • Though there is a pattern of development which is common to all individuals, no two
    children are alike.
  • They vary in their likes, dislikes, preferences, interests, skills and abilities and in the way they talk, look and behave.
  • Individual differences refer to variations in children’s personality, skills and attitudes. In a family one child may be very quiet and do all the tasks given to her while the other may always demand her own way.
  • Some children enjoy singing songs and others may not like music. Some children run very fast and some can jump higher than others.
  • You have just read that there are individual differences in the ages at which children acquire a particular skill.
  • The understanding of individual differences helps us realize that every child is different and should not be compared to others.
  • However, if a child is aggressive and usually fights with her friends, it is not enough to say, “That is the way she is.” An effort should be made to understand why she behaves that way.
  • The child may be aggressive just to get the attention of adults, the lack of which is giving her a sense of insecurity.
  • In such a case it is the attitude of the adults which is making the child behave as she does.

37. विकास में व्यक्तिगत अंतर की व्याख्या
हालांकि विकास का एक पैटर्न है जो सभी व्यक्तियों के लिए समान है, कोई दो नहीं
बच्चे एक जैसे हैं।
वे अपनी पसंद, नापसंद, पसंद, रुचियों, कौशल और क्षमताओं में भिन्न होते हैं और जिस तरह से वे बात करते हैं, दिखते हैं और व्यवहार करते हैं।
व्यक्तिगत अंतर बच्चों के व्यक्तित्व, कौशल और दृष्टिकोण में भिन्नता को दर्शाता है। एक परिवार में एक बच्चा बहुत शांत हो सकता है और उसे दिए गए सभी कार्यों को कर सकता है जबकि दूसरा हमेशा अपने तरीके से मांग कर सकता है।
कुछ बच्चों को गीत गाना अच्छा लगता है और कुछ को संगीत पसंद नहीं आता। कुछ बच्चे बहुत तेज दौड़ते हैं और कुछ दूसरों की तुलना में ऊंची छलांग लगा सकते हैं।
आपने अभी पढ़ा है कि जिस उम्र में बच्चे एक विशेष कौशल हासिल करते हैं, उसमें व्यक्तिगत अंतर होते हैं।
व्यक्तिगत मतभेदों की समझ हमें यह महसूस करने में मदद करती है कि हर बच्चा अलग होता है और उसकी तुलना दूसरों से नहीं की जानी चाहिए।
हालांकि, अगर कोई बच्चा आक्रामक है और आमतौर पर अपने दोस्तों से लड़ता है, तो यह कहना काफी नहीं है, “वह ऐसी ही है।” यह समझने का प्रयास किया जाना चाहिए कि वह ऐसा व्यवहार क्यों करती है।
बच्चा केवल वयस्कों का ध्यान आकर्षित करने के लिए आक्रामक हो सकता है, जिसकी कमी उसे असुरक्षा की भावना दे रही है।
ऐसे में बड़ों का रवैया ही बच्चे को उसके जैसा व्यवहार करने के लिए मजबूर कर रहा है।

38. What is Differentiation and Integration ?

Differentiation

Differentiation means that development proceeds from simple to complex, from general to specific. In the above process, development was seen to proceed from identical cells to complex tissues, each of which has its own specific functions.

These cells then acquire different characteristics and form different tissue  like nerves, bones, blood and so forth, each having a special function.

Integration

Integration means the coordination of various parts to form an increasingly complex sructure. It also refers to the coordination of different behavior patterns that result in a higher level of complexity .

different tissues subsequently coordinate with each other to form complex systems like the digestive, circulatory and respiratory systems .

38. विभेदीकरण और एकीकरण क्या है ?

भेदभाव

विभेदीकरण का अर्थ है कि विकास सरल से जटिल की ओर, सामान्य से विशिष्ट की ओर बढ़ता है। उपरोक्त प्रक्रिया में, विकास को समान कोशिकाओं से जटिल ऊतकों की ओर बढ़ते हुए देखा गया, जिनमें से प्रत्येक के अपने विशिष्ट कार्य हैं।

ये कोशिकाएं तब अलग-अलग विशेषताएं प्राप्त करती हैं और विभिन्न ऊतक बनाती हैं जैसे तंत्रिका, हड्डियां, रक्त आदि, प्रत्येक का एक विशेष कार्य होता है।

एकीकरण

एकीकरण का अर्थ है एक तेजी से जटिल संरचना बनाने के लिए विभिन्न भागों का समन्वय। यह विभिन्न व्यवहार पैटर्न के समन्वय को भी संदर्भित करता है जिसके परिणामस्वरूप उच्च स्तर की जटिलता होती है।

विभिन्न ऊतक बाद में पाचन, संचार और श्वसन प्रणाली जैसी जटिल प्रणाली बनाने के लिए एक दूसरे के साथ समन्वय करते हैं।

39. What is Critical Periods and Explain .

  • There are some periods in the life of the child that are crucial for development and
    learning. During these periods if the child has favorable experiences, her development
    will be fostered.
  • If in these periods experiences are unfavorable, development suffers. At times, the damage done because of unfavorable experiences may be irreversible.
  • These periods when a child is particularly sensitive to the conditions in her environment
    are referred to as critical periods or sensitive periods.
  • A critical or sensitive period is that time period in life when an environmental influence
    has its greatest impact on the development of the child. During this period, specific
    experiences affect the development of the child more than they do at other times.

39. क्रिटिकल पीरियड्स क्या है और समझाइए।

  • बच्चे के जीवन में कुछ समय ऐसे होते हैं जो विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं और
    सीख रहा हूँ। इन अवधियों के दौरान यदि बच्चे के अनुकूल अनुभव हैं, तो उसका विकास
    पोषित किया जाएगा।
  • यदि इन अवधियों में अनुभव प्रतिकूल होते हैं, तो विकास प्रभावित होता है। कभी-कभी, प्रतिकूल अनुभवों के कारण हुई क्षति अपरिवर्तनीय हो सकती है।
  • इन अवधियों में जब एक बच्चा अपने वातावरण की स्थितियों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होता है
    महत्वपूर्ण अवधियों या संवेदनशील अवधियों के रूप में जाना जाता है।
  • एक महत्वपूर्ण या संवेदनशील अवधि जीवन में वह समय अवधि होती है जब एक पर्यावरणीय प्रभाव
    सबसे अधिक प्रभाव बच्चे के विकास पर पड़ता है। इस अवधि के दौरान विशिष्ट
    अनुभव बच्चे के विकास को अन्य समयों की तुलना में अधिक प्रभावित करते हैं।

(40) Aspects to be kept in mind while evaluating the curriculum

  • Curriculum is a system of learning experiences deliberately designed and transacted for
    realizing certain goals. As for evaluation, it is a systematic process of determining and appraising the
    proficiency level of a system or practice.
  • Curriculum evaluation is mainly the determination of the extent to which the instructional objectives have been achieved.
  • Evaluation takes place at the end of the curriculum transaction cycle – usually annually.
  • As evaluation is a post event phenomenon, good curriculum management demands periodic monitoring which acts like a guided missile system to keep the curriculum on target. This can take place while the course is in progress with the help of monitoring tests to determine the effectiveness of instruction of the student.
  • Curriculum evaluation, thus involves systematically appraising and measuring the appropriateness and effectiveness of learning experiences at a particular level.
  • A systematic analysis of the course gives an idea about the selection and sequence of content, the choice of teaching and assessment methods.
  • The main aim of evaluation is to better thecourse for students of the future
  • The most important objective of curriculum evaluation is to judge the effectiveness of the curriculum right from goals up to the assessment procedure.
  •  The entire program is evaluated at completion. Need for evaluation If success of the program must be judged, evaluation is a must.
  • Several aspects of the program, such as the suitability of each component, the sequencing, the input process-output must be judged.
  • Evaluation serves several purposes. To improve an existing program Parents and students often question the relevance of a program, particularly at the higher education level, on the basis of its adequacy to meet academic needs, and gain employment.
  • Dropouts from colleges and universities have become fairly common. Hence, there is an increasing need for evaluation of existing programs.
  • Teachers often feel that advancement of knowledge up gradation of curriculum and teaching in an interesting manner motivates students.
  • It is essential for the teacher to evaluate what exactly will motivate her students because what s/he may consider as interesting may not be so for the students.
  • To examine the impact of the program, When innovations are made in the course contents or teaching-learning strategies at the higher education level, it is imperative to ascertain the impact of these changes on student motivation and learning.
  • With recent technological advancements, innovations like computer based training and introduction of multimedia in teaching- learning strategies have become fairly common at the higher education stage. The effect of these on student behavior, teacher’s motivation and learning curves must be evaluated.

(40) पाठ्यक्रम का मूल्यांकन करते समय ध्यान में रखे जाने वाले पहलू

  • पाठ्यक्रम सीखने के अनुभवों की एक प्रणाली है जिसे जानबूझकर डिज़ाइन किया गया है और जिसके लिए लेन-देन किया गया है
    कुछ लक्ष्यों को साकार करना। मूल्यांकन के लिए, यह निर्धारण और मूल्यांकन की एक व्यवस्थित प्रक्रिया है
    एक प्रणाली या अभ्यास का प्रवीणता स्तर।
  • पाठ्यचर्या मूल्यांकन मुख्य रूप से उस उद्देश्य का निर्धारण है जिस तक अनुदेशात्मक उद्देश्यों को प्राप्त किया गया है।
    पाठ्यक्रम लेन-देन चक्र के अंत में मूल्यांकन होता है – आमतौर पर सालाना।
  • मूल्यांकन एक घटना के बाद की घटना है, अच्छा पाठ्यक्रम प्रबंधन आवधिक निगरानी की मांग करता है जो पाठ्यक्रम को लक्ष्य पर रखने के लिए निर्देशित मिसाइल प्रणाली की तरह कार्य करता है। यह तब हो सकता है जब छात्र की शिक्षा की प्रभावशीलता को निर्धारित करने के लिए निगरानी परीक्षणों की सहायता से पाठ्यक्रम चल रहा हो।
  • पाठ्यक्रम मूल्यांकन, इस प्रकार व्यवस्थित रूप से मूल्यांकन और एक विशेष स्तर पर सीखने के अनुभवों की उपयुक्तता और प्रभावशीलता को मापना शामिल है।
  • पाठ्यक्रम का एक व्यवस्थित विश्लेषण सामग्री के चयन और अनुक्रम, शिक्षण और मूल्यांकन के तरीकों की पसंद का विचार देता है।
    मूल्यांकन का मुख्य उद्देश्य भविष्य के छात्रों के लिए बेहतर पाठ्यक्रम है पाठ्यक्रम मूल्यांकन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य मूल्यांकन प्रक्रिया तक लक्ष्यों से सही पाठ्यक्रम की प्रभावशीलता का न्याय करना है।
  • पूरा कार्यक्रम पूरा होने पर मूल्यांकन किया जाता है। मूल्यांकन की आवश्यकता यदि कार्यक्रम की सफलता को आंका जाना चाहिए, तो मूल्यांकन आवश्यक है।
  • कार्यक्रम के कई पहलुओं, जैसे कि प्रत्येक घटक की उपयुक्तता, अनुक्रमण, इनपुट-आउटपुट प्रक्रिया को आंका जाना चाहिए।
    मूल्यांकन कई उद्देश्यों को पूरा करता है। एक मौजूदा कार्यक्रम में सुधार करने के लिए माता-पिता और छात्र अक्सर शैक्षणिक आवश्यकताओं को पूरा करने और रोजगार प्राप्त करने के लिए अपनी पर्याप्तता के आधार पर, विशेष रूप से उच्च शिक्षा के स्तर पर एक कार्यक्रम की प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हैं।
  • कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से ड्रॉपआउट काफी सामान्य हो गए हैं। इसलिए, मौजूदा कार्यक्रमों के मूल्यांकन की बढ़ती आवश्यकता है।
    शिक्षकों को अक्सर लगता है कि पाठ्यक्रम के उन्नयन और दिलचस्प तरीके से शिक्षण के लिए ज्ञान की उन्नति छात्रों को प्रेरित करती है।
    शिक्षक के लिए यह मूल्यांकन करना महत्वपूर्ण है कि वास्तव में उसके छात्रों को क्या प्रेरित करेगा क्योंकि छात्रों के लिए ऐसा क्या दिलचस्प हो सकता है।
  • कार्यक्रम के प्रभाव की जांच करने के लिए, जब उच्च शिक्षा स्तर पर पाठ्यक्रम सामग्री या शिक्षण-शिक्षण रणनीतियों में नवाचार किए जाते हैं, तो छात्र प्रेरणा और सीखने पर इन परिवर्तनों के प्रभाव का पता लगाना अनिवार्य है।
  • हाल की तकनीकी प्रगति के साथ, कंप्यूटर आधारित प्रशिक्षण जैसे नवाचार और शिक्षण-शिक्षण रणनीतियों में मल्टीमीडिया की शुरुआत उच्च शिक्षा के स्तर पर काफी सामान्य हो गई है। छात्र के व्यवहार, शिक्षक की प्रेरणा और सीखने की अवस्थाओं पर इन के प्रभाव का मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

41.  List five behaviors each of the caregivers and the infant that will serve to maintain social interaction.
Behaviors of the Caregivers:

Most of us display specific kinds of behavior while interacting with infants. These behaviors usually bring forth a response from the baby. Her children as young as four years of age seem to know how to attract a baby’s attention,

physical Contact:

  • Infants and older children have an inborn need for physical contact.
  • In fact, touch is crucial in the development of the emotional bond between the caregiver and the child.
  • Babies must be held not only in the course of routine  feeding, bathing and changing clothes, but also be picked up and cuddled for pleasure.
  • When the mother holds the infant in her arms, the baby feels secure.
  • This can be seen clearly from the infant’s behavior. She may get frightened by a loud noise when alone, but remains undisturbed by a similar noise when in the arms of the mother.

Speech:

  • When we talk with the infant, we tend to use baby talk! — This is a very i I specific form of
    speech not used with an older child, say a two-year-old.
  • Baby talk has very short sentences, simple words, certain modulations of voice and sounds such as chucking noises.
  • We smile when we wish to communicate warmth, acceptance and recognition.
  • Most people smile when communicating with the infant, even if she does not smile in return.
  • Gradually, the smile of the caregiver becomes a signal for the infant to smile back, to express delight and to begin wooing and babbling.

Facial Expressions:

Almost all adults and children while interacting with the baby exaggerate their facial expressions. Sometimes they show mock-surprise by raising the eyebrows, wrinkling the forehead, opening the mouth and smiling widely. The baby usually smiles at this expression. At other times, the adults show mock-anger or pleasure.

Gazing:

  • While talking to a person we normally look at him or her.
  • Looking away from the person may be a signal that we wish to terminate the contact:
  • This eye-to-eye-contact is the basis of all direct communication, Caregivers normally gaze at the infant while interacting with her and while taking care of her routine needs.
  • Initially the infant may look at the mother only occasionally and is able to hold her gaze for only a few seconds. Gradually, she is able to look at her for longer periods.
  • This mutual gazing is most important inestablishing a link between the two and is one of the first forms of socio-emotional interaction.

Behaviors of the Infant: Socio-Emotional Development:

The Early Relationships We have just discussed how caregivers devise ways of communicating with infants. Infants also initiate behavior to make social contact. These are gazing, crying, smiling, babbling and imitation. Besides these, the infant’s sensory abilities also help in interaction.

Gazing and Smiling:

when the newborn begins to fix her gaze on the face of the caregiver, a relationship develops between the two. The infant practices eye-to-eye contact from the first week of life. We are all familiar with the sight of a newborn smiling in her sleep. This type of smile is in response to the brain’s internal activity. During the first month the infant also smiles if she
hears high pitched sounds.

Crying:

Crying is the main way by which the infant attracts help and care. Crying brings the adult to
her side more quickly than any other behavior. Depending upon what the caregiver thinks the child
needs, she may feed her, change her dress or pick her up. Early in life babies cry mainly when they
are hungry or wet or in pain. Later, by about six months of age, the infant uses crying as a means of
directing the adults’ attention to her even when she is not in distress. She cries because she is bored
and wants to be picked up or talked to. Thus she uses crying to elicit a social response from the
caregivers. By one year, the total amount of crying decreases by almost fifty percent of what it was at
three months. This gives the infant and parents more time for positive social behaviors such as
gazing smiling, babbling and imitation.

Cooing and Babbling:

Once the infant begins to coo and babble, the interaction between her and the people increases dramatically. When the baby imitates sounds, it makes adults around her want to play with her and their dialogues’ become more varied.

Imitation:

Around one year of age, infants also imitate certain other behaviors. They may copy blinking of the eyes, certain rocking movements of the body or other gestures. When the infant mimics or copies an action, the adult produces more behaviors that the infant can imitate

प्रत्येक देखभाल करने वाले और शिशु के पांच व्यवहारों की सूची बनाएं जो सामाजिक संपर्क को बनाए रखने के लिए काम करेंगे।
देखभाल करने वालों का व्यवहार:

हम में से अधिकांश शिशुओं के साथ बातचीत करते समय विशिष्ट प्रकार का व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। ये व्यवहार आमतौर पर बच्चे की प्रतिक्रिया सामने लाते हैं। उसके चार साल की उम्र के बच्चे बच्चे का ध्यान आकर्षित करना जानते हैं,

जिस्मानी संबंध:

शिशुओं और बड़े बच्चों को शारीरिक संपर्क की जन्मजात आवश्यकता होती है।
वास्तव में, देखभाल करने वाले और बच्चे के बीच भावनात्मक बंधन के विकास में स्पर्श महत्वपूर्ण है।
शिशुओं को न केवल नियमित रूप से खिलाने, स्नान करने और कपड़े बदलने के दौरान ही रखा जाना चाहिए, बल्कि आनंद के लिए उन्हें उठाया और गले लगाया जाना चाहिए।
जब मां शिशु को गोद में लेती है तो बच्चा अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है।
यह शिशु के व्यवहार से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। वह अकेले होने पर तेज आवाज से भयभीत हो सकती है, लेकिन मां की बाहों में एक समान शोर से विचलित नहीं होती है।

भाषण:

जब हम शिशु के साथ बात करते हैं, तो हम बेबी टॉक का इस्तेमाल करते हैं! — यह एक बहुत ही विशिष्ट रूप है
एक बड़े बच्चे के साथ प्रयोग नहीं किया गया भाषण, दो साल के बच्चे का कहना है।
बेबी टॉक में बहुत छोटे वाक्य, सरल शब्द, आवाज के कुछ मॉडुलन और आवाजें जैसे चकिंग शोर होते हैं।
जब हम गर्मजोशी, स्वीकृति और मान्यता का संचार करना चाहते हैं तो हम मुस्कुराते हैं।
शिशु के साथ संवाद करते समय ज्यादातर लोग मुस्कुराते हैं, भले ही वह बदले में मुस्कुराए नहीं।
धीरे-धीरे, देखभाल करने वाले की मुस्कान शिशु के लिए वापस मुस्कुराने, प्रसन्नता व्यक्त करने और लुभाने और बड़बड़ाने का संकेत बन जाती है।

चेहरे के भाव:

लगभग सभी वयस्क और बच्चे बच्चे के साथ बातचीत करते समय अपने चेहरे के भावों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं। कभी-कभी भौहें उठाकर, माथे पर झुर्रियां डालकर, मुंह खोलकर और व्यापक रूप से मुस्कुराकर नकली-आश्चर्य दिखाते हैं। बच्चा आमतौर पर इस अभिव्यक्ति पर मुस्कुराता है। अन्य समय में, वयस्क मजाक-क्रोध या आनंद दिखाते हैं।

टकटकी लगाना:

किसी व्यक्ति से बात करते समय हम सामान्य रूप से उसकी ओर देखते हैं।
व्यक्ति से दूर देखना एक संकेत हो सकता है कि हम संपर्क समाप्त करना चाहते हैं:
यह आँख से आँख का संपर्क सभी प्रत्यक्ष संचार का आधार है, देखभाल करने वाले आमतौर पर शिशु के साथ बातचीत करते समय और उसकी नियमित जरूरतों का ध्यान रखते हुए उसकी ओर देखते हैं।
प्रारंभ में शिशु केवल कभी-कभार ही अपनी माँ को देख सकता है और केवल कुछ सेकंड के लिए ही अपनी निगाहों को थामे रख पाता है। धीरे-धीरे, वह उसे लंबे समय तक देखने में सक्षम है।
यह पारस्परिक टकटकी दोनों के बीच एक कड़ी स्थापित करने में सबसे महत्वपूर्ण है और सामाजिक-भावनात्मक बातचीत के पहले रूपों में से एक है।

शिशु का व्यवहार: सामाजिक-भावनात्मक विकास:

प्रारंभिक संबंध हमने अभी चर्चा की है कि देखभाल करने वाले शिशुओं के साथ संवाद करने के तरीके कैसे विकसित करते हैं। शिशु भी सामाजिक संपर्क बनाने के लिए व्यवहार शुरू करते हैं। ये हैं टकटकी लगाना, रोना, मुस्कुराना, बड़बड़ाना और नकल करना। इनके अलावा, शिशु की संवेदी क्षमताएं भी बातचीत में मदद करती हैं।

निहारना और मुस्कुराना:

जब नवजात शिशु देखभाल करने वाले के चेहरे पर नजरें गड़ाना शुरू करता है, तो दोनों के बीच एक रिश्ता विकसित हो जाता है। शिशु जीवन के पहले सप्ताह से ही आंखों से आंख मिलाने का अभ्यास करता है। एक नवजात शिशु को नींद में मुस्कुराते हुए देखने से हम सभी परिचित हैं। इस प्रकार की मुस्कान मस्तिष्क की आंतरिक गतिविधि की प्रतिक्रिया में होती है। पहले महीने के दौरान शिशु भी मुस्कुराता है यदि वह
ऊंची आवाजें सुनता है।

रोना:

रोना वह मुख्य तरीका है जिसके द्वारा शिशु सहायता और देखभाल को आकर्षित करता है। रोना वयस्क को लाता है
उसका पक्ष किसी भी अन्य व्यवहार की तुलना में अधिक तेज़ है। देखभाल करने वाला बच्चे के बारे में क्या सोचता है इसके आधार पर
जरूरत है, वह उसे खिला सकती है, उसकी पोशाक बदल सकती है या उसे उठा सकती है। प्रारंभिक जीवन में बच्चे मुख्य रूप से रोते हैं जब वे
भूखे हैं या गीले हैं या दर्द में हैं। बाद में, लगभग छह महीने की उम्र तक, शिशु रोने का उपयोग एक साधन के रूप में करता है
जब वह संकट में न हो तब भी वयस्कों का ध्यान उसकी ओर निर्देशित करना। वह रोती है क्योंकि वह ऊब चुकी है
और उठाया जाना या बात करना चाहता है। इस प्रकार वह रोने का उपयोग सामाजिक प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए करती है
देखभाल करने वाले एक वर्ष तक, रोने की कुल मात्रा उस समय की तुलना में लगभग पचास प्रतिशत कम हो जाती है
तीन महीने। यह शिशु और माता-पिता को सकारात्मक सामाजिक व्यवहारों के लिए अधिक समय देता है जैसे कि
मुस्कुराते हुए, बड़बड़ाते हुए और नकल करते हुए।

कूइंग और बबलिंग:

एक बार जब शिशु कूना और बड़बड़ाना शुरू कर देता है, तो उसके और लोगों के बीच की बातचीत नाटकीय रूप से बढ़ जाती है। जब बच्चा ध्वनियों की नकल करता है, तो इससे उसके आस-पास के वयस्क उसके साथ खेलना चाहते हैं और उनके संवाद अधिक विविध हो जाते हैं।

नकली:

लगभग एक वर्ष की आयु में, शिशु कुछ अन्य व्यवहारों का भी अनुकरण करते हैं। वे पलक झपकते, शरीर के कुछ हिलने-डुलने वाले आंदोलनों या अन्य इशारों की नकल कर सकते हैं। जब शिशु किसी क्रिया की नकल या नकल करता है, तो वयस्क अधिक व्यवहार पैदा करता है जिसका शिशु अनुकरण कर सकता है

EXTRA QUESTION

1 . What are the factors that influence the development of a child ?

critical periods that development and learning take place when the child is mature or ready to learn and when opportunities for learning are available. The biological readiness or maturation is mainly determined by
heredity. The child also inherits many other traits and characteristics. Heredity is one factor that influences development. The other factors are the experiences of the child and opportunities available to her. These are determined by the child’s environment. Development and learning are the result of interaction between heredity and environment Let us now read what is meant by these two terms.

Environment refers to the external conditions that influence development. We can consider environment as prenatal and postnatal. The prenatal environment is the mother’s womb. The foetus is affected by the kind and amount of food the mother eats, physical work done by her, illnesses she may have during pregnancy and drugs consumed by her. The mother’s feelings and emotions will also affect the foetus.

Heredity refers to the inborn traits and characteristics. These characteristics are transmitted to the child from the parents. The colour of one’s hair, skin and eyes, the shape of one’s nose and the body structure are determined by heredity. A person’s mental capacity and some personality traits are also determined by heredity to a certain extent. Genes transmit the hereditary characteristics from parents to children. They carry
the codes of the biological development of an individual.

बच्चे के विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं ?

जब बच्चा परिपक्व या सीखने के लिए तैयार होता है और जब सीखने के अवसर उपलब्ध होते हैं तो विकास और सीखने की महत्वपूर्ण अवधि होती है। जैविक तैयारी या परिपक्वता मुख्य रूप से निर्धारित होती है
वंशागति। बच्चे को कई अन्य लक्षण और विशेषताएं भी विरासत में मिलती हैं। आनुवंशिकता एक ऐसा कारक है जो विकास को प्रभावित करता है। अन्य कारक बच्चे के अनुभव और उसके लिए उपलब्ध अवसर हैं। ये बच्चे के परिवेश से निर्धारित होते हैं। विकास और सीखना आनुवंशिकता और पर्यावरण के बीच अंतःक्रिया का परिणाम है आइए अब हम इन दो शब्दों का अर्थ पढ़ें।

पर्यावरण बाहरी परिस्थितियों को संदर्भित करता है जो विकास को प्रभावित करते हैं। हम पर्यावरण को जन्मपूर्व और प्रसवोत्तर मान सकते हैं। जन्म के पूर्व का वातावरण मां का गर्भ है। माँ द्वारा खाए जाने वाले भोजन के प्रकार और मात्रा, उसके द्वारा किए गए शारीरिक श्रम, गर्भावस्था के दौरान उसे होने वाली बीमारियाँ और उसके द्वारा सेवन की जाने वाली दवाओं से भ्रूण प्रभावित होता है। मां की भावनाओं और भावनाओं का भी भ्रूण पर असर पड़ेगा।

आनुवंशिकता का तात्पर्य जन्मजात लक्षणों और विशेषताओं से है। ये लक्षण माता-पिता से बच्चे को प्रेषित होते हैं। किसी के बाल, त्वचा और आंखों का रंग, नाक का आकार और शरीर की संरचना आनुवंशिकता से निर्धारित होती है। एक व्यक्ति की मानसिक क्षमता और कुछ व्यक्तित्व लक्षण भी एक निश्चित सीमा तक आनुवंशिकता से निर्धारित होते हैं। जीन माता-पिता से बच्चों में वंशानुगत विशेषताओं को संचारित करते हैं। वे ढो रहे हैं
किसी व्यक्ति के जैविक विकास के कोड।

2. What are the Components of Child Care Services ?

Health: Health is an essential part of total development. Regular health check-ups to ensure that the child is developing normally and immunization against preventable diseases are necessary. Reffering the child to the hospital in the case of complaints which cannot be treated at the local health centre and first aid facilities are also important aspects of health care.

Nutrition: Adequate nutrition is important for the health of the child. It is known that a number of children do not get the amount of food they need. Many others do not eat the right type or adequate amount of food. Depending upon the duration of their stay in the centre, children should be provided snacks or meals.

Education: You know that education is important for the child. What do we mean by education for the young child ? We mean providing stimulation to the child by allowing opportunities for play since this is the way children learn.

बाल देखभाल सेवाओं के घटक क्या हैं?

स्वास्थ्य: स्वास्थ्य समग्र विकास का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि बच्चा सामान्य रूप से विकसित हो रहा है, नियमित स्वास्थ्य जांच और रोकथाम योग्य बीमारियों के खिलाफ टीकाकरण आवश्यक है। ऐसी शिकायतों के मामले में बच्चे को अस्पताल में रेफर करना जिनका इलाज स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक चिकित्सा सुविधाओं में नहीं हो सकता है, यह भी स्वास्थ्य देखभाल के महत्वपूर्ण पहलू हैं।

पोषण: बच्चे के स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त पोषण महत्वपूर्ण है। यह ज्ञात है कि कई बच्चों को उनके लिए आवश्यक भोजन की मात्रा नहीं मिलती है। कई अन्य लोग सही प्रकार या पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं करते हैं। केंद्र में उनके ठहरने की अवधि के आधार पर, बच्चों को नाश्ता या भोजन उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

शिक्षा: आप जानते हैं कि शिक्षा बच्चे के लिए महत्वपूर्ण है। छोटे बच्चे के लिए शिक्षा से हमारा क्या तात्पर्य है ? हमारा मतलब है कि बच्चे को खेलने के अवसरों की अनुमति देकर बच्चे को उत्तेजना प्रदान करना क्योंकि यही वह तरीका है जिससे बच्चे सीखते हैं।

2. Describe the salient characteristics of each of the SIX substages of the sensori-motor period.

As the term suggests, in this stage the child understands the world using her senses and motor capacities. She comes to know about things in terms of what her senses convey and what she can do with them (motor capacities).

There are Six substages of the Sensori-motor period.

  1. First Substage(birth-1 month)
  2. Second Substage (2 month – 4 month )
  3. Third Substage (4-8 month)
  4. Fourth Substage (8-12 month)
  5. Fifth Substage (12-18 month)
  6. Six Substage  (18-24 month)

First Substage

  • The first substage lasts from birth to one month. During this stage, the newborn adapts to her surroundings through her reflexes. For example, when the baby feels hungry, she cries and when her mouth touches the nipple, she begins to suck.
    Sucking is a reflex at this stage. The foundations of later learning are laid now as the baby modifies and adapts her reflexes.
  • The newborn adapts to the surroundings through her reflexes. While doing so, she learns through generalization and discrimination.

Second Substage

  • The second substage lasts from the beginning of the second month to four months. During this period babies begin to show interest in their surroundings, which leads them to explore. Since at this time the infant is not able to move about physically, the process of knowing about the surroundings is in the form of visual exploration. They now spend less time sleeping and when alert they scan their environment. At this age the child is also able to anticipate an event based on the actions of others. the infant remembers that certain actions of the mother will lead to feeding–another evidence of her growing memory.
  • The infant explores the surroundings visually. Her memory grows as indicated by her being able to differentiate familiar from unfamiliar people. She is also able to anticipate events. She is able to imitate some behaviours of people.

Third Substage (4-8 months)

  •  she is able to grasp I objects, push them, kick them and manipulate them. She is able to make things happen and acquires new actions that produce interesting results on the objects. she begins to understand cause and effect relationships. The emergence of intention in the infant’s actions is an important landmark from the point of view of cognitive development .
  • The infant performs actions that produce interesting results on objects.
  • Her actions become purposeful and intentional and she understands cause and effect relationships.

Fourth Substage

  • Goal-directed behaviour marks the beginning of the fourth substage which lasts from 8-12 months. From the point of view of problem-solving this stage is an important landmark.
  • The child is able to use her actions in new situations to reach a goal. This means that the child is able to handle more situations. She also understands that objects occupy some position in space. The child’s memory also grows so that she remembers more events and recalls them quite clearly.

Fifth Substage

  • The fifth substage of the selt5ori-motor period lasts from 12 to 18 months. Let us read the following description to understand how the child’s thinking changes during this period.
  • the child now experiments–.he tries out different ways of doing things, he changes his actions.
  • willingness and desire to try out new things makes it possible for the toddler to discover new ways of solving problems
  • ability to vary one’s behaviour and actions deliberately is a valuab1.e tool in problem-solving and we de the first signs of it in substage five of the sensori-motor period.

Six Substage

  • Between eighteen months and two years of age, a major shift in the child’s manner of thinking occurs. This is the sixth substage of the sensori-motor period of development. To understand the difference between substage five and substage six, let us read how Piaget’s children solved the problem of putting a long chain into a matchbox, which was partially open.
  • working out the solution mentally. This means that she was able to represent the task mentally and work out its solution-in her imagination, instead of relying on actually doing a task to arrive at the solution. This ability to form mental representation’of events, of being able to plcture events to oneself, is the hallmark of substage six.
  • Mental repmsentation is involved in every task that we do and the rudiments of this ability are evident towards the end of the senson-motor stage.
  • Being able to represent events mentally influences the child’s imitation.
  • The toddler’s understanding of cause and effect also improves during the sixth substage.The toddler’s understanding of cause and effect also improves during the sixth substage.
  • Towards the end of the sensori-motor period, the b&nnings of make-believe cab be seen in the child’s play. You know that in make-believe children pretend that an object is something other than what it actually is. In make-believe play children  pretend to be another person. In other words, being able to make-believe means that the toddler is able to think symbolically.

 

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